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उत्तर प्रदेश ने इथेनॉल उत्पादन के क्षेत्र में इतिहास रचते हुए देश का नंबर 1 राज्य बनने का गौरव हासिल कर लिया है। गन्ने से निकले मोलासेस और मक्का-चावल जैसे कृषि उत्पादों से तैयार होने वाला यह हरित ईंधन (बायोफ्यूल) अब राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था, किसानों की आमदनी और पर्यावरण संरक्षण का आधार बनता जा रहा है।
क्या है इथेनॉल और कैसे बन रहा है यूपी की ताकत?
इथेनॉल एक बायोफ्यूल है जो गन्ने, मक्का, चावल, गेहूं जैसे कृषि उत्पादों से बनाया जाता है। खासतौर पर गन्ने के उप-उत्पाद मोलासेस से इसे बड़े स्तर पर तैयार किया जाता है। इसे पेट्रोल में मिलाकर (Ethanol Blended Petrol) उपयोग किया जाता है, जिससे विदेशी तेल आयात पर निर्भरता घटती है और प्रदूषण में भी कमी आती है।
क्या हुआ है खास?
पिछले 8 वर्षों में इथेनॉल उत्पादन को यूपी ने 2 अरब लीटर प्रति वर्ष तक पहुंचाया है।
राज्य सरकार का अगला लक्ष्य है 2.5 अरब लीटर सालाना उत्पादन का।
अब यूपी देश में सबसे अधिक इथेनॉल उत्पादन करने वाला राज्य बन गया है।
इस क्षेत्र में ₹6,700 करोड़ से ज्यादा का निवेश हो चुका है।
गन्ने से अब केवल चीनी नहीं, बल्कि मोलासेस से इथेनॉल भी बनने लगा है।
इससे किसानों को गन्ने का बेहतर मूल्य मिल रहा है।
नई इथेनॉल डिस्टिलरियों की स्थापना से गोंडा, गोरखपुर, पीलीभीत और बरेली जैसे जिलों में स्थानीय रोजगार के नए अवसर खुले हैं।
85 से अधिक डिस्टिलरियों और 118 चीनी मिलों का नेटवर्क किसानों को एक स्थायी बाजार उपलब्ध करा रहा है।
इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) से CO2 और ग्रीनहाउस गैसों में कमी आती है।
भारत के 2070 Net-Zero Emission लक्ष्य में यह योगदान देता है।
हर साल लाखों लीटर पेट्रोल की जगह इथेनॉल के उपयोग से कार्बन फुटप्रिंट घट रहा है।
उत्तर प्रदेश सरकार की ‘बायोफ्यूल नीति 2022’ इस बदलाव की नींव मानी जा रही है। इसके तहत:
निवेशकों को भूमि, कर में छूट और सब्सिडी दी जा रही है।
स्थानीय स्तर पर फीडस्टॉक आधारित उत्पादन को प्रोत्साहन मिला है।
यह नीति किसानों की आमदनी, पर्यावरण सुरक्षा और ग्रामीण उद्योग के विकास को जोड़ती है।
गोंडा में एशिया का सबसे बड़ा इथेनॉल संयंत्र स्थापित किया गया है।
गोरखपुर के पिपराइच में मक्का और चावल से इथेनॉल बनाने वाला बड़ा प्लांट चल रहा है।
इसके चलते हज़ारों युवाओं को रोजगार और स्थानीय अर्थव्यवस्था को गति मिल रही है।
इसमें कृषक कल्याण, हरित ऊर्जा, नीतिगत पहल, और स्थानीय रोजगार जैसे कई एंगल कवर होते हैं।
उत्तर में आप डेटा आधारित उत्तर, जैसे "2 अरब लीटर उत्पादन", "Biofuel Policy 2022", और "2070 Net-Zero" लक्ष्य को जोड़ सकते हैं।
यह विषय यूपी की नीतिगत प्रतिबद्धता और राष्ट्रीय ऊर्जा लक्ष्य से जुड़ा हुआ है।
खाद्यान्न आधारित फीडस्टॉक के अत्यधिक उपयोग से खाद्य सुरक्षा पर दबाव पड़ सकता है।
जल संसाधनों का अत्यधिक उपयोग, और NOx गैस उत्सर्जन जैसी पर्यावरणीय चुनौतियाँ भी सामने आ रही हैं।
आगे का रास्ता है — Advanced Biofuels, Feedstock Diversification और Supply Chain Management को और मज़बूत करना।
इथेनॉल की कहानी सिर्फ एक वैकल्पिक ईंधन की नहीं है, बल्कि यह किसानों की खुशहाली, पर्यावरण की स्वच्छता और आत्मनिर्भर यूपी की तस्वीर है। उत्तर प्रदेश का यह मॉडल न केवल देश के अन्य राज्यों के लिए प्रेरणा है, बल्कि हरित विकास की दिशा में एक मजबूत कदम भी।