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अगस्त में थोक महंगाई दर में 2 फीसदी से कम की वृद्धि, चार महीने बाद सबसे बड़ी गिरावट

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सरकार द्वारा जारी किए गए ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, भारत की थोक मूल्य सूचकांक (WPI) आधारित महंगाई दर में अगस्त महीने में बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। जुलाई में 2.04 प्रतिशत के मुकाबले यह घटकर अगस्त में 1.31 प्रतिशत पर पहुंच गई। चार महीनों में यह पहली बार है जब थोक महंगाई दर 2 प्रतिशत से नीचे आई है।

कीमतों में कमी के कारण आई गिरावट-

कमोडिटी और खाद्य पदार्थों की कीमतों में लगातार हो रही कमी के कारण थोक महंगाई दर में यह गिरावट दर्ज की गई है। 17 सितंबर को जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति अगस्त में 3.11 प्रतिशत रही, जो जुलाई में 3.45 प्रतिशत थी। खासतौर पर सब्जियों की कीमतों में अगस्त में 10.01 प्रतिशत की कमी देखी गई, जबकि जुलाई में यह गिरावट 8.93 प्रतिशत थी।

आलू और प्याज के दामों में तेज़ी बनी रही-

हालांकि, आलू और प्याज की महंगाई ने अगस्त महीने में भी राहत नहीं दी। आलू की मुद्रास्फीति 77.96 प्रतिशत और प्याज की 65.75 प्रतिशत के ऊँचे स्तर पर बनी रही। ईंधन और बिजली श्रेणी में भी महंगाई दर में मामूली कमी देखी गई। यह अगस्त में 0.67 प्रतिशत रही, जबकि जुलाई में 1.72 प्रतिशत थी।

प्रमुख वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि-

उद्योग मंत्रालय के अनुसार, अगस्त 2024 में खाद्य पदार्थों, प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों, और मशीनरी तथा उपकरण निर्माण जैसे क्षेत्रों में कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। इसके विपरीत, सब्जियों की कीमतों में उल्लेखनीय गिरावट देखने को मिली, जिसने थोक महंगाई दर को नियंत्रण में रखने में अहम भूमिका निभाई।

खुदरा मुद्रास्फीति पर भी असर-

पिछले सप्ताह जारी आंकड़ों के अनुसार, सब्जियों की बढ़ती कीमतों के कारण अगस्त में खुदरा मुद्रास्फीति 3.65 प्रतिशत रही, जो जुलाई के 3.60 प्रतिशत से अधिक है। खुदरा मुद्रास्फीति की दर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के लिए अहम होती है, क्योंकि वह मौद्रिक नीति तैयार करते समय इसे प्राथमिकता देता है। आरबीआई ने अगस्त की मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दर को लगातार नौवीं बार 6.5 प्रतिशत पर स्थिर रखा था।

क्या होगी आगे की राह?-

अर्थशास्त्रियों के अनुसार, आगामी महीनों में थोक महंगाई दर में और स्थिरता की उम्मीद की जा रही है, खासकर अगर खाद्य और ऊर्जा कीमतों में और गिरावट होती है। हालांकि, आलू और प्याज जैसी जरूरी वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी आम लोगों की जेब पर भार डाल सकती है। इस गिरावट के साथ ही सरकार और रिजर्व बैंक के सामने चुनौती होगी कि वे आने वाले महीनों में भी मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखें, खासकर तब जब वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों और खाद्य आपूर्ति में उतार-चढ़ाव की संभावनाएं बनी हुई हैं।

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