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साल1991 में जब भारत में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत हुई, दक्षिण के पांच प्रमुख राज्य-कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु, आज की आर्थिक तस्वीर से काफी अलग थे। उस वक्त इन राज्यों की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से कम थी। लेकिन अगले तीन दशकों में, इन राज्यों ने न सिर्फ़ अपनी अर्थव्यवस्थाओं को तेज़ी से विकसित किया, बल्कि शिक्षा, तकनीक और उद्योग के क्षेत्र में भी अग्रणी बनकर उभरे। बावजूद इसके, आज भारत के सबसे अमीर राज्यों की सूची में शीर्ष पर कोई और नाम है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की ताज़ा रिपोर्ट यह दर्शाती है कि प्रति व्यक्ति आय के मामले में दिल्ली, तेलंगाना, कर्नाटक, हरियाणा और तमिलनाडु जैसे राज्य आज देश के सबसे समृद्ध राज्यों की सूची में शामिल हैं।
देश के सबसे अमीर राज्य-
दक्षिण के राज्यों का योगदान और राष्ट्रीय औसत
कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु, दक्षिण भारत के ये पांच राज्य, भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वित्त वर्ष 2024 के दौरान भारत के कुल जीडीपी में इनकी हिस्सेदारी लगभग 30% रही है। यह बात दिलचस्प है कि तेलंगाना, जो 2014 में आंध्र प्रदेश से अलग हुआ, अब देश के सबसे अमीर राज्यों में शामिल हो गया है। तेलंगाना की आर्थिक प्रगति इसकी स्वतंत्रता के बाद से लगातार बढ़ रही है, जो इसे एक आदर्श उदाहरण बनाती है।
महाराष्ट्र: सबसे बड़ा योगदानकर्ता, लेकिन घटती हिस्सेदारी
भारत के सकल घरेलू उत्पाद में सबसे बड़ा योगदान महाराष्ट्र का है, लेकिन पिछले दशक में इसकी हिस्सेदारी में गिरावट देखी गई है। लगभग 15 साल पहले महाराष्ट्र की जीडीपी में हिस्सेदारी 15% थी, जो अब घटकर 13.3% रह गई है। हैरानी की बात यह है कि इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद, महाराष्ट्र प्रति व्यक्ति आय के मामले में शीर्ष 5 राज्यों में जगह नहीं बना पाया है।
उत्तर प्रदेश और बिहार: बड़ी जनसंख्या, कम आर्थिक योगदान
उत्तर प्रदेश, जो जनसंख्या के मामले में भारत का सबसे बड़ा राज्य है, का जीडीपी में योगदान अब घटकर 9.5% रह गया है, जबकि 1960-61 में यह 14% था। बिहार, जो जनसंख्या के लिहाज से तीसरा सबसे बड़ा राज्य है, का राष्ट्रीय जीडीपी में हिस्सा मात्र 4.3% है। इन राज्यों की बड़ी जनसंख्या होने के बावजूद, इनका आर्थिक योगदान अपेक्षाकृत कम है, जो चिंता का विषय है।
पंजाब की हरित क्रांति का असर
1960 के दशक में हरित क्रांति ने पंजाब की अर्थव्यवस्था को नया जीवन दिया था। उस समय राज्य की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से 119.6% अधिक थी, जो 1971 तक 169% तक पहुंच गई थी। हालांकि, वर्तमान में यह स्थिति बदल चुकी है और राज्य अब पहले जैसी आर्थिक समृद्धि में नहीं है।
आज के समय में प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से सबसे गरीब राज्यों में बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मणिपुर और असम शामिल हैं। इन राज्यों की आर्थिक चुनौतियां कई दशकों से बरकरार हैं, जिससे वहां विकास की गति धीमी रही है।
पश्चिम बंगाल में चौंकाने वाली गिरावट
रिपोर्ट में पश्चिम बंगाल का मामला सबसे हैरान करने वाला है। 1960-61 में पश्चिम बंगाल का राष्ट्रीय जीडीपी में 10.5% का योगदान था, लेकिन अब यह घटकर 5.6% रह गया है। कभी भारत के सबसे बड़े आर्थिक केंद्रों में से एक रहने वाले इस राज्य की यह गिरावट न केवल हैरान करने वाली है, बल्कि इसके आर्थिक भविष्य पर भी सवाल खड़े करती है।
क्या थी नई आर्थिक नीति की कहानी-
भारत सरकार ने जुलाई 1991 में नए आर्थिक सुधारों की घोषणा की थी जिसे नई आर्थिक नीति (New Economic Policy) या आमतौर पर “LPG” सुधार के नाम से जाना जाता है । यहां “L” का अर्थ लिबरलाइजेशन (उदारीकरण); “P” का अर्थ प्राइवेटाइजेशन (निजीकरण) और “G” का अर्थ ग्लोबलाइजेशन (वैश्वीकरण या भूमंडलीकरण) है । इस दिन से भारत में एक नए आर्थिक युग की शुरुआत हुई जिसका मुख्य लक्ष्य आर्थिक समृद्धि को प्राप्त करना एवं देश की अर्थव्यवस्था की बुनियादी समस्याओं को दूर करना था।
उदारीकरण का मतलब क्या है?
उदारीकरण का अर्थ है ‘बाज़ार को मुक्त करना’ अर्थात उसपर से अनावश्यक सरकारी नियन्त्रण को कम करना । भारतीय अर्थव्यवस्था में एक समय ऐसा आया जब आर्थिक गतिविधियों के नियमन के लिए बनाए गए कानून ही देश की वृद्धि और विकास के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा बन गए । इस दौर को कोटा- परमिट राज के नाम से जाना जाता था जहाँ किसी भी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधि के लिए औद्योगिक अनुज्ञप्ति (लाइसेंस) की आवश्यकता होती थी । यह एक जटिल और लम्बी प्रक्रिया थी जो लाल -फीताशाही को बढ़ावा देती थी । उदारीकरण इन्हीं जटिलताओं व प्रतिबंधों को दूर कर अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को ‘मुक्त’ करने की एक कोशिश थी ।
Baten UP Ki Desk
Published : 19 September, 2024, 1:19 pm
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