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"मेड़बंदी" से जल संरक्षण का गुर सिखाएंगे जलयोद्धा

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उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के रहने वाले जल योद्धा उमाशंकर पांडेय अब जल आंदोलन की शुरुआत करने जा रहे हैं। मेड़बंदी (Bund Making) तकनीक के माध्यम से अब वह ग्रामीण लोगों को खेतों में जल प्रतिधारण के लिए जागरूक करेंगे। बीते दिनों राष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन 2023 में ‘जल संरक्षण सफलता की एक कहानी’ विषय पर ग्रामीणों को संबोधित करते हुए उमाशंकर ने कहा कि किसान बारिश का पानी अब अपने खेतों में बचाए रखें, क्योंकि मौसम विभाग के अनुसार, यूपी और एमपी के बुंदेलखंड क्षेत्रों में अब बारिश के दिनों की गिनती सामान्य रूप से प्रति वर्ष 120 से कम होकर 41 हो गई है। कई सिंचाई पद्धतियों के कारण हर साल भूजल का स्तर नीचे जा रहा है। अब समय आ गया है जब हम पुरानी मेड़बंदी तकनीक का इस्तेमाल कर बारिश के पानी को खेतों में बचाए। अपने गांव में इस तकनीक में सफलता हासिल करने के बाद वे अब बुंदेलखंड के अन्य जिलों में पानी की कमी से ग्रसित गांवों का दौरा कर लोगों को पानी बचाव के सरल उपायों को सिखाने का प्रयास करेंगे। 

कौन है जल योद्धा उमाशंकर पांडेय 
बुंदेलखंड में लोग लंबे समय से ही पानी की कमी का सामना कर रहें हैं। वहीं बांदा जिले के जखनी गांव के रहने वाले उमाशंकर पांडेय ने अपने गांव को जल ग्राम बना दिया है। वे एक सामाजिक कार्यकर्ता है जो जल योद्धा के नाम से भी जाने जाते हैं। 61 वर्षीय उमाशंकर विकलांग है, बावजूद इसके उनके हौसले आसमान छूते हैं। अपने गांव की जल समस्या से निपटने के लिए उन्होंने पूर्वजों के काम और अपने अनुभव से दो दशकों पहले मेड़बंदी का तरीका अपनाया और उसमें सफलता भी हासिल की। इसके लिए साल 2023 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया था।

आंदोलन की रूपरेखा 
वे अपने इस आंदोलन की शुरुआत महोबा और छतरपुर जिले से करने वाले है। शुरुआत के दो महीनों में वह बुंदेलखंड के 15 जिलों को कवर करेंगे और बाद में इसे भारत के अन्य हिस्सों में भी पहुंचाएंगे। उनके इस आंदोलन में 10 अन्य जल योद्धा भी उनका साथ देंगे और इस दौरान वे अपने साथ एक माइक्रोफोन भी रखेंगे। आंदोलन को सुचारू रूप से चलाने के लिए वह गांव के पंचायत भवनों, प्राथमिक विद्यालयों सहित आंगनबाड़ी केन्द्रों में बैठक करेंगे। इसके साथ ही वह लोगों को ‘हर खेत में मेड़, और हर मेड़ में पेड़’ लगाने के लिए भी जागरूक करेंगे। इसके माध्यम से खेतों में पानी बचाने में मदद मिलेगी। उन्होंने दावा किया कि इस तकनीक के ज़रिए बीते पांच सालों में उनके गांव में करीब 1.82 करोड़ लीटर पानी बचाया गया है। उन्हें जल संरक्षण की यह प्रेरणा विनोबा भावे के ‘भूदान आंदोलन’ से मिली।
 

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