उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में फ्लोराइड युक्त पानी एक धीमे ज़हर की तरह लोगों की ज़िंदगी तबाह कर रहा है। 276 गांवों की दो लाख से अधिक आबादी इस खतरनाक प्रदूषण की चपेट में है। कहीं दांत गल चुके हैं, तो कहीं हड्डियां इतनी कमजोर हो गई हैं कि लोग चलने-फिरने से मोहताज हैं। छोटे बच्चे विकलांग पैदा हो रहे हैं, और कई लोग असमय मौत के शिकार हो रहे हैं।
जब ज़िंदगी बन जाए एक कैदखाना-
रोहिनवादामर गांव की 25 वर्षीय रिंकी न चल सकती हैं, न बोल सकती हैं। दिनभर ज़मीन पर पड़ी रहती हैं, इतनी भी ताकत नहीं कि चेहरे पर बैठी मक्खियों को उड़ा सकें। रोहित, एक मासूम बच्चा, मानसिक रूप से अस्वस्थ है। उसका सिर असामान्य रूप से बड़ा है, और वह कुछ मिनट से ज्यादा खड़ा नहीं रह सकता।
फ्लोराइड बना ‘मौत की जड़’
- फ्लोराइड युक्त पानी के कारण कई लोग बिस्तर पर पड़े हैं और वर्षों से हिल-डुल तक नहीं सकते।
- बच्चे जन्म से दिव्यांग पैदा हो रहे हैं, और कईयों की कम उम्र में ही मौत हो रही है।
गांव के बुजुर्ग विजय कुमार शर्मा (60 वर्ष) 2014 से बिस्तर पर हैं। कमर के नीचे का हिस्सा काम करना बंद कर चुका है। उनके लिए उठने-बैठने तक का सहारा सिर्फ एक रस्सी है।
NGT के आदेश भी पड़े बेअसर, लोग ज़हर पीने को मजबूर
सोनभद्र के भूजल में 5-6 गुना अधिक फ्लोराइड मौजूद है, लेकिन NGT के निर्देशों के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। लोग मजबूरी में वही ज़हरीला पानी पी रहे हैं।
फ्लोराइड वाले" कहे जाने लगे लोग
कचनरवा ग्राम पंचायत में 25,000 लोग रहते हैं। यहां हर गली में कई रिंकी और रोहित मिल जाएंगे। गांववालों ने इन्हें ‘फ्लोराइड वाले’ कहना शुरू कर दिया है।
सरकार कब लेगी ठोस कदम?
क्या इस धीमे ज़हर से बचने के लिए कोई समाधान निकलेगा? क्या सरकार इस गंभीर मुद्दे पर ध्यान देगी? अगर अब भी कुछ नहीं किया गया, तो आने वाली पीढ़ियां भी इस त्रासदी का शिकार बनेंगी।