उत्तर प्रदेश का सोनभद्र जिला अब भालुओं का सुरक्षित और हरा-भरा स्वर्ग बन गया है। राज्य का सबसे बड़ा भालू अभ्यारण्य कहलाने वाला यह क्षेत्र, 105 भालुओं का घर है, जिनमें 32 नर और 73 मादा शामिल हैं। यहां की समृद्ध हरियाली और भालुओं के पसंदीदा भोजन की भरपूर उपलब्धता ने इसे उनके लिए आदर्श स्थान बना दिया है, जहां वे स्वतंत्र और सुरक्षित रूप से विचरण कर सकते हैं। सोनभद्र अब न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता, बल्कि वन्यजीव संरक्षण के लिए भी एक मिसाल पेश कर रहा है।
कैमूर वन क्षेत्र: भालुओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि
पिछले दो वर्षों में कैमूर वन रेंज में भालुओं की आबादी में तेज़ी से बढ़ोतरी दर्ज की गई है। पहले जहां इनकी संख्या 60-65 थी, अब यह बढ़कर 105 तक पहुंच गई है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस वृद्धि का मुख्य कारण यहां का अनुकूल वातावरण और प्रचुर मात्रा में भोजन है।
घोरावल: भालुओं का प्राकृतिक वास
घोरावल क्षेत्र के ढढौरा वाटरफॉल के आसपास का चार किलोमीटर का इलाका भालुओं का प्राकृतिक वास है। यहां उन्हें हरे-भरे जंगल और मनपसंद भोजन मिलता है। इस क्षेत्र में उनकी मांदें प्राकृतिक रूप से बनी हुई हैं, जो उन्हें सुरक्षा और आराम प्रदान करती हैं।
शिकार और भोजन की खोज: भालुओं की दिनचर्या
भालू अक्सर शाम के समय शिकार के लिए निकलते हैं। सर्वाहारी होने के कारण वे फल, जड़, कीड़े-मकोड़े और छोटे जीवों का शिकार करते हैं। शिकार के बाद अंधेरा होने से पहले वे अपनी मांद में लौट जाते हैं।
भालू: झुंड के बजाय अकेले रहना पसंद
आम धारणा के विपरीत, भालू झुंड में नहीं रहते। नर भालू अकेले रहना पसंद करते हैं, जबकि मादा भालू अपने बच्चों के साथ रहती हैं और उन्हें शिकार करना सिखाती हैं।
भालुओं की अद्भुत क्षमताएं
भालुओं की घ्राण शक्ति बेहद तीक्ष्ण होती है। वे कई किलोमीटर दूर से शिकार की गंध पहचान लेते हैं। इसके अलावा, वे पेड़ों पर चढ़ने और तैरने में भी माहिर होते हैं। नदी या तालाब में मछलियों का शिकार करना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है।
कैमूर वन क्षेत्र: भालू संरक्षण के लिए आदर्श स्थान
वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. अरविंद कुमार के अनुसार, घोरावल का कैमूर वन क्षेत्र भालुओं के संरक्षण के लिए आदर्श है। यहां हरियाली और जल स्रोतों की उपलब्धता ने इस क्षेत्र को भालुओं के लिए स्वर्ग बना दिया है।
भविष्य की योजनाएं
वन विभाग अब इस क्षेत्र को और विकसित करने की योजना बना रहा है, ताकि भालुओं के लिए यह क्षेत्र और भी अनुकूल बनाया जा सके। इसके तहत जंगलों का विस्तार, जल स्रोतों की वृद्धि और उनके प्राकृतिक आवास की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी। सोनभद्र का यह भालू अभ्यारण्य न केवल वन्यजीव संरक्षण में अहम भूमिका निभाएगा, बल्कि पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बनेगा।