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भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए 2024 के उपचुनाव आगामी विधानसभा चुनावों से पहले एक महत्वपूर्ण अग्निपरीक्षा साबित होने वाले हैं। लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस के गठबंधन से झटका खा चुकी भाजपा अब इन उपचुनावों में बेहतरीन प्रदर्शन कर आगामी चुनावों के लिए अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहती है। इसके लिए पार्टी ने सत्तारूढ़ मंत्रियों को विशेष ज़िम्मेदारियों के साथ चुनावी मैदान में उतार दिया है।
सपा के पीडीए रणनीति से उभरने की कोशिश-
सपा प्रमुख अखिलेश यादव की पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) रणनीति ने लोकसभा चुनाव में भाजपा को भारी नुकसान पहुँचाया था। लेकिन भाजपा अब इस झटके से उबरने का दावा कर रही है। पार्टी ने पिछड़ों और दलितों के बीच कांग्रेस और सपा द्वारा फैलाए गए आरक्षण के भ्रम को भी काफी हद तक खत्म करने का प्रयास किया है। भाजपा इस चुनाव को न सिर्फ लोकसभा चुनाव का हिसाब चुकता करने के रूप में देख रही है, बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों का संदेश देने की तैयारी में भी जुटी है।
30 मंत्रियों को मिली विशेष जिम्मेदारी-
भाजपा की रणनीति साफ है—अपनी सभी मौजूदा सीटों को बचाए रखने के साथ ही विपक्षी खेमे में सेंध लगाना। इसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने 30 मंत्रियों को विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में विशेष ज़िम्मेदारी सौंपी है। इनमें से 14 कैबिनेट मंत्री और 16 राज्य मंत्री हैं, जो जमीनी मोर्चे पर कार्य करेंगे। खासतौर पर, मैनपुरी की करहल सीट, जो अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद खाली हुई है, इस पर चार मंत्रियों को तैनात किया गया है।
उपचुनाव की नौ सीटें: किसके पास है बढ़त?
उत्तर प्रदेश में उपचुनाव की नौ सीटें हैं, जिनमें से आठ सीटें सांसद बने विधायकों के इस्तीफे के बाद खाली हुई हैं, और एक सीट सपा विधायक इरफान सोलंकी के सजा पाने के कारण रिक्त हुई है। वर्तमान में भाजपा और उसके सहयोगी दलों के पास इन नौ में से पांच सीटें हैं, जबकि सपा और कांग्रेस गठबंधन ने अपनी बढ़त बनाई है। लोकसभा चुनाव में 37 सीटें जीतने के बाद सपा का हौसला बुलंद है, और उसने छह सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा भी कर दी है। दूसरी तरफ, भाजपा ने अभी तक अपने प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की है।
रालोद का साथ बढ़ा रहा भाजपा की उम्मीदें-
राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के साथ गठजोड़ भाजपा की संभावनाओं को और मजबूत कर रहा है। रालोद के ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छा प्रभाव है, खासकर पश्चिमी यूपी में। भाजपा इस गठबंधन के जरिए अपने जनाधार का विस्तार करने और विपक्ष को हराने की योजना बना रही है।
जातिगत गोलबंदी से पार पाना बड़ी चुनौती-
उत्तर प्रदेश में जातियों की गोलबंदी हमेशा से चुनावी गणित को प्रभावित करती आई है। नौ सीटों पर होने वाले इस उपचुनाव में जातिगत समीकरण भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बने हुए हैं। विशेष रूप से पिछड़ी और दलित जातियों के मतदाताओं को अपने पक्ष में करना भाजपा के लिए महत्वपूर्ण है। सपा द्वारा बनाई गई पीडीए रणनीति को काउंटर करने के लिए भाजपा को अपनी नीतियों और उम्मीदवारों में बदलाव करने की जरूरत होगी।
आचार संहिता लागू, चुनावी प्रक्रिया की शुरुआत-
प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों के उपचुनाव के लिए निर्वाचन आयोग ने आदर्श आचार संहिता लागू कर दी है। 18 अक्टूबर को अधिसूचना जारी होने के बाद नामांकन की प्रक्रिया शुरू होगी, जिसकी अंतिम तारीख 25 अक्टूबर है। 28 अक्टूबर को नामांकन पत्रों की जांच होगी और 30 अक्टूबर तक प्रत्याशी अपना नाम वापस ले सकेंगे। भाजपा के लिए यह उपचुनाव सत्ता में बने रहने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। पार्टी हर संभव कोशिश कर रही है कि वह अपनी रणनीति के जरिए न सिर्फ उपचुनाव में जीत दर्ज करे, बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों में भी अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखे।
Baten UP Ki Desk
Published : 16 October, 2024, 6:24 pm
Author Info : Baten UP Ki