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आज दिन है-24 अप्रैल। आज ही के दिन भारत में शक्ति विकेन्द्रीकरण के लिए एक नई गवर्नेंस प्रणाली बनायीं गयी थी जिसे हम पंचायत या अन्य लोकल बॉडी के नाम से जानते हैं। इस दिन 73वां संविधान संशोधन लागू हुआ था। इसलिए इसे भारतीय प्रजातंत्र का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता हैं क्योंकि महात्मा गाँधी का मानना था कि भारत की आत्मा गाँवो में बसती है और पंचायती व्यवस्था के जरिये देश की सबसे छोटी इकाई को निर्णय लेने की शक्ति दी गयी। अब चूँकि निर्णय लेने के सत्ता हस्तांतरित हुई तो नयी तरह की अराजकता और भ्रष्टाचार भी पनपने लगा। यही नहीं काम की जटिलता भी बढ़ती गयी जिसके चलते हमने कंप्यूटर और टेक्नोलॉजी को हर क्षेत्र की यहाँ भी समाधान के विकल्प के रूप में देखा। आज हम बात करेंगे पंचायती स्तर पर ई-गवर्नेंस को लागू करने और ई-गवर्नेंस से जुड़ी प्रमुख पहलों के बारे में -
पंचायती राज में ई-गवर्नेंस का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
2004 के दौरान, मिनिस्ट्री ऑफ़ ने पंचायती राज के राज्य मंत्रियों की कई गोलमेज बैठकें आयोजित कीं गयी थी। इसकी 7वीं गोलमेज बैठक के दौरान, पंचायतों के क्षेत्र में आईटी के मुद्दे पर चर्चा करते हुए कई मामलों में इसके उपयोग की सिफारिश की गई। 2005 में, राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने सरकार को पंचायती राज कार्यक्रम के लिए राष्ट्रीय आईटी कार्यक्रम शुरू करने का सुझाव दिया और इसे फण्ड फ्लो की निगरानी से लेकर कई अन्य मामलों में लागू करने की बात कही गयी। इसी को लागू करवाने के लिए ई- पंचायत मिशन मोड प्रोजेक्ट नाम की एक परियोजना बनायीं गयी। 18 मई 2006 को आयोजित कैबिनेट बैठक में, राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (एनईजीपी) के तहत पंचायती राज संस्थानों में ई-गवर्नेंस को मिशन मोड प्रोजेक्ट (एमएमपी) के रूप में अनुमोदित किया गया। परियोजना को अगस्त 2007 में योजना आयोग से सैद्घांतिक मंजूरी मिल गई ।
जिसके बाद साल 2009-10 में 23 करोड़ और 2010-11 में 24 करोड़ आवंटित किये गए। इसके बाद लगातार इस पर अभी काम जारी है। इसके लिए कई तरह की पहलें और योजनाएं भी लायी जा रही है। इसके साथ ही कई तरह के पोर्टल भी लाये जा रहें हैं। अब यह प्रोजेक्ट डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत संचालित किया जा रहा है।
ई-ग्राम स्वराज
ई-पंचायत एमएमपी के तहत, पंचायती राज मंत्रालय ने पंचायत कामकाज के विभिन्न पहलुओं के लिए एक Simplified Task-Based Accounting एप्लिकेशन ईग्राम स्वराज भी लॉन्च किया है। इसके अलावा अभी हाल ही में पंचायती राज मंत्रालय और जेम यानी गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस ने ई-ग्रामस्वराज और जेम को एकीकृत करने की पहल भी की गई है। जिसका उद्देश्य पंचायतों को सीधे ईग्रामस्वराज प्लेटफॉर्म का लाभ उठाते हुए जेम के जरिये से अपने सामान और सेवाओं की खरीद करने में सक्षम बनाना है।
PRIASoft-
PRIASoft की बात करें तो इस एप्लिकेशन लक्ष्य पंचायती राज संस्थाओं के सभी रिसीविंग और एक्सपेंडिचर का ट्रैक रखना है। जिसके जरिये पंचायत के खातों के रखरखाव में पारदर्शिता और जवाबदेही लाकर पंचायती राज संस्थानों के बेहतर वित्तीय प्रबंधन की सुविधा प्रदान करता है।
राष्ट्रीय पंचायत पोर्टल-
ई-पंचायत मिशन मोड प्रोजेक्ट के तहत बनाये गए राष्ट्रीय पंचायत पोर्टल की बात करें तो इसे स्थानीय स्वशासन के बहुमुखी फ्रंट-एंड के रूप में डिजाइन किया गया है, जो इस बात की सूचना देता है कि स्थानीय निकाय द्वारा कौन सी सेवा प्रदान की जाती है।
प्लानप्लस-
इसी तरह के कई अन्य पोर्टल्स और ऍप्लिकेशन्स हैं जैसे प्लानप्लस वार्षिक कार्य योजनाओं की तैयारी में पंचायतों की मदद के लिए बनाया गया है। इसमें जीपीडीपी की तैयारी और कार्यान्वयन की निगरानी के लिए और एफएफसी फंडों की रिलीज और उपयोग की प्रगति के लिए अलग-अलग डैशबोर्ड भी शामिल हैं।
एरिया प्रोफाइलर
इसी तरह एरिया प्रोफाइलर है जो किसी गांव या पंचायत की भौगोलिक, जनसांख्यिकीय, अवसंरचनात्मक, सामाजिक-आर्थिक और प्राकृतिक संसाधन की प्रोफ़ाइल को कैप्चर करता है। राष्ट्रीय संपत्ति निर्देशिका इसी तरह का उपयोगी पोर्टल है जो संपत्तियों का विवरण रखता है।
ई-गवर्नेंस के लाभ
चलते- चलते आपको बता दें कि भारत में लोकल गवर्नेंस पर ई-गवर्नेंस महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सरकारी सेवाओं के डिस्ट्रीब्यूशन में सुधार करने, पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने और शासन में भाग लेने के लिए नागरिकों को सशक्त बनाने में मदद कर सकता है। जिसके चलते ई गवर्नेंस से शासन में होने वाले भ्रष्टाचार में कमी तो आती ही है साथ ही काम करने की क्षमता को बढ़ती है।
Baten UP Ki Desk
Published : 24 April, 2023, 5:39 pm
Author Info : Baten UP Ki