महाकुंभ 2025 का आयोजन न केवल भारतीय संतों बल्कि विदेश में बसे सनातन धर्म के प्रचारकों के लिए भी विशेष अवसर साबित होगा। इस बार महाकुंभ में 240 अंतरराष्ट्रीय संतों और उनकी संस्थाओं को शिविर लगाने के लिए जमीन और सुविधाएं दी जा रही हैं। इनमें ऑस्ट्रिया, ब्रिटेन, नार्वे, नेपाल, भूटान, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जापान, इज़राइल और अमेरिका जैसे देशों से आने वाले संत शामिल हैं।
अंतरराष्ट्रीय संतों का संगम-
महाकुंभ में भाग लेने वाले कुछ प्रमुख संत और उनके देशों में संचालित आश्रमों की सूची:
- स्वामी महेश्वरानंद महाराज (वियना, ऑस्ट्रिया)
- महामंडलेश्वर जयेंद्र दास (फ्रांस)
- स्वामी जीवननंदा दास (यूएसए)
- स्वामी त्यागानंदा दास (यूएसए)
- स्वामी परमेश्वरानंद (एरिज़ोना)
- महामंडलेश्वर राजेश्वरी देवी (टोक्यो, जापान)
- महामंडलेश्वर श्रीदेवी दासी (दक्षिण अमेरिका)
- महामंडलेश्वर ललिता श्रीदासी (यूएसए)
इन संतों के साथ बड़ी संख्या में उनके अनुयायी भी महाकुंभ में शामिल होंगे। इन सभी के लिए विशेष शिविर बनाए जा रहे हैं।
10 जनवरी तक संतों का प्रवेश-
विदेशी संत 10 जनवरी तक महाकुंभ क्षेत्र में प्रवेश करेंगे। ये सभी विभिन्न अखाड़ों के महामंडलेश्वर हैं और सनातन धर्म का प्रसार करने के लिए अपने-अपने देशों में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
शाही स्नान और आध्यात्मिकता का प्रचार-
महाकुंभ में विदेशी संत अपने अखाड़ों के जुलूस में शामिल होकर शाही स्नान करेंगे। 2019 के कुंभ की तरह इस बार भी कुछ विदेशी संतों को महामंडलेश्वर का दर्जा दिए जाने की संभावना है। यह कदम हिंदू धर्म और सनातन संस्कृति के वैश्विक प्रसार में मील का पत्थर साबित हो रहा है।
जमीन आवंटन प्रक्रिया-
प्रयागराज मेला प्राधिकरण ने 31 दिसंबर 2024 तक शिविर के लिए जमीन आवंटित करने की समय-सीमा तय की है।
- अब तक लगभग 6,000 संस्थाओं को जमीन आवंटित की जा चुकी है।
- 2019 के कुंभ में यह संख्या 5,500 थी।
इस बार महाकुंभ का क्षेत्रफल 4,000 हेक्टेयर तक विस्तारित होगा, जो 2019 के 3,300 हेक्टेयर से अधिक है।
विश्व को जोड़ता सनातन धर्म-
महाकुंभ अब केवल भारत का उत्सव नहीं रहा, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर हिंदू धर्म और आध्यात्मिकता का प्रतीक बन गया है। विदेशी संतों की भागीदारी से महाकुंभ की महत्ता और भी बढ़ गई है। इन संतों के माध्यम से सनातन धर्म की ध्वजा पूरी दुनिया में गर्व से लहरा रही है। महाकुंभ 2025 न केवल आस्था का महापर्व है, बल्कि यह पूरी दुनिया को एक आध्यात्मिक सूत्र में बांधने का अनूठा अवसर भी है।