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काशी के जीआई (भौगोलिक संकेतक) उत्पादों की सूची में एक और अनमोल धरोहर जुड़ने जा रही है। बनारस की पवित्र मिट्टी से बनी लक्ष्मी-गणेश की अद्वितीय मूर्तियों के लिए जीआई रजिस्ट्रेशन का आवेदन किया गया है। इस प्राचीन कला को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए आवेदन भेजा गया है। इसके साथ ही लखनऊ के क्ले क्राफ्ट और मेरठ के प्रसिद्ध बिगुल को भी जीआई रजिस्ट्रेशन के लिए चेन्नई स्थित रजिस्ट्री कार्यालय भेजा गया है, जो इन कलाओं को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने में सहायक साबित होंगे।
काशी बनेगा देश का सबसे बड़ा जीआई केंद्र
काशी की ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन, जो पूरे देश में जीआई उत्पादों को प्रमोट करने का काम कर रही है, ने लद्दाख से काशी तक के उत्पादों का परीक्षण कर जीआई पंजीकरण के लिए भेजा है। काशी अब देश का सबसे बड़ा जीआई केंद्र बन चुका है, जहां अब तक 32 जीआई उत्पाद शामिल हो चुके हैं। एसोसिएशन ने मात्र पांच महीनों में 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से 80 जीआई आवेदन जमा किए हैं, जो जीआई रजिस्ट्री चेन्नई को भेजे गए हैं
क्या होता है GI टैग?
जीआई टैग, यानी भौगोलिक संकेतक (Geographical Indications), किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र से जुड़े उत्पाद को प्रमाणित करने के लिए दिया जाने वाला एक विशेष टैग होता है। यह टैग उस क्षेत्र के उत्पाद की विशिष्टता, गुणवत्ता, और पहचान को दर्शाता है। किसी क्षेत्रीय उत्पाद की ख्याति जब देश-विदेश में फैलती है, तो उसकी पहचान और विशेषता को आधिकारिक मान्यता देने के लिए जीआई टैग का उपयोग किया जाता है। भारत में जीआई टैग के लिए दिसंबर 1999 में 'भौगोलिक संकेतक वस्त्र अधिनियम' (Geographical Indications of Goods (Registration and Protection) Act, 1999) पारित किया गया था, जिसे 2003 में लागू किया गया। इसके तहत, भारत के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले विशिष्ट उत्पादों को जीआई टैग देने की प्रक्रिया शुरू की गई।
किन उत्पादों को दिया जाता है GI टैग?
कृषि उत्पाद:
हस्तशिल्प:
औद्योगिक उत्पाद:
खाद्य सामग्री:
कैसे मिलता है GI टैग?
किसी उत्पाद के लिए जीआई टैग प्राप्त करने के लिए, उस उत्पाद को बनाने वाले संगठनों या एसोसिएशनों को आवेदन करना होता है। इसके लिए एक कलेक्टिव बॉडी या सरकारी संस्था भी आवेदन कर सकती है। आवेदन प्रक्रिया के दौरान, उत्पाद की विशेषता, उसकी भौगोलिक पहचान, और उस परंपरा के बारे में पूरी जानकारी देनी होती है, जिसके आधार पर उसे जीआई टैग दिया जाता है।
जीआई टैग न केवल उत्पाद की विशिष्टता को संरक्षित करता है बल्कि उसकी गुणवत्ता और पहचान को भी मान्यता देता है, जिससे उसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान और सुरक्षा मिलती है।
जीआई उत्पादों की बढ़ती संख्या
जीआई विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत के अनुसार, इस वित्तीय वर्ष अप्रैल से अगस्त 2024 के दौरान 80 उत्पादों के जीआई पंजीकरण के लिए आवेदन किया गया है। इसमें उत्तर प्रदेश से 7, राजस्थान से 10, छत्तीसगढ़ से 3, गुजरात से 3, त्रिपुरा से 9, असम से 4, झारखंड से 6, हरियाणा से 3, जम्मू-कश्मीर से 20, लद्दाख से 6, बिहार से 3 और अरुणाचल प्रदेश से 6 उत्पाद शामिल हैं।
25 हजार करोड़ रूपये से ज्यादा का कारोबार
डॉ. रजनीकांत ने बताया कि पिछले वर्ष के 75 जीआई आवेदनों को पीछे छोड़ते हुए इस वर्ष 80 जीआई आवेदन दर्ज किए गए हैं। वाराणसी और उसके आसपास के जनपदों में अब तक 34 जीआई टैग हैं, जो इसे न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में सर्वाधिक जीआई उत्पादों का केंद्र बनाता है। इससे लगभग 20 लाख लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं और 25,500 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार कर रहे हैं।
12 प्रदेशों के 80 जीआई उत्पाद
जीआई पंजीकरण के लिए भेजे गए 80 उत्पादों में कुछ प्रमुख नाम शामिल हैं, जैसे बनारस क्ले क्राफ्ट, लखनऊ क्ले क्राफ्ट, मेरठ बिगुल, राजस्थान का रावणहत्था, जोधपुर वुड क्राफ्ट, जयपुर मार्बल क्राफ्ट, बस्तर स्टोन क्राफ्ट, छत्तीसगढ़ पनिका साड़ी, झारखंड डोकरा, पंछी परहन साड़ी, जादू पटिया पेंटिंग, त्रिपुरा केन क्राफ्ट, त्रिपुरा बम्बू क्राफ्ट, लद्दाख चिली मेटल क्राफ्ट, लेह लिकिर पाटरी, लेह चाल टेक्सटाईल, कश्मीर अम्बरी सेव एवं महराजी सेव, अखरोट, काश्मीरी नदरू, काश्मीरी हाक, किश्तवार चिलगोजा, गुरेज राजमाश, किश्तवारी ब्लैकेट आदि।
Baten UP Ki Desk
Published : 31 August, 2024, 1:25 pm
Author Info : Baten UP Ki