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बच्चों को स्कूल आने से मिड-डे मील भी नहीं कर सका आकर्षित! एक साल में घटे इतने लाख नामांकन

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भारत के सरकारी स्कूलों की हालत पर एक बार फिर सवाल खड़े हो गए हैं। शिक्षा मंत्रालय द्वारा साझा किए गए ताजा आंकड़े दर्शाते हैं कि 2024-25 में देश के 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कक्षा 1 से 8 तक के सरकारी स्कूलों में छात्रों के नामांकन में भारी गिरावट आई है। यह गिरावट सिर्फ संख्या में नहीं, बल्कि जनता के भरोसे में भी दिख रही है। सबसे चौंकाने वाली स्थिति उत्तर प्रदेश की है, जहाँ 21.83 लाख बच्चों का नामांकन कम हुआ है। इसके बाद बिहार (6.14 लाख), राजस्थान (5.63 लाख) और पश्चिम बंगाल (4.01 लाख) का स्थान है।

सिर्फ आंकड़े नहीं, एक गंभीर संकेत

एक साल में लाखों बच्चों का सरकारी स्कूलों से हट जाना कोई सामान्य बात नहीं है। यह इस ओर इशारा करता है कि या तो बच्चों ने स्कूल छोड़ा है, या फिर माता-पिता ने उन्हें प्राइवेट स्कूलों में दाखिला दिलाना शुरू कर दिया है — यानी सरकारी स्कूलों से भरोसा कम हो रहा है।

मिड-डे मील से भी हट रहे हैं बच्चे

PM POSHAN योजना (जिसे पहले मिड-डे मील स्कीम कहा जाता था) का मकसद था कि बच्चों को पोषण मिले, और वे स्कूल आने को प्रेरित हों। लेकिन अब इस स्कीम में भी गिरावट देखने को मिल रही है। दिल्ली में इस योजना से जुड़े 97,000 बच्चों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी लाखों बच्चों ने योजना का लाभ नहीं उठाया। कई राज्यों का तर्क है कि बच्चे अब घर से टिफिन ला रहे हैं। पर सवाल उठता है — क्या ये वाकई बच्चों की ‘चॉइस’ है, या स्कूल में मिलने वाले खाने की गुणवत्ता इतनी खराब है कि बच्चे खाना ही छोड़ रहे हैं?

मंत्रालय ने मांगी रिपोर्ट, फर्जीवाड़े की भी आशंका

शिक्षा मंत्रालय ने सभी राज्यों से 30 जून तक रिपोर्ट मांगी है — कि नामांकन क्यों घटा, और क्या कदम उठाए जा रहे हैं। मंत्रालय के कुछ अधिकारियों ने यह भी बताया कि इस बार डेटा कलेक्शन का तरीका बदला गया हैअब स्कूल के हिसाब से नहीं, बल्कि बच्चे के आधार पर गिनती हो रही है, जिससे फर्जी एंट्री हटाई जा रही हैं। साथ ही, कोविड-19 के बाद भी नामांकन ट्रेंड बदलने लगे हैं। कई अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में शिफ्ट कर चुके हैं।

शिक्षा की हालत — एक रिपोर्ट से तस्वीर साफ

ASER 2024 रिपोर्ट के मुताबिक:

  • ग्रामीण भारत में केवल 50% कक्षा 5 के छात्र ही कक्षा 2 का पाठ पढ़ पाते हैं।

  • केवल 30% बच्चे ही साधारण गणित (जैसे भाग) कर सकते हैं।

  • 10 लाख शिक्षकों की कमी है।

  • केवल 72% सरकारी स्कूलों में ही लड़कियों के लिए उपयोग योग्य शौचालय हैं।

  • 77.7% स्कूलों में ही पीने का साफ पानी उपलब्ध है।

सरकारी स्कूलों में नामांकन अब घटकर 67% पर गया है। 

शिक्षा-हक है, लक्ज़री नहीं

यह स्पष्ट है कि सरकारी स्कूलों से बच्चों का हटना इस बात का संकेत नहीं है कि वे पढ़ना नहीं चाहते — बल्कि यह सिस्टम की नाकामी है, जो उनका भरोसा जीत पाने में असफल रही है। हर सरकार बार-बार कहती है कि "शिक्षा हमारी प्राथमिकता है", लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी सुना रहे हैं।

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