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भारतीय रसोई में मसालों की अपनी अलग पहचान होती है, और उनमें से एक खास मसाला है हींग। हींग का भारतीय व्यंजनों में प्रमुखता से इस्तेमाल किया जाता है। इसके बिना दाल और सब्जियों का स्वाद अधूरा लगता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस हींग को हम स्वाद और हाजमे के लिए खाते हैं, उसे अंग्रेजी में 'Devil's Dung' यानी 'शैतान का गोबर' कहा जाता है? इस अजीब से नाम के पीछे एक दिलचस्प कहानी छिपी हुई है।
जब ब्रिटिश भारत आए, तो उन्होंने यहां के मसालों का स्वाद लेना शुरू किया। हींग का तीखा और तीव्र स्वाद उनके लिए नया अनुभव था। इसे ज्यादा मात्रा में इस्तेमाल करने पर यह मसाला तीखा जलन पैदा कर सकता है। यही वजह थी कि अंग्रेजों ने इसकी तीव्र महक और गाढ़े ढेले के रूप को देखकर इसे 'Devil's Dung' या 'शैतान का गोबर' कहा। इसका स्वाद और महक दोनों ही उनके लिए असहनीय थे। अंग्रेजी में इसका नाम 'Asafoetida' है, जो कि पारसी शब्द 'Asa' (गोंद) और लैटिन शब्द 'Foetida' (तेज गंध) से आया है। इसका मतलब ही तेज गंध वाला गोंद होता है। इसका कच्चा रूप इतना तीखा होता है कि इसे हाथ से छुने के बाद हाथ धोना भी एक चुनौती बन जाती है। यही कारण है कि प्रोसेसिंग के बाद ही इसे भारतीय व्यंजनों में इस्तेमाल किया जाता है।
हींग का उपयोग सिर्फ खाने में स्वाद बढ़ाने के लिए ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी माना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार, हींग को पेट से जुड़ी समस्याओं के लिए रामबाण माना जाता है। यह पाचन को सुधारने में मदद करती है और पेट की समस्याओं जैसे गैस और अपच को दूर करती है। इसके साथ ही, हींग एक प्राकृतिक एंटीसेप्टिक का काम भी करती है।
इतिहासकारों का मानना है कि हींग को भारत में सिकंदर महान की सेना द्वारा लाया गया था। प्राचीन ग्रंथों में भी हींग का उल्लेख मिलता है, जिसमें महाभारत एक प्रमुख स्रोत है। इसका मतलब है कि हींग भारतीय संस्कृति और खानपान का हिस्सा सदियों से है।
हींग का प्रमुख स्रोत भारत नहीं, बल्कि अफगानिस्तान है। भारतीय बाजार में बिकने वाली 90% हींग अफगानिस्तान से आयात की जाती है। बाकी 8% उज्बेकिस्तान और 2% ईरान से आता है। अफगानिस्तान से आयात की जाने वाली हींग की मात्रा करीब 1,500 टन सालाना होती है, और इसका कारोबार लगभग 1,000 करोड़ रुपए का है। तालिबान के शासन में आने के बाद इस व्यापार में थोड़ी बाधाएं आईं, लेकिन व्यापार अब भी जारी है। अफगानिस्तान की सफेद हींग, जो पानी में घुलनशील होती है, भारतीय व्यंजनों में सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाती है। वहीं, अन्य देशों से आने वाली लाल हींग तेल में घुलनशील होती है।
उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले को हींग उत्पादन के लिए विशेष पहचान मिली है। यहां की हींग को हाल ही में जीआई (Geographical Indication) टैग मिला है, जिससे इसका व्यापार और बढ़ने की उम्मीद है। हाथरस में हींग का व्यापार 150 साल पुराना है, और यह यहां की स्थानीय अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है। जीआई टैग मिलने से यहां के लगभग 15,000 से अधिक लोग सीधे इस कारोबार से जुड़े हुए हैं। यहां की लगभग 100 फैक्ट्रियों में हींग तैयार की जाती है, जो ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ODOP) योजना का हिस्सा भी है। इससे स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
हाथरस की हींग को जीआई टैग मिलने से यह विश्वस्तर पर भी अपनी जगह बना रही है। भारतीय हींग अब दुनिया भर में अपनी गुणवत्ता और शुद्धता के लिए जानी जाती है। हालांकि अभी भारत खुद हींग का उत्पादन नहीं करता, लेकिन आने वाले समय में भारत इस दिशा में भी कदम बढ़ा रहा है। हाथरस में हींग उत्पादन के बढ़ने से भारत में इसकी मांग को पूरा करने की उम्मीद है।
हींग को 'शैतान का गोबर' कहे जाने के पीछे चाहे जो भी कारण हो, लेकिन भारतीय व्यंजनों में इसका स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। इसके तीखे स्वाद और स्वास्थ्य लाभ इसे खास बनाते हैं। अफगानिस्तान से आने वाली हींग और उत्तर प्रदेश के हाथरस की जीआई टैग वाली हींग ने इसे भारत और विश्व में एक अलग पहचान दिलाई है।
Baten UP Ki Desk
Published : 12 September, 2024, 7:34 pm
Author Info : Baten UP Ki