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काशी ने GI टैग में फिर मारी बाजी

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सुंदर घाट और तमाम मंदिरों के लिए मशहूर उत्तर प्रदेश का वाराणसी शहर एक बार फिर चर्चा का केंद्र बन गया है। लाखों भक्तों की आस्था से संबंधित काशी अब जीआई (Geographical Indications) हब बन गई है। इस शहर का खास बनारसी लंगड़ा आम, बनारसी पान, रामनगर के भंटा (सफेद गोल बैगन) और आदमचीनी चावल को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन का टैग मिला है। इस उपलब्धि के बाद उत्तर प्रदेश को 11 और GI टैग मिल गए हैं। अब इनकी कुल संख्या 45 हो गई है, जिसमें से 22 काशी से जुड़े हैं। पूरे प्रदेश से करीब 20 उत्पादों (Product) का आवेदन जीआई टैग के लिए किया गया था। फिलहाल 11 उत्पादों को इस लिस्ट में जगह मिल गई है। उम्मीद है कि बाकी के 9 उत्पादों को भी अगले माह के अंत तक इस टैग में शामिल किया जाएगा। इसमें बनारस का लाल पेड़ा, बनारसी ठंडाई, तिरंगी बर्फी और बनारस के लाल भरवा मिर्च के साथ चिरईगांव का करौंदा भी होगा। 

क्या है GI टैग 
जब कोई उत्पाद किसी क्षेत्र की पहचान बन जाए, जिसकी प्रसिद्धि देश-विदेश में हो, तो उसे प्रमाणित करने के लिए एक प्रक्रिया होती है। जिसे ज्योग्राफिकल इंडिकेशन या जीआई कहा जाता है। इसे आम भाषा में भौगोलिक संकेतक नाम से भी जाना जाता है। 

GI टैग का इतिहास 
दरअसल, संसद में उत्पाद के रजिस्ट्रेशन और संरक्षण के लिए दिसंबर 1999 में एक विधेयक पारित किया गया, जिसे Geographical Indications Of Goods (Registration and Protection) Act 1999 के नाम से जाना गया। इस बिल को 2003 में लागू किया गया जिसके तहत भारत में पाए जाने वाले प्रोडक्ट्स को जीआई टैग देने सिलसिला शुरू हो गया।  

GI टैग की प्रक्रिया 
जीआई टैग के लिए सबसे पहले आवेदन करना पड़ता है। इसके लिए उत्पाद बनाने वाली एसोसिएशन टैग के लिए अप्लाई करती है। एप्लीकेशन में उन्हें यह प्रूफ करना होता है कि उन्हें यह टैग क्यों दिया जाए। जिसके बाद संस्था सभी चीजों का बारीकी से परिक्षण करती है। सभी मानकों पर खरा उतरने वाले उत्पाद को  जीआई का टैग मिल जाता है। 

GI टैग से लाभ 
जीआई टैग का सर्टिफिकेट मिलने के बाद उसका इस्तेमाल एक ही प्रोडक्ट ग्रुप कर सकता है। इस टैग को फिलहाल 10 साल के लिए ही दिया जाता है, हालांकि ओनर अगर चाहे तो वह उसे रिन्यू भी करा सकता हैं। जीआई टैग मिलने का एक सबसे बड़ा फायदा ये हैं कि यह टैग मिलने के बाद उत्पाद का मूल्य और उससे जुड़े लोगों की अहमियत मार्किट में बढ़ जाती है। इसके साथ ही इससे फेक प्रोडक्ट्स को परखने और उसे रोकने में भी मदद मिलती है।

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