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32 लाख किलोमीटर स्क्वायर का एरिया, 130 करोड़ की आबादी, 28 छोटे बड़े राज्य, 8 यूनियन टेर्रीटोरिएस और हर किसी की अपनी एक विशेष पहचान। और ये पहचान भारत के हर राज्य को अपने वहां पायी जाने वाली संस्कृति, खान -पान ,उत्पादित वस्तुओं के आधार पर है। इसी पहचान को अलग बनाने के लिए हर राज्य की कुछ स्पेशल चीजों को जीआई टैग (GI Tag) दिया जाता है। और अब इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश के तीन और उत्पादों को जीआई टैग दिया गया है। जिसके बाद अब एक बड़ी ही ख़ास चीज़ हुई है और वो ये कि अब हमारा यूपी सबसे ज्यादा जीआई टैग वाले सामान की लिस्ट में देशभर में दूसरे नंबर पर आ चुका है। जिन चीज़ों को शामिल किया गया है उनकी बात करें तो इसमें सबसे पहला है ओ.डी.ओ.पी. शिल्प- मैनपुरी तारकाशी। जोकि मैनपुरी जिले की एक अनूठी और कलात्मक कृति है। इसका इतेमाल ज्वेलरी के बक्से, नेमप्लेट और दूसरे समान को सजाने के लिए किया जाता है। दूसरा है महोबा का गौरा स्टोन क्राफ्ट। ये चमकीले सफेद रंग के पत्थर से बना होता है जो मुख्य रूप से इस क्षेत्र में ही पाय जाता है। गौरा स्टोन का टेक्सचर सॉफ्ट होता है। इन्हें कई टुकड़ों में काटा जाता है और फिर इन्हें कई तरह के सजावटी स्टोन क्राफ्टस बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। फटाफट से तीसरे प्रोडक्ट पर आते हैं जिसका नाम है संभल सींग शिल्प। इन्हें इस लिस्ट में शामिल किया गया है क्यूंकि संभल में बने हॉर्न-बोन हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट बड़े फेमस हैं। इन शिल्प वस्तुओं को बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला कच्चा माल मरे हुए जानवरों से मिलता है। खैर अब इन सभी प्रोडक्ट्स को शामिल करने के बाद अब उत्तर प्रदेश के gi टैग खाते में कुल 48 प्रोडक्ट्स शामिल हो गए हैं और यूपी इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर आ गया है। पर सवाल उठता है कि अगर यूपी दूसरे नंबर पर है तो भई पहले नंबर पर कौन स राज्य है। पहले नंबर पर है तमिलनाडु जिसके पास कुल 55 जीआई-टैग वाले सामान हैं। वहीँ तीसरे नंबर पर है कर्नाटक जिसके पास 46 जीआई प्रोडक्ट हैं। यानी कि एक तरह से देखा जाए तो अब यूपी को तमिलनाडु को पछाड़ने और देश में पहले नंबर पर आने के लिए सिर्फ 7 और प्रोडक्ट्स की जरूरत है। वैसे इसमें भी एक ख़ास बात ये है कि जीआई-टैग वाले हस्तशिल्प के मामले में यूपी पहले स्थान पर है, यूपी के 48 जीआई सामानों में 36 उत्पाद हैंडीक्राफ्ट कैटेगरी के हैं जिसमें अकेले वाराणसी क्षेत्र में, 23 में से 18 जीआई-टैग वाले सामान हस्तशिल्प की केटेगरी में आते हैं। खैर अब gi टैग की बात करें तो वर्ल्ड इंटलैक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइजेशन (WIPO) के मुताबिक जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग एक तरह का लेबल होता है जिसमें किसी प्रोडक्ट को एक ख़ास भौगोलिक पहचान दी जाती है। ऐसा प्रोडक्ट जिसकी विशेषता या फिर प्रतिष्ठा मुख्य रूप से प्राकृति और मानवीय कारकों पर निर्भर करती है। भारत में, भौगोलिक संकेतक पंजीकरण माल के भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 द्वारा इसे प्रशासित किया जाता है जो सितंबर 2003 से प्रभावी हुआ। दार्जिलिंग चाय जीआई टैग पाने वाला पहला भारतीय उत्पाद था। gi टैग के मामले में हालांकि कई बार ऐसा भी होता है कि एक से ज्यादा राज्यों में बराबर रूप से पाई जाने वाली फसल या किसी प्राकृतिक वस्तु को उन सभी राज्यों का मिला-जुला GI टैग दिया जाता है। जैसे बासमती चावल जिस पर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों सभी का अधिकार है। भारत में वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाले डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्री प्रमोशन एंड इंटरनल ट्रेड की तरफ से जीआई टैग दिया जाता है। इसे हासिल करने के लिए चेन्नई स्थित जीआई डेटाबेस में अप्लाई करना पड़ता है। इसके अधिकार व्यक्तियों, उत्पादकों और संस्थाओं को दिए जा सकते हैं एक बार रजिस्ट्री हो जाने के बाद 10 सालों तक यह ये टैग मान्य होते हैं, जिसके बाद इन्हें फिर रिन्यू करवाना पड़ता है।
Baten UP Ki Desk
Published : 18 May, 2023, 5:32 pm
Author Info : Baten UP Ki