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अरुण को कहां मिले राम? बालत्व, देवत्व की छवि वाली मूर्ति कैसे हुई तैयार?

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राम केवल अयोध्या के राजा ही नहीं, माता सीता के पति, रावण के संहारक या केवट के तारणहार ही नहीं हैं बल्कि राम हर व्यक्ति के जीवन में, हर कदम पर अनुकरणीय हैं, वह ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ हैं। यह विशेषण केवल भगवान राम के लिए ही प्रयोग किया जाता है। ऐसे भगवान राम के बाल्य रूप का वर्णन करना यानि उनकी मूर्ति को तैयार करना कितना चैलेंजिंग रहा होगा। कल से ही भगवान राम के जिस बाल्य स्वरूप के दर्शन आप सभी कर रहे हैं, क्या आप जानते हैं कि इस बाल्य स्वरूप को साकार करने के लिए मूर्तिकार ने कितनी मेहनत की है। कितनी तस्वीरों को देखा गया है, जिसके बाद प्रभु श्रीराम का ये स्वरूप हम सबके सामने आया है। भगवान के बाल्य रुप की यह मूर्ति एक मूर्ति न होकर उनके कितने अवतारों को एकसाथ प्रदर्शित कर रही है। आइए आपको विस्तार से बताते हैं भगवान की मूर्ति को तैयार करने की कहानी और इसको किसने तैयार किया है...

मूर्ति एक अवतार अनेक-

भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या में 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। जिसके लिए गर्भगृह में रामलला की मूर्ति स्थापित की जा चुकी है। शुक्रवार को रामलला की मूर्ति की पहली झलक सबके सामने आई थी। भगवान के इस बाल्य रूप का दर्शन करते ही श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो गए। आपको बता दें कि भगवान की इस एक मूर्ति में उनके कई अवतारों का वर्णन किया गया है। भगवान राम का यह विग्रह बेहद सुंदर और भावुक कर देने वाला है। इस विग्रह को काले पत्थर से बनाया गया है। भगवान की इस मूर्ति में उनकी आयु 5 वर्ष बताई गई है। उनके चारों कई प्रतीक बनाए गए हैं।

बालत्व, देवत्व और राजकुमार की छवि- 

जहां भगवान राम की मूर्ति में पांच साल के बच्चे की बाल सुलभ कोमलता झलक रही है वहीं मूर्ति में बालत्व, देवत्व और एक राजकुमार तीनों की छवि दिखाई दे रही है। जिस मूर्ति का चयन हुआ है उसको मूर्तिकार अरुण योगीराज ने बनाया है।

विग्रह के खास चिह्न-
 
बताया जाता है कि आम तौर पर जो प्रकट विग्रह होते हैं वो कुछ ख़ास चिह्न लेकर प्रकट होते हैं जो कि उनकी शक्ति को बढ़ा देते हैं। मूर्तिकार ने इसी बात का विशेष ध्यान रखा गया है। अगर ध्यान से देखें तो कहीं से भी पत्थर को तोड़ा नहीं गया है। श्री राम लला विराजमान के मस्तक के ठीक ऊपर भगवान सूर्य नारायण का प्रतीक है। भगवान राम सूर्यवंशी हैं इसलिए उनके मस्तक के ऊपर आशीर्वाद के रूप में सूर्य नारायण को रखा गया है।

ॐ और स्वस्तिक,चक्र और गदा-

मूर्ति के दाएं ओर ॐ और स्वस्तिक का चिह्न है।  शिवपुराण विद्येश्वर संहिता के मुताबिक शिव के पांच मुख है और ॐ उनके मुख से निकली पहली ध्वनि है। जानकारों के मुताबिक शब्द सिद्धि के लिए ॐ बेहद ज़रूरी है इसलिए मूर्तिकार ने ॐ के प्रतीक को बनाया है। इसके बाद स्वास्तिक को भी जगह दी, जिसके बिना कोई शुभ कार्य नहीं हो सकता है। विग्रह के बायीं ओर देखे तो चक्र और गदा है। इसका सीधा सम्बन्ध भगवान विष्णु से है। दरअसल विष्णु को देवताओं का नायक कहा गया है। इस विग्रह को चक्र गदा से आभामंडित किया गया है।

श्री विष्णु के 10 अवतार-

मूर्ति को ध्यान से देखने से पता चलता है कि दाएं और बाएं दोनों ओर श्री विष्णु के 10 अवतारों के प्रतीकों को उकेरा गया है। मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि अवतार को दोनों ओर जगह दी गई है। 

हनुमान जी और गरुड़ को भी दिया स्थान-

मूर्ति की दायीं ओर वामन अवतार के नीचे हनुमान जी विराजमान है जो शिव के रूद्र रूप हैं और त्रेता में उन्होंने श्री राम की सेवा के लिए रुद्रावतार लिया था। बाईं ओर कल्कि अवतार के प्रतीक के नीचे गरुड़ विराजित हैं। महाभारत के अनुसार ऋषि कश्यप और विनता के पुत्र गरुड़ को श्री विष्णु ने अपना वाहन बनाया था। इसलिए मूर्तिकार ने इस बात का भी विशेष ध्यान देते हुए गरुड़ को श्री राम के चरण के पास स्थान दिया है।

मूर्ति की ऊंचाई, वजन एवं आयु-

मूर्ति की विशेषताओं को देखा जाए तो इसमें कई तरह की खूबियां दिखाई दे रही हैं। मूर्ति श्याम शिला से बनाई गई है जिसकी आयु हजारों साल होती है। इसके साथ ही मूर्ति को जल से कोई नुकसान नहीं होता है। जानकारों के मुताबिक चंदन, रोली आदि लगाने से भी मूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। मूर्ति का वजन करीब 200 किलोग्राम है। इसकी कुल ऊंचाई 4.24 फीट, जबकि चौड़ाई तीन फीट है। भगवान की मूर्ति कमल दल पर खड़ी मुद्रा में है। हाथ में तीर और धनुष है। मूर्ति को कृष्ण शैली में बनाया गया है। 

गांव में मिले पत्थर से बनी रामलला की मूर्ति- 

रामलला की मूर्ति को जिस पत्थर से बनाया गया है उसके बारे में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य और उडुपी के संत विश्वप्रसन्ना तीर्थ स्वामी बताते हैं कि अरुण योगीराज ने रामलला की प्रतिमा को कर्नाटक के काले पत्थर से तैयार किया है। इसे करकला के नेल्लिकारू गांव से अयोध्या ले जाया गया था। ये पत्थर पवित्र माना जाता है इसलिए साउथ इंडिया में इसी से हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाई जाती हैं। 

कौन हैं अरुण योगीराज कैसे तैयार हुई मूर्ति-

22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के चलते गर्भगृह में रामलला की मूर्ति स्थापित की जा चुकी है। शुक्रवार को रामलला की मूर्ति की पहली झलक भी सामने आई है। इस मूर्ति को कर्नाटक के रहने वाले अरुण योगीराज ने बनाया है। आपको बता दें कि मूर्तिकार अरुण योगीराज कर्नाटक के मैसूर के रहने वाले हैं। उनकी कई पीढियां इसी काम से जुड़ी हुई हैं। उनके पिता योगीराज शिल्पी एक बेहतरीन मूर्तिकार हैं और उनके दादा बसवन्ना शिल्पी ने वाडियार घराने के महलों में अपनी कला प्रदर्शित की है। अरुण मूर्तिकार का मैसूर राजा के कलाकारों के परिवार से संबंध है। 

अरुण ने कहां-कहां खोजे राम-

अरुण के परिवारवालों के मुताबिक जब अरुण को रामलला की प्रतिमा बनाने का काम मिला तो उन्होंने बच्चों की 2000 से ज्यादा फोटो देखीं। महीनों तक बच्चों को ऑब्जर्व करते रहे। अरुण स्कूल, समर कैंप, पार्क जाने लगे। वहां कई-कई घंटे बच्चों को खेलते हुए देखा करते थे। उसके बाद कहीं जाकर अरुण को शायद भगवान का स्वरूप मिल पाया। इसकी शुरुआत 2023 से हुई। जब राम मंदिर ट्रस्ट ने रामलला की प्रतिमा बनाने के लिए नोटिफिकेशन जारी किया था। मई में अरुण दिल्ली गए, वहां उन्होंने प्रजेंटेशन दिया और सिलेक्ट हुए। 

अरुण योगीराज नहीं बनना चाहते थे मूर्तिकार-

शुरुआत में अरुण योगीराज अपने पिता और दादा की तरह मूर्तिकार नहीं बनना चाहते थे। उन्होंने 2008 में मैसूर यूनिवर्सिटी से एमबीए की पढ़ाई करने के बाद एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी की। हालांकि, उनके दादा ने कहा था कि अरुण एक मूर्तिकार ही बनेगा और अंत में वही हुआ। अरुण एक मूर्तिकार बने और ऐसे मूर्तिकार बने जिन्होंने साक्षात रामलला की मूर्ति बनाई जिसका सेलेक्शन भी हुआ।

अरुण योगीराज ने बनाई हैं कई मूर्तियां-

अरुण योगीराज ने सिर्फ रामलला की ही मूर्ति नहीं बनाई है, बल्कि उन्होंने इससे पहले कई और भी मूर्तियां बनाई हैं, जिसके लिए उनकी तारीफ भी की गई है। अरुण योगीराज ने इंडिया गेट के पास स्थापित सुभाष चंद्र बोस की 30 फीट की मूर्ति बनाई। इसके अलावा अरुण योगीराज ने भगवान आदि शंकराचार्य की 12 फीट की मूर्ति बनाई। जिसकी स्थापना केदारनाथ में की गई है। इसके साथ ही उन्होंने मैसूर में स्थापित भगवान हनुमान की 21 फीट की मूर्ति भी बनाई है।

इन तीन मूर्तिकारों में अरुण की बनाई गई मूर्ति का हुआ चुनाव-

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