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किस भगवान की नहीं होती प्राण प्रतिष्ठा? 1500 साल बाद हो रहा ऐसा भव्य अनुष्ठान, 60 घंटे तक होगा मंत्रोच्चारण

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(Special Story) भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में अब कुछ ही दिन शेष बचे हैं। भगवान की प्राण प्रतिष्ठा की विशेष पूजा आज से शुरू हो गई है। आज यानि कि 16 जनवरी से प्राण प्रतिष्ठा की पूजा शुरू हो चुकी है जोकि 21 जनवरी तक चलेगी। इस पूजा में डॉ.अनिल मिश्र दंपति ही मुख्य भूमिका में रहेंगे। वे PM नरेंद्र मोदी के प्रतिनिधि के तौर पर 60 घंटे का शास्त्रीय मंत्रोच्चारण सुनेंगे, जबकि 7वें दिन PM मोदी प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होंगे। उस दिन ही वह भोग अर्पित करेंगे और आरती भी करेंगे। जानकारों के मुताबिक ऐसी भव्य पूजा आज से करीब 1500 साल पहले राजा हर्षवर्धन के काल में हुआ करती थी। आइए विस्तार से जानते हैं कि कैसी होगी प्राण प्रतिष्ठा की पूजा और क्यों होगी ये सबसे खास...

पूजा में कौन-कौन रहेगा शामिल-

प्राण प्रतिष्ठा के इस विशेष कार्यक्रम में मुख्यरूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, UP CM योगी आदित्यनाथ, UP की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मंदिर ट्रस्ट अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास, संघ प्रमुख मोहन भागवत और डॉ. अनिल मिश्रा दंपति मुख्य आयोजन के समय 22 जनवरी को उपस्थित रहेंगे। प्रधानमंत्री मोदी गर्भगृह में अपने हाथ से कुशा और शलाका खींचेंगे। उसके बाद रामलला प्राण प्रतिष्ठित हो जाएंगे। उससे पहले आज से 21 जनवरी तक 6 दिन की पूजा में डॉ. मिश्रा दंपती ही मुख्य भूमिका में रहेंगे। वे PM मोदी के प्रतिनिधि के तौर पर 60 घंटे का शास्त्रीय मंत्रोच्चार सुनेंगे और पूजन में शामिल रहेंगे। जबकि 7वें दिन PM मोदी इस पूजा में शामिल होंगे। 

आज से विशेष पूजा शुरू-

अयोध्या में आज यानी मंगलवार दोपहर सवा 1 बजे से रामलला प्राण प्रतिष्ठा के महाअनुष्ठानों की  शुरुआत हो गई है। इसमें यजमान का प्रायश्चित, सरयू नदी में दश विधरनान, यजमान ब्राह्मण का  सौर, पूर्वोत्तराङ्ग‌ सहित प्रायश्चित, गोदान, पञ्च- गव्यप्राशन, दशदान और कर्मकुटी होगा। पूजा की शुरुआत प्रायश्चित पूजा से की गई। पूजा में मुख्य यजमान शारीरिक, मानसिक और बाह्य तरीके से प्रायश्चित करेंगे।  इस दौरान मुख्य यजमान ने 10 विधि से स्नान किया। इसके बाद कर्म कुटी पूजा की गई। पहले दिन करीब 5 घंटे तक पूजा चलेगी। 

क्या होती है प्रायश्चित पूजा?

आपको बता दें कि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व की जाने वाली प्रायश्चित पूजा, पूजन की एक विधि है, जिसमें शारीरिक, आंतरिक, मानसिक और बाह्य इन तीनों तरीके का प्रायश्चित किया जाता है।बाह्य प्रायश्चित के लिए यजमान को 10 विधि से स्नान करना होता है। इस स्नान में पंच द्रव्य और कई अन्य सामग्रियां  सम्मिलित की जाती हैं। इसके साथ ही गोदान प्रायश्चित भी होता है जिसका  संकल्प लिया जाता है। इसमें यजमान गोदान के माध्यम से प्रायश्चित करता है। इसमें कुछ द्रव्य दान से भी प्रायश्चित किया जाता है। इस दान में स्वर्ण दान भी शामिल है।

कौन करता है प्रायश्चित पूजन-

प्रायश्चित पूजा यजमान द्वारा किया जाता है। इसे सामान्य पंडित नहीं करते हैं। इस पूजन के पीछे की मूलभावना यह है कि जाने अनजाने में जितने भी तरीके के पाप हुए हैं। उनका प्रायश्चित किया जाए। यह एक प्रकाश का शुद्धिकरण होता है जो किसी भी प्रकार की गलतियों की क्षमा मांगने के लिए प्रायश्चित के रूप में किया जाता है। 

क्या होता है कर्मकुटी पूजन-
 
प्रायश्चित पूजन के समाप्त होने के बाद कर्मकुटी पूजन भी किया जाता है। इस पूजन का मतलब यज्ञशाला पूजन है। यज्ञशाला आरंभ होने से पहले हवन कुंड का पूजन किया जाता है। इसमें छोटा सा विष्णु जी का पूजन होता है। इसके बाद ही मंदिर के अंदर प्रवेश मिलता है। मंदिर के हर क्षेत्र में प्रवेश प्राप्ति के लिए पूजन किया जाता है। इसके बाद ही बाकी पूजा पद्धति आरंभ होती है। 

किस दिन होगी कौन पूजा एक नज़र-

16 जनवरी-सुबह संकल्प, प्रायश्चित और गणेश पूजा से 7 दिन का मुख्य अनुष्ठान होगा। इसमें 6 दिवसीय चतुर्वेद यज्ञ भी है।121 ब्राह्मण यजमानों को संकल्प दिलाया जाएगा। 17 जनवरी-विग्रह का परिसर का भ्रमण कर काशी-प्रयाग जैसे तीर्थों के गंगा जल से गर्भगृह की शुद्धि होगी।18 जनवरी-विग्रह का अधिवास शुरू होंगे। जलाधिवास के साथ सुगंधि और गंधाधिवास भी होगा। 19 जनवरी-फलाधिवास और शाम को धान्याधिवास होगा। 20 जनवरी-सुबह पुष्प और रत्नाधिवास, तो शाम को घृताधिवास होगा। 21 जनवरी-सुबह शर्करा, मिष्ठान और मधुधिवास होगा। शाम को औषधि और शय्याधिवास कराया जाएगा।

कितने दिनों की होती है प्राण प्रतिष्ठा-

हरिद्वार के पुरुषोत्तम आश्रम के ज्योतिषाचार्य पंडित आचार्य महेंद्र त्रिपाठी के मुताबिक  प्राण प्रतिष्ठा में सर्वप्रथम भगवान को सुंदर आसन पर बैठाकर उनका संस्कार होता है। मंदिर का संस्कार घंटा का संस्कार होता है। ध्वज का संस्कार होता है। इसके बाद जिसने मंदिर बनाया है यानि विश्वकर्मा का संस्कार होता है। संकल्प लिया जाता है। पहले भगवान को जलाधिवास दिया जाता है। उसके बाद भगवान का अन्नाधिवास होता जिसमें गेहूं या धान में भगवान को रखा जाता है। फिर पुष्पाधिवास होता है। मिष्ठानावास होता है, घृताधिवास होता है। उसके बाद उनका सहास्त्राभिषेक होता है। उसके बाद में उनका नगर भ्रमण होता है। उसके बाद भगवान का शय्याधिवास होता है। भगवान का शयन किया जाता है एक निंद्रा कलश रखा जाता है उसके अगले दिन सुबह जब शुभ मुहूर्त होता है उस दिन भगवान की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। प्राण प्रतिष्ठा का मतलब मंदिरों में स्थापित होने वाली प्रतिमा में मंत्रों द्वारा प्राण दिए जाते हैं। वैसे भगवान की कौन प्राण प्रतिष्ठा कर सकता है? किसी में इतना सामर्थ्य कहां। जैसा कि आप सभी को पता है कि 22 जनवरी को बहुत शुभ मुहूर्त है उसी दिन भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी।

  
जैसे कभी-कभी कोई राधा कृष्ण की मूर्ति लाता है और कहता है कि उसकी प्राण प्रतिष्ठा करवानी है तो उसी प्राण प्रतिष्ठा एक दिन में भी हो जाती है। और तीन दिन में भी कर दी जाती है। लेकिन पूर्ण रूप से 6 दिन 7 दिन में ही प्राण प्रतिष्ठा विधिवत की जा सकती है। ऐसा विधान है। जितना शरीर के लिए भोजन जरूरी होता है उतना ही किसी मूर्ति के लिए प्राण प्रतिष्ठा जरूरी होती है।

किस भगवान की नहीं होती प्राण प्रतिष्ठा- 

भगवान नर्मदेश्वर की प्राण प्रतिष्ठा नहीं होती है। क्योंकि वो खुद ही प्रतिष्ठित हैं क्योंकि ऐसा माना गया है कि नर्मदा का हर एक कंकड़ अपने आप में शंकर हैं। नर्मदा पुराण आदि में इसका उल्लेख मिलता है। इसके साथ ही शालिग्राम की भी प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती है वो भी स्वयं प्रतिष्ठित हैं।   

कौन होता है यजमान?

ज्योतिष और धर्म के जानकारों के मुताबिक यजमान कोई भी बन सकता है। यजमान का मतलब जिसके मन में भगवान का पूजा पाठ करने की इच्छा जागृत हुई हो। वह किसी आचार्य का वरण करके उसके माध्यम से पूजा कराता हो वह यजमान कहलाता है।  यज्ञ होता है यज्ञ से यजन होता है। जिसके अंदर यज्ञ, यजन करने का भाव जगता है। लेकिन वह स्वयं न करके आचार्य के द्वारा करवाता है और उनको वरण  करता है तो कोई भी व्यक्ति यजमान बन सकता है। शास्त्रों के अनुसार जो भी यजमान होता है। अगर पति पत्नी दोनों जीवित हैं लेकिन अलग है, तो उसका विकल्प निकाला जाता है जैसे भगवान राम ने जब अश्वमेध यज्ञ किया था तो माता सीता की मूर्ति बनवाई गई थी तब श्रीराम अनुष्ठान में शामिल हो पाए थे। 

1500 साल बाद ऐसी हो रही पूजा-

22 जनवरी को भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा की पूजा अपने आप में ऐतिहासिक होगी। 60 घंटे तक के मंत्रोच्चारण के बाद प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। बताया जा रहा है कि ऐसी भव्य पूजा करीब 1500 साल पहले राजा हर्षवर्धन के काल में हुआ करती है। इसके बाद ऐसी कोई भव्य पूजा के साक्ष्य नहीं मिलते हैं। आइए जानते हैं कौन थे राज हर्षवर्धन..

कौन थे राजा हर्षवर्धन?  

हर्षवर्धन (590-647 ई.) प्राचीन भारत में सम्राट थे, जिन्होंने उत्तरी भारत के तमाम इलाकों में अपना एक सुदृढ़ साम्राज्य स्थापित किया था। वह ऐसे हिंदू सम्राट थे, जिन्होंने पंजाब छोड़कर शेष समस्त उत्तरी भारत पर राज्य किया था। उन्होंने बंगाल में शासन किया था। हर्षवर्धन भारत के आखिरी महान सम्राटों में से एक थे। उन्होंने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाकर पूरे उत्तर भारत को एक सूत्र में बांधने में सफलता हासिल की थी। उन्होंने अपने शासन काल में कई विश्राम गृहों और अस्पतालों का भी निर्माण करवाया था। छठी सदी में भारत के दौरे पर आए चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपने संस्मरणों में कन्नौज में आयोजित भव्य सभा के बारे में भी उल्लेख किया है, जिसमें हजारों भिक्षुओं ने हिस्सा लिया था। वे हर पांच साल के आखिर में महामोक्ष हरिषद नाम के एक धार्मिक उत्सव का आयोजन करते थे। यहां पर वह दान समारोह आयोजित करते थे। कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि हर्षवर्धन ने अपनी आय को चार बराबर भागों में बांट रखा था जिनके नाम शाही परिवार के लिए, सेना तथा प्रशासन के लिए, धार्मिक निधि के लिए और गरीबों और बेसहारों के लिए थे।

 

 

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