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यूपी का वो रचनाकार, जिसने ब्रिटिश हुकूमत को हिला दिया !

अबला जीवन हाय! तुम्हारी यही कहानी 
आँचल में है दूध और आँखों में पानी।।
     

जिसको न निज गौरव तथा
निज देश पर अभिमान है 
वह नर नहीं, नर पशु निरा है 
और मृतक समान है।।

स्वाभिमान और देशभक्ति की प्रखर ज्वाला को अपनी कालजयी रचनाओं से प्रज्वलित करने वाले यूपी के ये महान कभी किसी प्रतिबंध या रुकावट से विचलित नहीं हुए। उनकी लेखनी न केवल राष्ट्र-निर्माण का आह्वान करती थी, बल्कि हर व्यक्ति के भीतर चरित्र-निर्माण की नींव भी मजबूती से रखती थी। उनकी कविताओं में छिपी सजीव संवेदनाएँ और देशप्रेम की भावना हर पाठक को आत्म-चिंतन और कर्तव्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं। गुप्त जी की लेखनी में केवल शब्द नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतना की धड़कन सुनाई देती है।

हम कौन थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी 
आओ विचारें आज मिलकर, यह समस्याएँ सभी 

भूलोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहाँ
 फैला मनोहर गिरि हिमालय और गंगाजल कहाँ

 संपूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है 
उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारत वर्ष है..

आए दिन अखबारों में जब प्रेम या परीक्षा में असफल युवाओं के साथ-साथ अपने अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर चुके विशिष्ट व्यक्तियों के आत्महत्या करने की खबर पढ़कर ये ख़्याल आता है कि काश! आत्मघाती क़दम उठाने वाले इन लोगों ने गुप्त जी का यह गीत पढ़ा होता..

नर हो, न निराश करो मन को

 कुछ काम करो, कुछ काम करो
 जग में रहकर कुछ नाम करो
 यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
 समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
 कुछ तो उपयुक्त करो तन को 
नर हो, न निराश करो मन को

 सँभलो कि सुयोग न जाय चला
 कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
 समझो जग को न निरा सपना
 पथ आप प्रशस्त करो अपना
 अखिलेश्वर हैं अवलंबन को 
नर हो, न निराश करो मन को 

प्रभु ने तुमको कर दान किए 
सब वांछित वस्तु विधान किए
 तुम प्राप्त करो उनको न अहो
 फ़िर है यह किसका दोष कहो
 समझो न अलभ्य किसी धन को
 नर हो, न निराश करो मन को।।
 
राष्ट्रकवि कहे जाने वाले मैथिलीशरण गुप्त ने अपने जीवन में कई रचनाएं लिखीं, जिन्हें हमेशा याद रखा जाएगा। इन रचनाओं में भारत भारती काफी अहम है, जिसे अंग्रेजों ने बैन कर दिया था। जब भारत अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन कर रहा था, उस वक्त कई स्वतंत्रता सेनानी अपनी जान की परवाह ना करते हुए जंग लड़ रहे थे । कई सेनानी हथियारों से लड़ाई लड़ रहे थे तो कुछ लोग ऐसे भी थे, जो अपनी कलम से भी इस जंग में अंग्रेजों पर भारी पड़ रहे थे । उस वक्त अंग्रेज लेखकों से भी उतना ही डर रहे थे, जितना क्रांतिकारियों से । उसी दौर में एक भारतीय लेखक ऐसी रचना लिखी था कि अंग्रेजों को इस पर बैन लगाना पड़ा था । कहा जाता है कि उस रचना से इतने लोग प्रभावित हो रहे थे कि इसने ब्रिटिश हुकूमत को हिला दिया था ।
आये नहीं थे स्वप्न में भी, जो किसी के ध्यान में,
वे प्रश्न पहले हल हुए थे, एक हिन्दुस्तान में।।

महिलाओं की करूणा और दर्द के गीत गाने वाला इस महान कवि का जन्म साल 1886 में उत्तर प्रदेश में झांसी के पास चिरगांव में हुआ था। हम और आप आज जिस खड़ी बोली हिंदी का दैनिक व्यवहार में प्रयोग करते हैं, उस हिंदी की स्थापना और उन्नयन में मैथिलीशरण गुप्त जी की महती भूमिका रही है। जब मैथिली शरण गुप्त ने कविताएँ लिखना शुरू किया था तब ब्रजभाषा और अवधी भाषा का समृद्ध दौर था। स्वयं मैथिली शरण गुप्त भी 'रसिकेंद्र' नाम से ब्रजभाषा में कविताएँ, दोहा चौपाई, छप्पय आदि लिखा करते थे। वह आजीवन खड़ी बोली में ही लिखते रहे। उन्होंने भारत भारती, पंचवटी, जयद्रथ वध, यशोधरा, साकेत, द्वापर, सिद्धराज, नहुष और विष्णुप्रिया सहित दो महाकाव्यों और 19 खंडकाव्यों की रचना की। यही नहीं, गुप्त जी हिंदी को राष्ट्रभाषा की मान्यता दिलाने के लिए जीवन भर प्रयास भी करते रहे। उन्होंने यशोधरा और विष्णुप्रिया जैसे महान काव्य-ग्रंथों की रचना की।

सखि, वे मुझसे कह कर जाते
मुझको बहुत उन्होंने माना 
फ़िर भी क्या पूरा पहचाना?
मैंने मुख्य उसी को जाना 
जो वे मन में लाते
सखि, वे मुझसे कह कर जाते।।

मैथिलीशरण गुप्त जितने बड़े कवि थे, उतने ही बड़े स्वतंत्रता सेनानी भी रहे। अप्रैल, 1941 में जब गांधी जी ने अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध व्यक्तिगत सत्याग्रह किया तो आप भी पीछे नहीं रहे। अंग्रेजी हुकूमत ने आपको बंदी बनाकर जेल में बंद कर दिया। पहले झांसी, बाद में आपको आगरा जेल भेजा गया। सात महीने की सजा के बाद आपको जेल से छोड़ा गया। गुप्त ने साहित्य जगत को अपनी श्रेष्ठ काव्य-कृतियों से रौशन किया हैं। 12 दिसंबर 1964 को दिल का दौरा पड़ने से 78 वर्ष की आयु में निधन हो गया। लेकिन साहित्य जगत में उनकी काव्य रचनाओं के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है।

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