बड़ी खबरें
मैं सियासी नम्बरदार हूँ
'हिंदी अख़बार' हूँ
तुम्हारी सोच जहाँ तक है
उसके इस पार हूँ उसके उस पार हूँ
तुम ये समझ लो
तुम्हारा आचार भी मैं हूँ
तुम्हारा व्यवहार भी मैं हूँ
तुम अगर सोचते हो कि जो तुम सोच रहे हो
वो सोच तुम्हारी है
तो ये बस एक बीमारी है
तुम जो निकले सोचते हुए उन्माद में इक दिन कि
'व्यवस्था' के लिए 'अव्यवस्था' ज़रूरी है
'निर्माण' के लिए 'विध्वंस' ज़रूरी है
'शांति' के लिए 'युद्ध' ज़रूरी है
तो व्यवस्था,निर्माण,शांति
ये 'कल' है ,
ये कल्पना है,
ये तुम हो
ये अव्यवस्था,विध्वंस,युद्ध
ये 'आज' है ,
ये यथार्थ है,
ये मैं हूँ
ये भ्रम है तुम्हारा कि तुम सोचते हो
कि ये साध्य के साधन तुम्हारे हैं
तुम समझते हो
आज भी तुम्हारा है और कल भी तुम्हारे हैं
पानी गर तुम तक पहुँचने वाला है तो हम सोख्ता हैं
तुम ये समझ लो
तुम 'कसाई' हो तो हम 'उपभोक्ता' हैं
लेखक अभिषेक प्रताप सिंह, दिल्ली विश्वविद्यालय (हिंदी विभाग) के शोधार्थी है
Baten UP Ki Desk
Published : 11 June, 2023, 12:45 pm
Author Info : Baten UP Ki