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उत्तराखंड सरकार ने शुरू की नई पहल...चारधाम यात्रा अब सर्दियों में भी होगी संभव

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उत्तराखंड सरकार ने एक महत्वपूर्ण पहल शुरू की है, जिसका नाम है 'शीतकालीन चारधाम यात्रा'। यह पहल न सिर्फ पर्यटकों को आकर्षित करने का एक प्रयास है, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था को भी सर्दियों में नई ऊंचाई पर ले जाने का उद्देश्य रखती है। तो चलिए, जानते हैं कि शीतकालीन चारधाम यात्रा क्या है, इसके फायदे और इससे जुड़ी संभावित चिंताएं क्या हो सकती हैं।

चारधाम यात्रा का महत्व-

उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय में स्थित चार प्रमुख पवित्र धाम—गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, और बद्रीनाथ—हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख तीर्थ स्थल हैं। हर साल मई से नवंबर तक लाखों श्रद्धालु इन धामों की यात्रा करते हैं। इस साल 48 लाख से ज्यादा श्रद्धालु और 5.4 लाख गाड़ियां इन धामों तक पहुंची। लेकिन सर्दियों के दौरान भारी बर्फबारी के कारण इन धामों के दरवाजे बंद हो जाते हैं। इस समय, इन मंदिरों के देवताओं को निचले इलाकों में लाया जाता है, जिन्हें शीतकालीन प्रवास स्थल कहा जाता है।

शीतकालीन प्रवास स्थलों के नाम-

  • गंगोत्री का शीतकालीन प्रवास स्थल: मुखबा (उत्तरकाशी)
  • यमुनोत्री का शीतकालीन प्रवास स्थल: खरसाली (उत्तरकाशी)
  • केदारनाथ का शीतकालीन प्रवास स्थल: ओंकारेश्वर मंदिर (उखीमठ, रुद्रप्रयाग)
  • बद्रीनाथ का शीतकालीन प्रवास स्थल: पांडुकेश्वर (चमोली)

इन प्रवास स्थलों की भी उतनी ही धार्मिक मान्यता है जितनी कि मुख्य चारधाम यात्रा की। यही कारण है कि उत्तराखंड सरकार ने इन शीतकालीन प्रवास स्थलों को भी तीर्थयात्रा का हिस्सा बना दिया है। सरकार का उद्देश्य सर्दियों में भी पर्यटकों को आकर्षित करना और राज्य की अर्थव्यवस्था को गति देना है।

राज्य की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव-

उत्तराखंड सरकार का कहना है कि चारधाम यात्रा से हर दिन राज्य को 200 करोड़ रुपये से अधिक की आय होती है, लेकिन सर्दियों में यह आय कम हो जाती है। शीतकालीन चारधाम यात्रा से राज्य को 'गर्मियों का गंतव्य' वाली छवि को बदलने का अवसर मिलेगा। पर्यटन सचिव सचिन कुर्वे का कहना है, "जब पूरा उत्तर भारत सर्दियों में स्मॉग से ढका होता है, तब उत्तराखंड में 'सन टूरिज्म' का बढ़िया मौका मिलता है। यह पहल राज्य की अर्थव्यवस्था को नई ऊर्जा दे सकती है।" इस पहल के तहत, श्रद्धालु इन शीतकालीन प्रवास स्थलों के आसपास के कम पॉपुलर और सुंदर स्थानों की यात्रा भी कर सकते हैं, जिससे राज्य के अन्य पर्यटन स्थल भी लोकप्रिय हो सकते हैं।

चिंताएं और पर्यावरणीय प्रभाव-

हालांकि शीतकालीन चारधाम यात्रा एक शानदार पहल है, लेकिन इसके साथ कुछ चिंताएं भी जुड़ी हैं। इनमें प्रमुख हैं:

  1. पर्यावरणीय प्रभाव: तीर्थयात्रा की बढ़ती संख्या से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। पवित्र स्थलों का व्यवसायीकरण और स्थानीय संसाधनों पर बढ़ता दबाव चिंता का कारण बन सकता है।

  2. जंगली जीवन पर असर: सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति के पूर्व अध्यक्ष रवि चोपड़ा का कहना है कि सर्दियों में दुर्लभ और लुप्तप्राय जानवर जैसे स्नो लेपर्ड और माउंटेन शीप नीचे आते हैं। सर्दियों में ट्रैफिक और भीड़ इन जानवरों की शांति को भंग कर सकती है।

  3. सुरक्षा और स्वास्थ्य: पहाड़ी इलाकों में सर्दियों का मौसम कठोर हो सकता है, और दुर्गम रास्तों की वजह से यात्रियों के लिए जोखिम बढ़ सकता है।

क्या होगा आगे का रास्ता?

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पिछले साल राज्य सरकार को चारधाम यात्रा के दौरान पर्यावरणीय क्षमता (Carrying Capacity) का आकलन करने का निर्देश दिया था। हालांकि, इस रिपोर्ट का अब तक इंतजार है, और इससे जुड़ी भविष्यवाणी की जा रही है।शीतकालीन चारधाम यात्रा उत्तराखंड के पर्यटन और अर्थव्यवस्था को नई दिशा दे सकती है, लेकिन इसके साथ पर्यावरण, सुरक्षा और स्थायिता का भी ख्याल रखना जरूरी है। यदि इस पहल को सही तरीके से लागू किया जाता है, तो यह राज्य के लिए एक शानदार अवसर हो सकता है, जो न सिर्फ राज्य की अर्थव्यवस्था को बल देगा, बल्कि भारत के पर्यटन को भी नई ऊंचाई पर ले जाएगा।

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