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विनेश फोगाट को रेलवे की नौकरी क्यों छोड़नी पड़ी?

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अब तक पहलवानी के अखाड़े में अपनी धाक जमाने वाले विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया, अब सियासी मैदान में उतरने को तैयार हैं। हाल ही में दोनों ने कांग्रेस में शामिल होकर राजनीतिक करियर की शुरुआत की है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि विनेश और बजरंग हरियाणा के आगामी विधानसभा चुनावों में उम्मीदवार हो सकते हैं।

विनेश फोगाट का रेलवे से इस्तीफा-

राजनीति में कदम रखने से पहले विनेश फोगाट रेलवे की नौकरी कर रही थीं। वो रेलवे में स्पोर्ट्स कोटे से OSD के पद पर तैनात थीं। लेकिन, चुनाव लड़ने की कानूनी अड़चनों को ध्यान में रखते हुए, उन्होंने रेलवे की नौकरी से इस्तीफा दे दिया है। अपने इस्तीफे की जानकारी देते हुए उन्होंने X (पहले ट्विटर) पर लिखा, “रेलवे की सेवा जीवन का एक यादगार और गौरवपूर्ण समय रहा है। मैं रेलवे परिवार की हमेशा आभारी रहूंगी।”

सरकारी नौकरी और चुनाव लड़ने के नियम-

भारत में सरकारी नौकरी करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए चुनाव लड़ना या किसी राजनीतिक गतिविधि में शामिल होना कानूनन मना है। 1964 के सेंट्रल सिविल सर्विसेज (कंडक्ट) रूल्स के तहत, सरकारी कर्मचारियों पर राजनीति में भाग लेने की सख्त पाबंदी है।

नियम 5 के अनुसार:

  • कोई भी सिविल सर्वेंट किसी राजनीतिक पार्टी का हिस्सा नहीं बन सकता।
  • वह किसी भी राजनीतिक आंदोलन या गतिविधि से नहीं जुड़ सकता।
  • सरकारी कर्मचारियों को यह सुनिश्चित करना होता है कि उनके परिवार का कोई सदस्य भी राजनीतिक गतिविधियों में शामिल न हो।
  • सरकारी कर्मचारियों पर राजनीतिक व्यक्तियों के लिए प्रचार करने की भी पाबंदी होती है।

राज्य सरकार के कर्मचारियों पर नियमों का प्रभाव-

केवल केंद्र सरकार ही नहीं, बल्कि राज्य सरकारों के कर्मचारियों पर भी यही नियम लागू होते हैं। हरियाणा का सिविल सर्विस कंडक्ट रूल्स 2016, राज्य के कर्मचारियों के राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने और चुनाव लड़ने पर रोक लगाता है।

चुनाव लड़ने के लिए नौकरी से इस्तीफा जरूरी-

सरकारी नौकरी करने वाला कोई भी व्यक्ति चुनाव लड़ने के लिए अपने पद पर रहते हुए ऐसा नहीं कर सकता। उसे या तो इस्तीफा देना होगा या फिर रिटायर होना पड़ेगा। हालाँकि, कुछ मामलों में अदालतें विशेष निर्णय लेते हुए इस नियम में छूट भी देती हैं।

सुप्रीम कोर्ट का कूलिंग ऑफ पीरियड पर फैसला-

कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें मांग की गई थी कि सरकारी कर्मचारी या अफसर को इस्तीफे या रिटायरमेंट के तुरंत बाद चुनाव लड़ने की अनुमति न दी जाए। याचिका में यह भी सुझाव दिया गया था कि रिटायरमेंट और चुनाव लड़ने के बीच एक 'कूलिंग ऑफ पीरियड' होना चाहिए। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया।

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