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शह और मात का ऐसा खेल जिसमें घोड़े की है ढ़ाई चाल, जानिए जहांगीर के दरबार में शतरंज से जुड़ा दिलचस्प किस्सा

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एक ऐसा खेल जो शह और मात के नियमों को मुकम्मल करता हो, और जिसमें घोड़ा ढ़ाई चाल चलता है और अगर बादशाह को घेर लिया तो जीत निश्चित है। 6वीं शताब्दी में चतुरंग नाम से खेला जाने वाला खेल जो आज शतरंज के नाम से जाना जाता है। इस खेल का जुनून मुगल बादशाहों में काफी देखा गया था। तमाम मुगल बादशाह शतरंज के खेल के लिए दिवानगी रखते थे। मुगल बादशाह अकबर का पसंदीदा खेल भी शतरंज ही था। इसके लिए मुगलों के जमाने में अंतर्राष्ट्रीय मैच भी आयोजित किए जाते थे। आज यानी 20 जुलाई को "इंटरनेशनल चेस डे" है। इस मौके पर इस खेल से जुड़ी सभी बातें विस्तार से जानेंगे। 

यह खेल लोगों को जोड़ने और मानसिक विकास को बढ़ावा देने का भी महत्वपूर्ण उद्देश्य रखता है। आइए जानते हैं इसके इतिहास के बारे में-

क्या है शतरंज का इतिहास?

शतरंज का इतिहास बहुत पुराना और गौरवशाली है। भारत में अपने शुरुआती स्वरूप से यह खेल काफी बदल चुका है। आज हम जिस आधुनिक खेल को खेलते हैं, वह 16वीं शताब्दी तक ज्ञात नहीं था। 19वीं शताब्दी तक घड़ियाँ नहीं थीं और मोहरे भी मानकीकृत नहीं थे। यह खेल 600 ई. से पहले भारतीय खेल चतुरंग से पैदा हुआ था। यह खेल आने वाली शताब्दियों में पूरे एशिया और यूरोप में फैल गया, और अंततः 16वीं शताब्दी के आसपास शतरंज के रूप में विकसित हुआ। इस खेल के पहले उस्तादों में से एक स्पेनिश पादरी रुय लोपेज़ थे। हालाँकि उन्होंने अपने नाम पर ओपनिंग का आविष्कार नहीं किया था। 

भारत का सबसे पुराना खेल-

भारत एक ऐसा देश है जहां खेलों के प्रति दीवानगी का इतिहास काफी पुराना रहा है. रामायण-महाभारत काल में भी खेल प्रतियोगिताओं के आयोजन का इतिहास रहा है. आज देश में भले ही क्रिकेट के प्रति लोगों की दीवानगी नजर आती हो, लेकिन कभी हमारे देश में मल्ल युद्ध, मलखंब, निशानेबाजी, तलवारबाजी एवं शतरंज जैसे खेलों के प्रति भी लोगों की दीवानगी दिखती थी. कई ऐसे खेल हैं जो भारत की मिट्टी में पनपे, ऐसा ही एक खेल है शतरंज. भारत के सबसे पुराने खेलों में से एक है शतरंज. जिसे फारसियों ने चेस (Chess) नाम दिया।

शतरंज की शुरुआत कहां हुई थी?

इस खेल का आविष्कार भारत के कन्नौज में माना जाता है। मूलतः इसे अष्टपद अर्थात चौंसठ वर्ग कहा जाता था. बता दें संस्कृत में अष्टपद मकड़ी के लिए उपयोग होता है। इसे आठ पैरों के साथ एक पौराणिक चेकर बोर्ड पर पासा के साथ खेला जाता था। वर्तमान समय की शतरंज की बिसात में हम काले और सफेद रंगों का जो वर्ग देखते हैं वो लगभग 1000 साल पहले ऐसा नहीं था। प्राचीन समय में राजा महाराज शतरंज में प्यादे के रूप में अपने दासों को हाथी, घोड़ा आदि बनाकर खेला करते थे। समय के साथ इसका विस्तार फारस तक हुआ। वहां इसे नया रूप और नाम मिला और इस तरह अष्टपद, शत्रुंज (शतरंज) बना। 

जहांगीर के दरबार में शतरंज से जुड़ा दिलचस्प किस्सा         

मुगल बादशाह जहांगीर के शासनकाल में शतरंज बहुत खेला जाता था। एक बार उनके दरबार में शतरंज का अंतर्राष्ट्रीय मैच आयोजित किया गया। इस मुकाबले में एक तरफ जहांगीर के खास दरबारी थे तो दूसरी तरफ फारस के राजदूत थे। दोनों के बीच शतरंज का ये मुकाबला 3 दिनों तक लगातार चलता रहा। एक से बढ़कर एक चालें चली गईं और आखिरी में फारस के राजदूत को हार का सामना करना पड़ा। इस दरबार में एक दिसचस्प बाजी लगी थी कि जो भी हारेगा उसे दरबार में गधे की तरह चलना पड़ेगा। शर्त के मुताबिक हुआ भी कुछ ऐसा ही, फारस के राजदूत को हार का सामना करना पड़ा था लिहाजा उसे ‘गधा’ बनाकर पूरे दरबार में घुमाया गया।

शतरंज में कई भारतीय खिलाड़ियों ने किया नाम-

वर्तमान में 1951 में स्थापित इंडिया चेस फाउंडेशन के द्वारा शतरंज के खेल का नियंत्रण व प्रतियोगिताओं को आयोजित किया जाता है. वैश्विक स्तर पर शतरंज के खेल का नियंत्रण इंटरनेशनल चेस फाउंडेशन के द्वारा किया जाता है. इस खेल को खेलने में जो व्यक्ति मास्टर होता है उसे ग्रैंड मास्टर की उपाधि दी जाती है. इस समय भारत में शतरंज के महानायक के रूप में विश्वनाथन आनंद को देखा जाता है. उनके अलावा दिव्येंदु बरुआ, बी. रवि कुमार जैसे कई खिलाड़ियों ने भी वैश्विक स्तर पर अपने देश का नाम रोशन किया है.

 शतरंज के खेल का महत्व

  • मानसिक विकास:

शतरंज एक ऐसा खेल है जो मानसिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह खेल तर्क, रणनीति, और समस्या समाधान कौशल को बढ़ावा देता है।

  • सामाजिक जुड़ाव:

शतरंज के माध्यम से विभिन्न संस्कृतियों और देशों के लोग आपस में जुड़ सकते हैं। यह खेल राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोगों को एक साथ लाता है।

  • शांति और समझ:

शतरंज का खेल शांति और समझ का प्रतीक है। यह खेल बिना किसी शारीरिक संघर्ष के, केवल मानसिक मुकाबले के माध्यम से खेला जाता है।

विश्व शतरंज दिवस के आयोजन

विश्व शतरंज दिवस पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम और प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। शतरंज के शौकीनों से लेकर पेशेवर खिलाड़ियों तक, सभी इस दिन को खेल के माध्यम से मनाते हैं। कई देशों में इस दिन को विशेष महत्व दिया जाता है और शतरंज से जुड़े कार्यक्रमों का आयोजन होता है।

शतरंज का व्यापक प्रभाव-

शतरंज केवल एक खेल नहीं है, बल्कि यह एक शिक्षण उपकरण भी है। कई स्कूल और शैक्षणिक संस्थान शतरंज को अपने पाठ्यक्रम में शामिल कर चुके हैं। इससे बच्चों में तर्कशक्ति, अनुशासन, और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता विकसित होती है।विश्व शतरंज दिवस एक महत्वपूर्ण दिन है जो हमें शतरंज के खेल की महानता और उसकी मानसिक और सामाजिक महत्व को याद दिलाता है। यह दिन हमें प्रेरित करता है कि हम शतरंज के माध्यम से अपने मानसिक क्षमताओं को बढ़ाएं और विभिन्न संस्कृतियों के लोगों के साथ जुड़ें। इस दिन को मनाकर हम न केवल शतरंज के खेल को सम्मान देते हैं, बल्कि इसके माध्यम से विश्व में शांति और समझ का संदेश भी फैलाते हैं। 

By Ankit Verma 

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