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सूब-ए-सर्किल, अख्तरनगर, या फिर रामग्राम- और कितने नाम हैं नाथ पंथ की आध्यात्मिक धरती के

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गुरु गोरक्षनाथ की तपोस्थली गोरखपुर ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से काफी मशहूर है। गीता प्रेस और गीता वाटिका की विश्वस्तरीय पहचान से तो हर कोई वाकिफ है, गोरखनाथ मंदिर जैसी नाथ पंथ की आध्यात्मिक पीठ भी गोरखपुर को राष्ट्रीय फलक पर स्थापित करती है। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और बंधु सिंह का बलिदान और संत कबीर के देहत्याग की गवाह भी यही धरती है। उत्तरप्रदेश का गोरखपुर राज्य के सबसे प्रमुख शहरों में से एक है। इसका इतिहास सालों पुराना है। प्रदेश के पूर्वी हिस्से में स्थित यह जिला पर्यटन के दृष्टि से भी काफी अहम है। बताया जाता है कि गोरखपुर का नाम पिछले 2600 सालों में करीब 8 बार बदला जा चुका है। दुनिया को योग से रूबरू कराने वाले गुरु गोरखनाथ के नाम पर ही गोरखपुर का नाम पड़ा है। गोरखपुर नाम तकरीबन 200 साल से भी अधिक पुराना है। इससे पहले नौवीं शताब्दी में इसे गोरक्षपुर के नाम से जाना जाता था। भारत पर अलग-अलग शासकों के राज में इस शहर का नाम बदलता रहा। कभी इसे सूब-ए सर्किया के नाम से जाना गया तो कभी अख्तरनगर के नाम से। हालांकि अंत में अंग्रेजों ने साल 1801 में इस शहर का नाम गोरखपुर रख दिया। इस शहर के नाम से जुड़ा एक और ऐतिहासिक प्रसंग है, बताया जाता है कि छठी शताब्दी पूर्व गोरखपुर का नाम रामग्राम हुआ करता था। दरअसल उस वक्त यह नाम रामगढ़ झील के नाम पर रखा गया था। लेकिन भौगोलिक आपदाओं के कारण रामग्राम धंसकर झील में तब्दील हो गया। चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल के दौरान इस क्षेत्र का नाम पिप्पलिवन था। हालांकि 9वीं शताब्दी में इसे गुरु गोरक्षनाथ के नाम पर गोरक्षपुर रख दिया गया। आपको बता दें कि यह आर्य संस्कृति और सभ्यता का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है।

पर्यटन केंद्र के रूप में भी जाना जाता है शहर 

गोरखपुर पर्यटन के दृष्टि से भी काफी समृद्ध है। यहां प्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर, नौका विहार, गोरखपुर प्राणी उद्यान, रामगढ़ ताल झील और बुढिया माई मंदिर मुख्य दार्शनिक स्थल है। यह शहर सांस्कृतिक रूप से भी अहम है। गोरखपुर को हिंदू धार्मिक पुस्तकों के विश्व प्रसिद्ध प्रकाशक गीता प्रेस के लिए भी जाना जाता है।सबसे महत्वपूर्ण 1865 में, गोरखपुर जिले से नया जिला बस्ती विभाजित किया गया था। साल 1946 में दोबारा गोरखपुर को विभाजित कर नया जिला देवरिया बनाया गया था। 1989 में गोरखपुर के तीसरे विभाजन से जिला महाराजगंज का निर्माण किया गया। यहां से यूपी के सबसे सभी प्रमुख शहरों के लिए सड़क परिवहन उपलब्ध है। मुख्य बस स्टेशन रेलवे स्टेशन के पास ही है। यहां से आपको वाराणसी, लखनऊ, कानपुर, दिल्ली आदि जैसे अन्य मार्गों के लिए लगातार सेवा उपलब्ध है। 

स्वतंत्रता संग्राम में अहम था गोरखपुर का योगदान

स्वतंत्रता संग्राम में अगर गोरखपुर के योगदान की बात करे तो सचींद्र नाथ सान्याल, ठाकुर बंधु सिंह, राम प्रसाद बिसि्मल और दशरथ प्रसाद दि्ववेदी का देश के लिए बलिदान आज भी इतिहास के पन्नो में दर्ज है। गोरखपुर का ऐतिहासिक विरासत इस शहर को एक अलग पहचान देता है।

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