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महताब की कुर्सी पर क्यों था विवाद, क्या पहले भी प्रोटेम स्पीकर के चुनाव में किया गया नियमों को दरकिनार?

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एक ऐसा पद जिसकी संविधान में कोई चर्चा नहीं है लेकिन इसका संसदीय प्रणाली में बहुत महत्व है और इस पद बैठा व्यक्ति नई लोकसभा के सदस्यों को शपथ ग्रहण कराने का काम करता है। संसदीय मामलों के मंत्रालय की नियमावली में इसका नाम प्रोटेम स्पीकर दिया गया है। प्रोटेम लैटिन शब्द प्रो टैम्पोर से लिया गया है जिसका अर्थ होता है 'कुछ समय के लिए'। प्रोटेम स्पीकर अस्थायी स्पीकर होता है, जो नई लोकसभा और विधानसभा सदन चलाता है। आज यानी 24 जून को भाजपा सांसद भर्तृहरि महताब ने 18वीं लोकसभा के प्रोटेम स्पीकर के रूप में शपथ ली और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसकी शपथ दिलाई। महताब को अस्थाई स्पीकर बनाए जाने की विपक्ष ने कड़ी आलोचना भी की, तो ऐसे में ये जानना जरूरी है कि इसके पीछे की असल वजह क्या है और यह भी जानेंगे कि प्रोटेम स्पीकर का चुनाव कैसे होता है।

महताब के प्रोटेम स्पीकर बनने पर क्या है विवाद?

सात बार के लोकसभा सदस्य भर्तृहरि महताब को 18वीं लोकसभा के लिए प्रोटेम स्पीकर बनाया गया है जो लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव होने तक पीठासीन अधिकारी के रूप में काम करेंगे और नए सांसदों को शपथ भी दिलाएंगे। लेकिन कांग्रेस ने महताब को प्रोटेम स्पीकर बनाने को लेकर संसदीय मानदंडों का उल्लंघन बताया है। हालांकि, अगर इतिहास के पन्ने पलटे जाएं तो पता चलता है कि लोकसभा में सबसे वरिष्ठ नहीं होने वाले सदस्यों को भी प्रोटेम स्पीकर के रूप में नियुक्त किया जा चुका है। ऐसा सन् 1956 और 1977 में हुआ था। जैसे ही संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू ने भर्तृहरि महताब के नाम का एलान किया था, वैसे ही कांग्रेस ने विरोध करना शुरू कर दिया। कांग्रेस का कहना है कि उनकी पार्टी के आठ बार के सांसद कोडिकुनिल सुरेश सबसे वरिष्ठ सांसद हैं, ऐसे में उन्हें लोकसभा का अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त किया जाना चाहिए, जबकि महताब सात बार के ही सांसद हैं। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि वरिष्ठता की अनदेखी कर भाजपा संसदीय मानदंडों को खत्म करने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि परंपरा के अनुसार, जिस सांसद ने संसद में अधिकतम कार्यकाल पूरा किया है, उसे प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया जाना चाहिए। अब आइए जानते हैं प्रोटेम स्पीकर का चुनाव कैसे होता है?

विवाद पर सत्ता पक्ष का जवाब

संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने विपक्ष पर पलटवार कर कहा कि महताब लगातार सात बार के लोकसभा सदस्य हैं, जिससे वह इस पद के लिए उपयुक्त हैं। उन्होंने कहा कि सुरेश 1998 और 2004 में चुनाव हार गए थे, जिस कारण उनका मौजूदा कार्यकाल निचले सदन में लगातार चौथा कार्यकाल है। इससे पहले, वह 1989, 1991, 1996 और 1999 में लोकसभा के लिए चुने गए थे।

कैसे होता है प्रोटेम स्पीकर का चुनाव?

संसदीय मामलों के मंत्रालय की नियमावली के अनुसार, नई लोकसभा द्वारा जब तक स्पीकर की नियुक्ति नहीं की जाती है, तब तक स्पीकर की जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए राष्ट्रपति सदन के ही किसी सदस्य को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करते हैं। नई लोकसभा के सदस्यों को शपथ ग्रहण कराना प्रोटेम स्पीकर का प्राथमिक काम है। नियमों के अनुसार, राष्ट्रपति द्वारा तीन अन्य लोकसभा सांसदों को भी सांसदों को शपथ दिलाने के लिए नियुक्त किया जाता है। सामान्यतः संसद के सबसे वरिष्ठ सांसद को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है, लेकिन अपवाद भी हो सकते हैं। राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा के तीन अन्य निर्वाचित सदस्यों को भी सांसदों के समक्ष शपथ लेने के लिए नियुक्त किया जाता है। पुस्तिका के अनुसार, सदन की सदस्यता के वर्षों की संख्या के संदर्भ में सबसे वरिष्ठ सदस्यों को आम तौर पर इस उद्देश्य के लिए चुना जाता है। हालांकि इसमें अपवाद भी हो सकता है।

कब किया गया वरिष्ठता के नियमों को दरकिनार?

अब सवाल यह भी उठता है कि आखिर क्या ऐसा होना जरूरी है कि अगर किसी शख्स को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया जाए तो उसे लोकसभा में सबसे वरिष्ठ सदस्य होना चाहिए। तो इतिहास के पन्ने पलटने पर देख सकते हैं कि प्रोटेम नियम को लेकर दो अपवाद हैं। लोकसभा में सबसे वरिष्ठ नहीं होने वाले सदस्यों को प्रोटेम स्पीकर के रूप में दो बार नियुक्त किया जा चुका है। सबसे पहले सन् 
1956 में ऐसा हुआ था। तब सरदार हुकम सिंह को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया गया था। उसके बाद 1977 में डी.एन. तिवारी को अस्थायी स्पीकर बनाया था। 

एक नजर भर्तृहरि महताब के जीवन पर

भर्तृहरि महताब का जन्म आठ सितंबर 1957 को ओडिशा के अगपदा जिले के भद्रक में हुआ था। वह ओडिशा के पहले मुख्यमंत्री डॉ. हरेकृष्ण महताब के बेटे हैं। वह राजनीतिक के साथ एक लेखक भी हैं और सामाजिक कामों में भी योगदान देते हैं। अगर उनकी शिक्षा की बात करें तो उत्कल यूनिवर्सिटी के रावेनशॉस कॉलेज से उन्होंने साल 1978 में पोस्ट ग्रेजुएशन की थी। इसके बाद वह सक्रिय राजनीति में उतर गए। उन्होंने बीजद की टिकट पर 1998 में पहली बार कटक लोकसभा चुनाव लड़ा और जीतकर संसद पहुंचे। इसके बाद उन्होंने कटक सीट से 1999, 2004, 2009, 2014 और 2019 में लगातार जीत दर्ज की। वह बीजद से छह बार सांसद चुनकर लोकसभा पहुंचे।

 कैसे भाजपा के खेमे में महताब?

राजनीतिक गलियारे में तब हलचल मच गई, जब इस साल महताब ने पाला बदल लिया। 28 मार्च 2024 को बीजद से इस्तीफा देकर वह भाजपा में शामिल हो गए। हालांकि, महताब की राजनीति पर इसका कुछ असर नहीं पड़ा। इस बार वह भाजपा की टिकट पर कटक से मैदान में उतरे और बीजद के संतरूप मिश्रा को 57077 वोट से हराया। ऐसे वह सातवीं बार भी सांसद चुने गए।

उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार से हुए सम्मानित

महताब को साल 2017 में उत्कृष्ट सांसद का पुरस्कार मिला था। इसके साथ ही 'वाद-विवाद' में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए संसद रत्न पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

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