बड़ी खबरें
भारत और मालदीव के रिश्तों की नई परिभाषा तय करने के लिए दिल्ली के हैदराबाद हाउस में एक महत्वपूर्ण मुलाकात का आगाज हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गर्मजोशी से मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू का स्वागत किया, जो अपने देश की राजनीतिक दिशा में हालिया बदलावों के बाद भारत पहुंचे हैं। दोनों नेताओं की यह बैठक द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने और क्षेत्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर सहयोग को नया आयाम देने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकती है। पांच दिवसीय भारत यात्रा के दौरान मुइज्जू की यह मुलाकात भारतीय उपमहाद्वीप में स्थिरता और साझेदारी के नए अध्याय की शुरुआत की उम्मीद लेकर आई है।
राष्ट्रपति मुइज्जू का यूटर्न: 'भारत एक मूल्यवान मित्र'
मालदीव में राष्ट्रपति चुनावों के दौरान मुइज्जू ने भारत-विरोधी रुख अपनाया था और भारतीय सैनिकों को निष्कासित करने का वादा किया था। लेकिन अब, भारत दौरे पर उन्होंने स्पष्ट किया कि मालदीव कभी ऐसा कुछ नहीं करेगा जिससे भारत की सुरक्षा को खतरा पहुंचे। मुइज्जू ने कहा, "हमारी सरकार भारत को एक मूल्यवान मित्र मानती है और हमारे रिश्ते साझा सम्मान और हितों पर आधारित हैं।" मुइज्जू ने भारतीय पर्यटकों से भी वापस आने की अपील की, जो भारत-मालदीव संबंधों में तनाव के कारण मालदीव जाना बंद कर चुके थे। उन्होंने कहा, "भारतीय पर्यटकों का हमारे देश में हमेशा स्वागत है, और वे हमारे पर्यटन उद्योग के लिए महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।"
भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण मालदीव?-
मालदीव भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से बेहद अहम है। यह हिंद महासागर में स्थित होने के कारण समुद्री व्यापार मार्गों के केंद्र में है और भारत के केंद्र-शासित प्रदेश लक्षद्वीप से महज 700 किमी दूर है। इसके चलते भारत कभी भी इस महत्वपूर्ण स्थान पर चीन का प्रभाव नहीं बढ़ने देना चाहता। मुइज्जू की चीन-समर्थक छवि के बावजूद भारत ने मालदीव के साथ रिश्ते सुधारने का प्रयास जारी रखा है, क्योंकि यह हिंद महासागर में अपनी स्थिति को मजबूत बनाए रखने के लिए जरूरी है।
चीन के बढ़ते प्रभाव का काउंटर-
चीन ने पिछले कई वर्षों में मालदीव को अपने प्रभाव में लेने की कोशिश की है, जिसके तहत उसने मालदीव को भारी-भरकम कर्ज दिया। मालदीव के कुल विदेशी कर्ज का 70 प्रतिशत हिस्सा अब चीन के पास है। हालांकि, पूर्ववर्ती सरकार ने चीन के साथ ज्यादा नजदीकी नहीं बढ़ाई, लेकिन मुइज्जू के सत्ता में आने के बाद चीन ने मालदीव में अपनी पकड़ और मजबूत करने की कोशिशें तेज कर दी हैं।
मालदीव को चीन के हवाले करना रणनीतिक भूल
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत और मालदीव के रिश्तों को समाप्त करने का मतलब होगा उसे पूरी तरह से चीन के हवाले कर देना, जो भारत की रणनीतिक स्थिति के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। भारत कभी नहीं चाहेगा कि हिंद महासागर में उसका प्रभुत्व कमजोर हो। इसलिए, मुइज्जू की चीन के प्रति नजदीकी के बावजूद, भारत ने मालदीव की मदद जारी रखने का फैसला किया है।
मालदीव के बिना पश्चिम एशिया में भारत की बादशाहत मुश्किल
मालदीव दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (सार्क) का सदस्य है, जिसमें भारत प्रमुख भूमिका निभाता है। मालदीव के सहयोग के बिना, भारत के लिए पश्चिम एशिया में अपनी रणनीतिक स्थिति को मजबूत बनाए रखना कठिन हो सकता है। इसलिए, भले ही मालदीव ने चीन की तरफ झुकाव दिखाया हो, भारत ने अपनी पड़ोसी देशों को साथ लेकर चलने की नीति को बरकरार रखा है।
भारतीयों की यात्रा पर असर-
भारत-मालदीव के रिश्तों में तनाव के दौरान, भारतीय पर्यटकों ने मालदीव की यात्रा करने से परहेज करना शुरू कर दिया था। कई लोगों ने सोशल मीडिया पर अपनी रद्द की गई यात्राओं की जानकारी दी और मालदीव सरकार को आर्थिक नुकसान की बात कही। यहां तक कि कई फिल्मी सितारों ने लक्षद्वीप जैसे अन्य पर्यटन स्थलों को प्रमोट करना शुरू कर दिया था।
मुइज्जू के भारत दौरे से उम्मीदें-
मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के इस दौरे से यह उम्मीद की जा रही है कि भारत-मालदीव के रिश्तों में नई जान फूंकी जाएगी। इस दौरे के जरिए मुइज्जू ने यह संदेश दिया है कि भले ही चीन के साथ उनके रिश्ते मजबूत हों, लेकिन भारत के साथ संबंधों को दरकिनार करना उनके देश के हित में नहीं है। यह दौरा भारत और मालदीव के बीच विश्वास और सहयोग को फिर से स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
By Ankit Verma
Baten UP Ki Desk
Published : 7 October, 2024, 1:24 pm
Author Info : Baten UP Ki