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चक्रवातों की मार और मानवीय दखल से संकट में दो अहम वन्यजीव अभयारण्य, 30 साल में इतने फीसदी ही बची हरियाली!

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भारत के दो महत्वपूर्ण वन्यजीव अभयारण्यों-ओडिशा का बालूखंड-कोणार्क और असम का होलोंगापार गिब्बन-आज पर्यावरणीय संकट के गहरे साए में हैं। एक ओर प्रकृति के कहर ने हरियाली को बर्बाद किया है, तो दूसरी ओर मानवीय गतिविधियों ने इन पारिस्थितिकीय तंत्रों के अस्तित्व पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

बालूखंड-कोणार्क अभयारण्य: हरियाली का छीजता अस्तित्व

पुरी और कोणार्क के बीच स्थित बालूखंड-कोणार्क वन्यजीव अभयारण्य कभी घने कैसुरीना वृक्षों, सुनहरे समुद्री तटों और ओलिव रिडले कछुओं के लिए मशहूर था। लेकिन अब यह अभयारण्य तटीय कटाव और बार-बार आने वाले चक्रवातों से बुरी तरह प्रभावित है। 

1993 से 2023 के बीच 4.7% घटी हरियाली, विशेषज्ञों ने जताई गहरी चिंता

एक हालिया संयुक्त अध्ययन, जो उड़ीसा के फकीर मोहन विश्वविद्यालय और ब्राजील की एक यूनिवर्सिटी ने मिलकर किया है, इस ओर इशारा करता है कि 1993 में जहां अभयारण्य के 41.8% हिस्से में घनी हरियाली थी, वहीं 2023 तक यह घटकर महज 37.1% रह गई है। अध्ययन के अनुसार चक्रवात फानी ने अभयारण्य को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया, जिससे पेड़ और वन क्षेत्र लगभग नष्ट हो गए। विशेषज्ञों का कहना है कि वर्ष 2002 से 2023 के बीच हरित क्षेत्र में भारी गिरावट आई है, और अब कई हिस्से बंजर भूमि में तब्दील हो चुके हैं।

राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड ने उठाए कदम

पर्यावरणीय क्षति को नियंत्रित करने के लिए राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड ने कुछ कड़े नियम लागू किए हैं। इनमें रियल टाइम डिजिटल निगरानी प्रणाली, परिचालन से पहले विस्तृत योजना की प्रस्तुति, न्यूनतम पेड़ों की कटाई, और प्रदूषण नियंत्रण के सख्त उपाय शामिल हैं। हालांकि, यह सवाल बना हुआ है कि क्या ये उपाय धरातल पर प्रभावी रूप से लागू हो पा रहे हैं?

होलोंगापार गिब्बन अभयारण्य: विकास बनाम संरक्षण

दूसरी ओर, असम के होलोंगापार गिब्बन वन्यजीव अभयारण्य-जो देश का एकमात्र गिब्बन प्रजाति का आवास स्थल है-भी मानवीय गतिविधियों की वजह से संकट में है। यहां से गुजरने वाली रेलवे लाइन का विद्युतीकरण प्रस्तावित है, जिसे स्थायी समिति द्वारा सुझाया गया है। इसके अलावा, इस इको सेंसिटिव जोन में तेल और गैस की खोज के लिए ड्रिलिंग को भी मंजूरी मिल चुकी है। विशेषज्ञों का मानना है कि इन गतिविधियों से इस विशिष्ट जैव विविधता वाले क्षेत्र को भारी क्षति पहुंचेगी। अब सवाल उठ रहा है कि क्या ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने की कीमत पर देश की दुर्लभ जैव संपदा को खतरे में डालना उचित है?

विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन ज़रूरी

देश के दोनों छोरों पर बसे ये वन्यजीव अभयारण्य इस बात की गवाही दे रहे हैं कि यदि विकास की योजनाएं पर्यावरणीय संतुलन को नजरअंदाज करेंगी, तो आने वाले समय में पारिस्थितिकीय संकट और भी गहराएगा। समय आ गया है कि नीति निर्माता, वैज्ञानिक और आम नागरिक मिलकर इन क्षेत्रों के संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाएं।

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