चीन और भारत जैसे देश यदि इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की घरेलू आपूर्ति पूरी तरह सक्षम बना लेते हैं, तो इसका प्रभाव केवल वाहन उत्सर्जन तक सीमित नहीं रहेगा। प्रिंसटन विश्वविद्यालय के शोध के अनुसार, ईवी की बैटरियों के निर्माण से सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) का उत्सर्जन वर्तमान स्तरों से 20% तक बढ़ सकता है। इस प्रक्रिया के दौरान खनिज शोधन और निर्माण केंद्रों के पास प्रदूषण हॉटस्पॉट बनने की संभावना भी है।
निकल और कोबाल्ट शोधन का योगदान-
इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरियों में इस्तेमाल होने वाले खनिज, जैसे निकल और कोबाल्ट, SO₂ उत्सर्जन में सबसे अधिक योगदान देंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि यह समस्या केवल टेलपाइप या बिजली उत्पादन तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी आपूर्ति शृंखला पर प्रभाव डालती है। यदि चीन और भारत बैटरी निर्माण को दूसरे देशों में स्थानांतरित करते हैं, तब भी प्रदूषण को केवल स्थानांतरित किया जाएगा, समाप्त नहीं किया जा सकेगा।
स्वच्छ ऊर्जा के लिए बेहतर तकनीक आवश्यक-
शोधकर्ताओं का मानना है कि स्वच्छ ऊर्जा तकनीकों के विकास और अपनाने में चुनौतियां और समझौते दोनों शामिल हैं। इसलिए, प्रदूषण को यथासंभव कम करने के लिए तेजी से कदम उठाने की जरूरत है। कार्बन उत्सर्जन कटौती के लिए कई तकनीकें मौजूद हैं, लेकिन उन्हें लागू करने के लिए नीतिगत और औद्योगिक प्रयासों को बढ़ावा देना होगा।
वैकल्पिक बैटरी केमिस्ट्री पर जोर-
इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए वैकल्पिक बैटरी तकनीकों का विकास आवश्यक है। शोधकर्ताओं ने पाया कि बैटरी निर्माण प्रक्रिया में SO₂ उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए बैटरी केमिस्ट्री में सुधार किया जा सकता है। नए वैज्ञानिक नवाचारों से न केवल प्रदूषण कम होगा, बल्कि लंबे समय तक टिकाऊ समाधान भी मिल सकते हैं।
भारत के लिए अवसर और चुनौतियां-
भारत में अभी इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग चीन की तुलना में काफी कम है, जो इसे प्रदूषण नियंत्रण में बेहतर अवसर प्रदान करता है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि भारत को अपने ऊर्जा क्षेत्र में सुधार के लिए थर्मल पावर प्लांट्स में सख्त SO₂ नियंत्रण उपाय लागू करने चाहिए। इसके तहत फ्लू-गैस डिसल्फराइजेशन जैसी तकनीकों का व्यापक उपयोग किया जा सकता है।
प्रदूषण नियंत्रण के साथ प्रगति की ओर-
इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग परिवहन क्षेत्र में क्रांति ला सकता है, लेकिन इसके साथ ही पूरी आपूर्ति शृंखला में पर्यावरणीय प्रभाव को समझना और नियंत्रित करना भी आवश्यक है। भारत और चीन जैसे देशों को चाहिए कि वे प्रदूषण नियंत्रण के लिए नवाचार और नीति-निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाएं। इससे न केवल वायु गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग का सही उद्देश्य भी पूरा होगा।