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स्वाद में मीठी, असर में धीमा ज़हर—शुगर-फ्री उत्पादों में इस्तेमाल होने वाली कृत्रिम मिठास अब हमारे नदियों और जल स्रोतों में अदृश्य खतरे के रूप में फैल रही है। एक ताज़ा वैश्विक अध्ययन ने यह चौंकाने वाला खुलासा किया है कि सुक्रालोज और एसेसल्फेम जैसे स्वीटनर न केवल शरीर से बिना पचे बाहर निकलते हैं, बल्कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स से गुजरने के बाद भी नदियों, झीलों और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में सीधे पहुंच रहे हैं।
पानी से ज़्यादा घुलनशील
ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी सिडनी (UTS) के वैज्ञानिकों द्वारा जर्नल ऑफ हैजर्डस मैटेरियल्स में प्रकाशित इस शोध के अनुसार, भारत, अमेरिका, स्पेन, जर्मनी सहित 24 देशों में जल स्रोतों में इन मिठासों की मौजूदगी "अत्यंत चिंताजनक स्तर" पर दर्ज की गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि इन कृत्रिम केमिकल्स की रासायनिक संरचना इतनी मजबूत है कि उन्नततम सीवेज ट्रीटमेंट सिस्टम भी इन्हें पूरी तरह साफ नहीं कर पा रहे। नतीजा—हमारी नदियों में घुलता मीठा ज़हर, जो धीरे-धीरे जलीय जीवन, जैव विविधता और मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
गर्मियों में 30% बढ़ जाती है खतरे की मात्रा
शोधकर्ताओं के अनुसार, गर्मियों के मौसम में जल स्रोतों में इन मिठासों की मात्रा 30% तक अधिक पाई गई। इसका सीधा संबंध पानी की खपत बढ़ने और सीवेज उत्पादन में वृद्धि से है। इसके चलते पर्यावरणीय दबाव और अधिक खतरनाक रूप ले सकता है।
सीधा असर डीएनए, हार्मोन और जलीय जीवन पर
इन स्वीटनर्स का शरीर में कोई पोषण नहीं होता, ये सीधे मूत्र या मल के माध्यम से बाहर निकल जाते हैं। लेकिन यही ‘सुविधाजनक' तत्व अब जल स्रोतों को दूषित कर रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि इनका प्रभाव जलीय जीवों की प्रजनन प्रणाली, डीएनए संरचना, और मानव हार्मोन सिस्टम तक को प्रभावित कर सकता है।
विशेषज्ञों की चेतावनी
“हम ऐसे युग में प्रवेश कर चुके हैं जहां स्वाद के लिए किए जा रहे निर्णय प्रकृति के लिए स्थायी खतरा बनते जा रहे हैं।”
— डॉ. स्टुअर्ट खान, जल गुणवत्ता विशेषज्ञ, UTS
नीति निर्धारकों को चाहिए कि वे शुगर-फ्री उत्पादों पर सख्त पर्यावरणीय मानक लागू करें।
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की क्षमता को नए खतरों के अनुसार अपडेट किया जाए।
जनता को भी जागरूक होना होगा कि ‘बिना चीनी’ का मतलब हमेशा ‘बिना असर’ नहीं होता।
यह रिपोर्ट सिर्फ चेतावनी नहीं, आने वाले पर्यावरणीय संकट की आहट है। सवाल यह है—हम कब जागेंगे?
Baten UP Ki Desk
Published : 19 July, 2025, 2:24 pm
Author Info : Baten UP Ki