"हम भारत के लोग'' में छिपी है आज़ाद भारत की आत्मा...
'हम भारत के लोग' से शुरू होकर 448 आर्टिकल समेटे हुए भारत के संविधान की इस एक वाक्य में आत्मा बसती है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना हमारे देश के मूलभूत आदर्शों और उद्देश्यों का सार प्रस्तुत करती है। यह न केवल संविधान की आत्मा को उजागर करती है, बल्कि भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए समानता, स्वतंत्रता, और न्याय का संदेश देती है। प्रस्तावना में राजनीतिक, आर्थिक, और सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने के साथ-साथ व्यक्तियों को अभिव्यक्ति, विश्वास, और स्वतंत्रता के अधिकार दिए गए हैं।
प्रस्तावना में छिपा है संविधान का मूल तत्व-
इसमें आपसी भाईचारे और बंधुत्व का विशेष महत्व है, जो केवल व्यक्ति के सम्मान तक सीमित नहीं है, बल्कि देश की एकता और अखंडता को मजबूत करता है। बंधुत्व का उद्देश्य समाज में व्याप्त सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद, जातिवाद, और भाषावाद जैसी बाधाओं को समाप्त कर एक समरस और सौहार्दपूर्ण वातावरण का निर्माण करना है। प्रस्तावना हमें यह याद दिलाती है कि विविधता में एकता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है, और इसे बनाए रखना हर नागरिक का कर्तव्य है।
समय के चक्र पर भारत का संविधान: कितना खरा उतरा?
भारत का संविधान, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का आधार स्तंभ है, जिसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था। यह केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की गहराई और भविष्य की चुनौतियों का समाधान देने वाला एक मार्गदर्शक दस्तावेज है। समय के चक्र में इसने अपनी उपयोगिता और लचीलापन दोनों साबित किया है, लेकिन इसके सामने कई चुनौतियां भी खड़ी हुई हैं।
क्या है संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि?
भारतीय संविधान, ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बनाए गए आदर्शों और मूल्यों का परिणाम है। इसका मसौदा संविधान सभा द्वारा तैयार किया गया, जिसमें डॉ. भीमराव अंबेडकर ने प्रमुख भूमिका निभाई। यह संविधान 2 साल, 11 महीने और 18 दिन की गहन चर्चा और 165 दिनों के सत्रों में तैयार हुआ। संविधान ने भारत को एक लोकतांत्रिक, संप्रभु, समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष गणराज्य के रूप में परिभाषित किया। यह विभिन्न जातियों, धर्मों, और संस्कृतियों वाले देश में समरसता और समानता स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
संविधान की प्रमुख विशेषताएं
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मौलिक अधिकार और कर्तव्य: संविधान के भाग III में नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकार न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता सुनिश्चित करते हैं, बल्कि सामाजिक समानता और न्याय का भी आधार हैं। अनुच्छेद 32 और 226 न्यायपालिका को एक 'संरक्षक' के रूप में स्थापित करते हैं।
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संघवाद और विकेंद्रीकरण: संविधान ने केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया। यह संघीय ढांचे के माध्यम से राज्यों को स्वतंत्रता देता है, जबकि केंद्र सरकार को देश की अखंडता बनाए रखने की शक्ति प्रदान करता है।
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धर्मनिरपेक्षता: संविधान ने सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखने का सिद्धांत अपनाया। यह सिद्धांत भारत जैसे विविधतापूर्ण समाज के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक है।
- लचीला और स्थिर: संविधान में संशोधन की प्रक्रिया को सरल और जटिल दोनों बनाया गया, ताकि यह समय और परिस्थितियों के अनुसार बदला जा सके। अब तक 100 से अधिक संशोधन किए जा चुके हैं, जो इसकी प्रासंगिकता बनाए रखने में सहायक हैं।
क्या है संविधान की उपलब्धियां?
भारत का संविधान कई कारणों से सफल रहा है:
- लोकतांत्रिक स्थिरता: आपातकाल की छोटी अवधि को छोड़कर, भारत लगातार लोकतांत्रिक रहा है।
- राष्ट्रीय एकता: संविधान ने विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों, और परंपराओं वाले देश को एकीकृत रखने में अहम भूमिका निभाई है।
- वंचित वर्गों का उत्थान: आरक्षण और अन्य सकारात्मक भेदभावकारी नीतियों के माध्यम से अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया गया है।
क्या है संविधान पर समय की चुनौती?
हालांकि संविधान ने अपने लचीलेपन और व्यापक दृष्टिकोण के कारण समय-समय पर चुनौतियों का सामना किया है, लेकिन कुछ चिंताजनक प्रवृत्तियां भी उभरी हैं:
- केंद्रीकरण की प्रवृत्ति: राज्यों की शक्तियां धीरे-धीरे कम हो रही हैं। जीएसटी प्रणाली ने राज्यों की वित्तीय स्वतंत्रता को प्रभावित किया है।
- मौलिक अधिकारों का हनन: पिछले कुछ वर्षों में ऐसे कानून बनाए गए हैं जो मौलिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता को सीमित करते हैं।
संविधान की आलोचना: कुछ वर्गों द्वारा संविधान को पुराना और अप्रासंगिक कहने की प्रवृत्ति बढ़ी है। हालांकि, यह तथ्य अनदेखा किया जाता है कि यह संविधान भारत की विविधता और चुनौतियों के अनुरूप है।
क्या है भविष्य की मांग?
संविधान को लेकर समय-समय पर सुधार और पुनरावलोकन की आवश्यकता है। कुछ सुझाव इस प्रकार हैं:
- स्थानीय निकायों को सशक्त करना: राज्यों को केंद्र से स्वतंत्रता मांगने के साथ-साथ स्थानीय निकायों को अधिक शक्तियां देनी चाहिए।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता: न्यायपालिका पर कार्यपालिका के प्रभाव को सीमित करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।
- संविधान के मूल्यों का प्रचार: संविधान को केवल कानूनी दस्तावेज न मानकर इसे लोगों के जीवन में व्यावहारिक रूप से लागू करने के प्रयास होने चाहिए।
राष्ट्रपति के संबोधन की प्रमुख बातें-
राष्ट्रपति ने संविधान दिवस पर अपने विशेष संबोधन में देशवासियों को बधाई दी और संविधान सभा की ऐतिहासिक उपलब्धियों को याद किया। उन्होंने कहा कि:
- संविधान हमारे देश का सबसे पवित्र ग्रंथ है और यह सामूहिक व व्यक्तिगत स्वाभिमान को सुनिश्चित करता है।
- 75 साल पहले, इसी संविधान सभा के सेंट्रल हॉल में, संविधान निर्माण का कार्य पूरा हुआ था।
- उन्होंने संविधान सभा के सभी सदस्यों, विशेषकर 15 महिला सदस्यों और नेपथ्य में कार्यरत अफसरों को श्रद्धांजलि अर्पित की।
- राष्ट्रपति ने बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के प्रगतिशील और समावेशी दृष्टिकोण की सराहना करते हुए उन्हें संविधान निर्माता के रूप में याद किया।
26 नवंबर 1949 को संविधान लागू क्यों नहीं हुआ?
संविधान को 26 जनवरी 1950 को लागू करने का निर्णय ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है।
- 26 जनवरी 1930 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज का नारा दिया था।
- 1929 के लाहौर अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में स्वतंत्रता की शपथ ली गई।
- 26 जनवरी 1930 से लेकर 15 अगस्त 1947 तक 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता था।
- इसी ऐतिहासिक दिन के सम्मान में संविधान को 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया, जिसे गणतंत्र दिवस घोषित किया गया।
संविधान निर्माण में प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा का योगदान-
- भारत के संविधान की मूल अंग्रेजी पांडुलिपि प्रसिद्ध कैलीग्राफर प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा ने अपने हाथों से लिखी थी।
- जवाहरलाल नेहरू के आग्रह पर उन्होंने यह कार्य निःशुल्क किया।
- पांडुलिपि लिखने में उन्हें 6 महीने का समय लगा और इस प्रक्रिया में 432 निब का इस्तेमाल हुआ।
संविधान की अनूठी विशेषताएं-
- संविधान की अंग्रेजी पांडुलिपि में 1,17,369 शब्द हैं। इसमें 444 अनुच्छेद, 22 भाग, और 12 अनुसूचियां शामिल हैं।
- हर भाग को शांति निकेतन के प्रसिद्ध कलाकार नंदलाल बोस और उनकी टीम ने अपनी चित्रकारी से सजाया।
- संविधान की हिंदी पांडुलिपि कैलीग्राफर वसंत कृष्ण वैद्य ने लिखी। इसका कागज पुणे के हैंडमेड पेपर रिसर्च सेंटर में बनाया गया था।
- हिंदी संस्करण के 264 पन्नों का कुल वजन 14 किलोग्राम है।
सरकार के हालिया प्रयासों की सराहना-
राष्ट्रपति ने संविधान के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए सरकार के प्रयासों की सराहना की।
- उन्होंने कहा कि देश में विश्वस्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जा रहा है।
- पिछड़े वर्गों को पक्का घर और खाद्य सुरक्षा जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद और बाबा साहेब अंबेडकर का मार्गदर्शन-
राष्ट्रपति ने संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद और प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व को राष्ट्र का सौभाग्य बताया।
- बाबा साहेब ने संविधान में प्रगतिशील और समावेशी समाज की नींव रखी।
- उन्होंने संविधान सभा के सलाहकार बी. एन. राव के योगदान को भी याद किया।
26 जनवरी 2025: 75वीं वर्षगांठ-
राष्ट्रपति ने घोषणा की कि 26 जनवरी 2025 को हम संविधान के लागू होने की 75वीं वर्षगांठ मनाएंगे। यह दिन भारतीय लोकतंत्र और संविधान की ताकत का प्रतीक होगा। संविधान दिवस पर राष्ट्रपति का संबोधन हमारे देश के लोकतांत्रिक मूल्यों और संविधान निर्माण में जुड़े हर व्यक्ति के योगदान का आदर करने का अवसर है। यह दिन हमें संविधान के प्रति समर्पण और इसके उद्देश्यों को साकार करने की प्रेरणा देता है।