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स्थानीय भाषाओं को मिलेगी डिजिटल पहचान...अब हिंदी में भी चलेंगी ये वेबसाइट्स!

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डिजिटल इंडिया अब सिर्फ एक पहल नहीं, बल्कि एक क्रांति बनती जा रही है। इस क्रांति का अगला बड़ा कदम है – इंटरनेट की दुनिया में भारतीय भाषाओं की भागीदारी। अब भारत सरकार अपनी वेबसाइटों के पते (URLs) को भी हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध करा रही है। इसका ताजा उदाहरण है: गृहमंत्रालय.सरकार.भारत। अब लोगों को “mha.gov.in” जैसे अंग्रेज़ी URL याद रखने की जरूरत नहीं। बस सीधे अपनी भाषा में टाइप कीजिए – और पहुंच जाइए मंत्रालय की वेबसाइट पर।

स्थानीय भाषाओं को मिलेगी डिजिटल पहचान

यह कदम सरकार की Universal Acceptance (UA) की दिशा में एक बड़ी पहल मानी जा रही है। Universal Acceptance का अर्थ है कि इंटरनेट केवल अंग्रेज़ी भाषियों के लिए नहीं, बल्कि सभी भाषाओं के उपयोगकर्ताओं के लिए सुलभ होना चाहिए। इसके तहत वेबसाइट URLs, ईमेल ID आदि को स्थानीय भाषाओं में भी मान्यता दी जा रही है।

क्यों है यह जरूरी?

भारत जैसे देश में जहाँ करोड़ों लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, उनमें से बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो अंग्रेज़ी नहीं जानते। ऐसे में अगर वेबसाइट के पते हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में हों, तो डिजिटल पहुंच और ज्यादा आसान और व्यापक हो जाएगी। यही है "डिजिटल समावेशन" की असली ताकत।

कौन-कौन कर रहा है शुरुआत?

गृह मंत्रालय ने सबसे पहले इस दिशा में पहल की है। अब वह “गृहमंत्रालय.सरकार.भारत” जैसे हिंदी डोमेन का इस्तेमाल कर रहा है। इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय, अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय, और NIXI (National Internet Exchange of India) जैसे संस्थान भी इस मुहिम में शामिल हो चुके हैं।

लेकिन तकनीकी चुनौतियां भी हैं...

इंटरनेट की मूलभूत संरचना ASCII नाम की स्क्रिप्ट पर बनी है, जो सिर्फ अंग्रेज़ी के अक्षरों को पहचानती है। ऐसे में जब कोई हिंदी डोमेन टाइप किया जाता है, तो वह पुनीकोड नामक प्रणाली के जरिए एक विशेष फॉर्मेट में कनवर्ट हो जाता है। उदाहरण के लिए “गृहमंत्रालय.सरकार.भारत” असल में बैकएंड पर कुछ ऐसा दिखता है: xn--…

हालांकि तकनीक अब काफी आगे बढ़ चुकी है। आज के ब्राउज़र और ईमेल क्लाइंट्स IDN (Internationalized Domain Name) को सपोर्ट करने लगे हैं।

कंपनियाँ क्यों पीछे हैं?

सरकारी स्तर पर तो यह पहल तेज़ी से हो रही है, लेकिन निजी कंपनियाँ अभी भी अंग्रेज़ी डोमेन पर ही निर्भर हैं। कारण? स्पष्ट है – फायदे की कमी। जब तक कंपनियों को यह महसूस नहीं होगा कि हिंदी या क्षेत्रीय भाषाओं के डोमेन्स से उन्हें कोई व्यावसायिक लाभ मिलेगा, तब तक वे IDN को अपनाने से कतराएंगी। विशेषज्ञों का मानना है कि केवल अवेयरनेस ही काफी नहीं, बल्कि यूज़र बिहेवियर और मार्केट डिमांड में बदलाव लाना होगा। तभी डिजिटल इंडिया का सपना, हर भाषा में, हर गांव तक पहुँच पाएगा।

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