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दक्षिण अफ्रीका की वो ऐतिहासिक दिवाली, स्वतंत्रता की ओर थी दीपों की रोशनी...

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दीपावली का पर्व सिर्फ दीपों की रोशनी और खुशी का ही नहीं, बल्कि यह साहस, समानता, और स्वतंत्रता की अदम्य चाह का प्रतीक भी है। दक्षिण अफ्रीका की धरती पर भारतीय समुदाय ने दीपों के इस पर्व को अपने अधिकारों की लौ जलाने के लिए इस्तेमाल किया। वहाँ की मिट्टी में इस त्योहार ने एक ऐसा आंदोलन जन्म दिया जिसने भारतीय मजदूरों को उनकी सांस्कृतिक पहचान वापस दिलाई और भविष्य में सत्याग्रह की राह प्रशस्त की।

1860 का दशक: भारतीय मजदूर और ‘इंडेंचरड लेबरर्स’ की पीड़ा-

1860 के दशक में ब्रिटिश शासन ने भारत से भारतीय मजदूरों को ‘इंडेंचरड लेबरर्स’ के रूप में दक्षिण अफ्रीका में गन्ने के खेतों में काम करने के लिए भेजा। इन मजदूरों पर कई तरह की पाबंदियाँ लगाई गईं, जिनमें एक महत्वपूर्ण पाबंदी थी दीपावली न मनाने की। ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने उन्हें इस त्योहार को मनाने से रोक दिया था। इतिहासकार अश्विन देसाई और गुलाम वाहेद ने अपनी किताब Inside Indenture (2010) में उल्लेख किया है कि कैसे इन मजदूरों ने अपने अधिकारों के लिए लड़ाई शुरू की और संघर्ष करते हुए 1907 में जाकर दीपावली मनाने का अधिकार पाया। दीपावली मनाने के इस अधिकार ने उन्हें संघर्ष की राह पर आगे बढ़ने की हिम्मत दी और भविष्य में यह संघर्ष महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन की नींव भी बना।

2007: दक्षिण अफ्रीका में दीपावली के संघर्ष का शताब्दी उत्सव

साल 2007 में जब इस संघर्ष के 100 साल पूरे हुए, तो दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने इसे खास अंदाज में याद किया और एक विशेष संदेश जारी किया। इस संदेश में भारतीय समुदाय के उस संघर्ष को सम्मानित किया गया, जिसमें उन्होंने अपने सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा की थी। इसी के साथ, स्वतंत्रता सेनानी भाई परमानंद का योगदान भी सराहा गया जिन्होंने 1906 में ‘हिंदू यंग मेन सोसाइटी’ की स्थापना की। इस सोसाइटी ने समाज में जागरूकता फैलाने के साथ सांस्कृतिक अधिकारों के लिए भी लड़ाई लड़ी और भारतीय समुदाय के लिए एक सशक्त मंच का निर्माण किया।

1913 का दीपावली सत्याग्रह और वल्लियम्मा का बलिदान-

महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में 1913 में एक नए सत्याग्रह अभियान की शुरुआत की जिसमें कई महिलाएं भी शामिल हुईं। उसी वर्ष 29 अक्टूबर को दीपावली थी, और इस अवसर पर मात्र 16 वर्ष की वल्लियम्मा मुनुस्वामी अपनी माँ के साथ सत्याग्रह करते हुए नटाल पहुंचीं। वल्लियम्मा को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया, जहाँ कठोर मेहनत के कारण उनकी तबीयत बिगड़ गई। रिहाई का प्रस्ताव ठुकराते हुए, उन्होंने सत्याग्रह का साथ नहीं छोड़ा और जेल में ही 22 फरवरी 1914 को उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। गांधीजी ने वल्लियम्मा के बलिदान को स्वतंत्रता संघर्ष की एक अनोखी प्रेरणा बताया और भारत लौटने के बाद 1915 में उनके पैतृक घर भी गए। वर्षों बाद उन्होंने कहा कि वल्लियम्मा का यह बलिदान उनकी आजादी की लड़ाई को मजबूत करने का संकल्प बना।

नेल्सन मंडेला और दीपावली: मानवता के संदेश की शुरुआत

दक्षिण अफ्रीका की दीपावली गाथा का एक और अनोखा अध्याय नेल्सन मंडेला से जुड़ा है। जब मंडेला रोबेन आइलैंड जेल में बंद थे, तो दीपावली के समय उनके साथी कुछ मिठाइयां लाकर उन्हें देते और प्रार्थना करते थे। जेल के अधिकारियों ने एक नियम लागू किया कि मिठाइयाँ केवल हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए होंगी। मंडेला और उनके साथी इस विभाजन का विरोध करते हुए बोले कि हिंदू धर्म की शिक्षाएं मानवता के लिए हैं। अधिकारियों को यह मानना पड़ा कि दीपावली का संदेश केवल एक समुदाय तक सीमित नहीं है। मंडेला ने इस अवसर से प्रेरणा लेकर यह कहा कि रामायण और दीपावली का संदेश स्वतंत्रता और शांति की दिशा में नई सोच का संकेत देता है।

दीपावली: दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष का प्रतीक

दक्षिण अफ्रीका में दीपावली की गाथा केवल एक पर्व की नहीं, बल्कि एक आंदोलन की है। यह पर्व दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों की स्वतंत्रता, समानता और अधिकारों के संघर्ष का प्रतीक बना। दीपावली हमें केवल रोशनी का नहीं, बल्कि उस संघर्ष का भी स्मरण कराती है जिसने भारतीयों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा दी।

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