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चुनौती बनकर उभरी हैं भारत में दुर्लभ बीमारियां, जानिए क्या हैं चुनौतियां

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दुर्लभ बीमारियाँ भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती बनकर उभरी हैं। इन बीमारियों का प्रभाव न केवल रोगियों के जीवन पर पड़ता है बल्कि देश की स्वास्थ्य नीतियों और संसाधनों पर भी गहरा असर डालता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दुर्लभ बीमारियाँ वे होती हैं जिनकी व्यापकता प्रति 1,000 व्यक्तियों में 1 या उससे कम होती है। वैश्विक स्तर पर लगभग 7,000 से अधिक दुर्लभ बीमारियों की पहचान की गई है, जो लाखों लोगों को प्रभावित करती हैं।

भारत में दुर्लभ बीमारियों का परिदृश्य-

भारत में दुर्लभ बीमारियों से संबंधित प्रमुख समस्याओं में महामारी विज्ञान डेटा की कमी शामिल है, जिससे इन बीमारियों की पहचान और उपचार में कठिनाई होती है। चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 14,472 दुर्लभ बीमारियों के मामलों को दर्ज किया गया है, जो कि इन बीमारियों से प्रभावित जनसंख्या का केवल एक अंश दर्शाते हैं। अधिकांश दुर्लभ बीमारियाँ आनुवंशिक होती हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होती हैं, और इनका कोई प्रभावी इलाज उपलब्ध नहीं होता है। हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने दुर्लभ बीमारियों के इलाज हेतु आवश्यक अनाथ दवाओं (Orphan Drugs) की उपलब्धता में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। इस दिशा में राष्ट्रीय दुर्लभ रोग कोष (NRDF) का गठन किया गया है, जो दुर्लभ बीमारियों के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराएगा।

दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य निर्देश-

दिल्ली उच्च न्यायालय ने दुर्लभ बीमारियों के इलाज को सुगम बनाने हेतु कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए हैं:

  1. राष्ट्रीय दुर्लभ रोग कोष (NRDF) का गठन: इस कोष का उद्देश्य दुर्लभ बीमारियों के लिए दवाओं की कीमतों को कम करना और उन्हें अधिक सुलभ बनाना है।
  2. कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR): दुर्लभ बीमारियों के लिए CSR योगदान को बढ़ावा देने के लिए कंपनी अधिनियम, 2013 में संशोधन किया गया है।
  3. फास्ट-ट्रैक अनुमोदन प्रक्रिया: औषधि महानियंत्रक (DCGI) और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) को दुर्लभ बीमारियों की दवाओं के लिए विशेष फास्ट-ट्रैक अनुमोदन प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया गया है।
  4. केंद्रीकृत सूचना पोर्टल: तीन महीने के भीतर एक राष्ट्रीय पोर्टल विकसित करने के निर्देश दिए गए हैं, जिसमें रोगियों की रजिस्ट्री और उपचार संबंधी जानकारी शामिल होगी।

दुर्लभ बीमारियों का आर्थिक बोझ

दुर्लभ बीमारियों के इलाज में एक बड़ी चुनौती उनकी उच्च लागत है। अनाथ दवाओं की कीमतें अक्सर बहुत अधिक होती हैं क्योंकि यह दवाएँ पेटेंट की जाती हैं, जिससे इन्हें बनाना और बाजार में लाना महंगा हो जाता है। अधिकांश दुर्लभ बीमारियों के लिए उपलब्ध दवाएँ केवल 5% ही हैं, जिसका मतलब है कि अधिकांश रोगियों के पास कोई प्रभावी उपचार नहीं होता। दिल्ली उच्च न्यायालय ने दवा कंपनियों को घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने और लागत कम करने पर जोर दिया है। अदालत ने यह भी चिंता व्यक्त की कि दुर्लभ बीमारियों के लिए 2019 के आदेश में अनाथ दवाओं को मूल्य नियंत्रण से छूट दी गई थी, जिससे दवाओं की कीमतें अधिक हो गईं।

नीतिगत ढांचा और हालिया घटनाक्रम-

भारत सरकार ने दुर्लभ बीमारियों के प्रबंधन के लिए 2021 में राष्ट्रीय दुर्लभ बीमारी नीति (NPRD) की घोषणा की थी। इस नीति के तहत मरीजों को उपचार के लिए 50 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता दी जाती है, जिसमें दिल्ली एम्स और पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ जैसे केंद्रों में इलाज किया जा सकता है। हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जारी किए गए निर्देशों के अनुसार, उपचार तक पहुँच को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय दुर्लभ रोग कोष (NRDF) स्थापित किया गया है। इस कोष का मुख्य उद्देश्य दुर्लभ बीमारियों के लिए दवाओं की कीमतें कम करना और उनकी उपलब्धता में सुधार करना है।

आर्थिक और वित्तीय चुनौतियाँ-

दुर्लभ बीमारियों का उपचार विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील देशों के लिए आर्थिक चुनौती है। सीमित वित्तीय संसाधनों के चलते सरकार के लिए प्राथमिकता तय करना मुश्किल हो जाता है। दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए आवश्यक महंगे हस्तक्षेप कई बार जनसंख्या के बड़े हिस्से के लिए फायदेमंद नहीं होते, जिससे संसाधनों का असमान वितरण होता है। हालांकि, राष्ट्रीय आरोग्य निधि जैसी वित्तीय योजनाएँ गरीब रोगियों को सहायता प्रदान करती हैं, लेकिन यह अधिकांश दुर्लभ बीमारियों से जूझ रहे परिवारों के लिए पर्याप्त नहीं है। अगस्त 2024 तक दुर्लभ बीमारियों से प्रभावित रोगियों के लिए केवल 24 करोड़ रुपये की सहायता दी गई थी, जोकि आवश्यकताओं की तुलना में बहुत कम है।

समावेशी नीति ढांचे की आवश्यकता-

भारत में दुर्लभ बीमारियों से निपटने के लिए एक मजबूत और समावेशी नीति ढांचे की आवश्यकता है। निम्नलिखित उपाय इस दिशा में महत्वपूर्ण हो सकते हैं:

  1. डेटा संग्रहण में सुधार: दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित रोगियों की संख्या और बीमारी की गंभीरता को बेहतर ढंग से समझने के लिए व्यवस्थित डेटा संग्रहण की आवश्यकता है।
  2. घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना: सरकार को दवा कंपनियों को स्थानीय स्तर पर दुर्लभ बीमारियों के लिए दवाएँ विकसित करने के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए। इससे लागत कम होगी और दवाओं की उपलब्धता बढ़ेगी।
  3. स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में सुधार: दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित रोगियों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाने के लिए विशेष स्वास्थ्य सेवाएँ और केंद्र स्थापित किए जाने चाहिए।
  4. वित्तपोषण में वृद्धि: कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के माध्यम से दुर्लभ बीमारियों के लिए वित्तपोषण बढ़ाया जा सकता है, जिससे रोगियों को बेहतर इलाज मिल सके।

सरकार द्वारा शुरू की गई नीतियाँ महत्वपूर्ण कदम-

दुर्लभ बीमारियों से निपटने के लिए भारत को एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। सरकार द्वारा शुरू की गई नीतियाँ और योजनाएँ एक महत्वपूर्ण कदम हैं, लेकिन उन्हें और अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने की आवश्यकता है। बेहतर डेटा संग्रहण, जागरूकता कार्यक्रमों और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ-साथ वित्तपोषण में सुधार से दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित रोगियों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आ सकता है।

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