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बिना नोटिस नहीं किया जा सकता विध्वंस...बुलडोजर एक्शन पर आया सुप्रीम फैसला

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि किसी भी संपत्ति पर तब तक विध्वंस नहीं किया जाएगा जब तक उसके मालिक को उचित समय पहले नोटिस न दिया जाए। संविधान में दिए गए अधिकारों के संदर्भ में कोर्ट ने कहा कि राज्य किसी भी व्यक्ति की संपत्ति को बिना उचित प्रक्रिया के नहीं छीन सकता। कोर्ट ने यह कदम कानून के शासन और नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाया है।

"शक्ति के विभाजन का सिद्धांत नहीं होगा बाधित"-

कोर्ट ने कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति के संतुलन की बात करते हुए कहा कि दोनों अपने-अपने कार्यक्षेत्र में काम करते हैं, और कार्यपालिका को न्यायिक अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। किसी व्यक्ति की संपत्ति केवल आरोपी होने के आधार पर जब्त करना शक्ति के विभाजन के सिद्धांत का उल्लंघन है। कोर्ट ने कड़ा संदेश देते हुए कहा कि जो अधिकारी कानून का दुरुपयोग करते हैं, उन्हें अपनी जिम्मेदारी के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा।

"मौलिक अधिकारों का हनन अस्वीकार्य"-

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि कार्यपालिका किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहरा सकती, और उसे इस प्रकार की विध्वंस कार्रवाई का निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। आवास का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, और इसे केवल उचित न्यायिक प्रक्रिया के बाद ही बाधित किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि निर्दोष व्यक्तियों के घरों पर विध्वंस का आदेश देना असंवैधानिक है, और यह सरकार का कर्तव्य है कि वह नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा करे।

विध्वंस से 15 दिन पहले नोटिस अनिवार्य-

कोर्ट ने निर्देश दिया कि किसी भी संपत्ति को तोड़ने से पहले उसके मालिक को कम से कम 15 दिन पहले नोटिस दिया जाए। यह नोटिस पंजीकृत डाक द्वारा भेजा जाएगा और इसे निर्माण की बाहरी दीवार पर चिपकाया जाएगा। नोटिस में अवैध निर्माण का कारण, विध्वंस की वजहें, और उल्लंघन का विवरण स्पष्ट रूप से उल्लेखित होना चाहिए। इसके अलावा, विध्वंस की पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी भी की जाएगी ताकि भविष्य में इसकी पुष्टि हो सके। यदि किसी भी नियम का उल्लंघन होता है, तो इसे कोर्ट की अवमानना माना जाएगा।

'घर' केवल एक संरचना नहीं, बल्कि भविष्य की आशा का प्रतीक-

कोर्ट ने कहा कि घर बनाना किसी भी व्यक्ति के लिए केवल एक निर्माण नहीं होता; यह उसकी मेहनत, सपनों, और सुरक्षा का प्रतीक होता है। विध्वंस से पहले सरकार को यह साबित करना होगा कि यह कदम उठाना उनके पास एकमात्र विकल्प था। अगर इसके बिना मामला सुलझ सकता है, तो उस दिशा में कदम उठाने चाहिए।

पहले भी जारी हुआ था अंतरिम आदेश-

सुप्रीम कोर्ट ने पहले एक अंतरिम आदेश में अधिकारियों को निर्देश दिया था कि बिना उचित आदेश के कोई विध्वंस अभियान न चलाया जाए। हालांकि, यह आदेश उन अवैध निर्माणों पर लागू नहीं था, जो सड़कों और सार्वजनिक स्थानों पर बने थे। कोर्ट ने यह भी कहा कि सार्वजनिक सुरक्षा का ध्यान रखते हुए सड़कों के बीच धार्मिक ढांचे नहीं बनने चाहिए।

"अपराध के आरोप मात्र से घरों का विध्वंस नहीं हो सकता"

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस मुद्दे पर गौर किया कि अपराध का आरोप लगने के आधार पर किसी की संपत्ति पर बुलडोजर चलाना असंवैधानिक है। जस्टिस बी.आर. गवाई ने कहा कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू होते हैं। इस कानून का उद्देश्य किसी धर्म, जाति या समुदाय के आधार पर भेदभाव न करना है।

संयुक्त राष्ट्र ने जताई थी चिंता-

इससे पहले, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के प्रतिनिधि ने इस प्रकार के विध्वंस को मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन बताते हुए चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने कहा कि ऐसी कार्रवाइयां अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ भेदभावपूर्ण व्यवहार को दर्शा सकती हैं।

नागरिक अधिकारों की सर्वोच्चता बनी रहेगी-

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब सरकार और प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी विध्वंस कार्रवाई से पहले नागरिकों को पर्याप्त समय और उचित प्रक्रिया का पालन किया जाए।

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