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सुप्रीम कोर्ट ने आज यानी मंगलवार को वायु प्रदूषण और खेतों में पराली जलाने वाली याचिका पर सुनवाई की। इस दौरान शीर्ष अदालत ने पंजाब सरकार को जमकर फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि किसानों को विलेन बनाया जा रहा है, क्योकि कोर्ट में उनकी बातें नहीं सुनी जा रही हैं। कोर्ट ने आगे कहा कि पंजाब सरकार और केंद्र सरकार को इस मसले पर राजनीति नहीं करनी चाहिए। यह मालूम करने का प्रयास करना चाहिए कि प्रदूषण कैसे कम हो सके।
हर साल अक्टूबर आते ही दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। जिसके बाद कई तरह के सेफ्टी नॉर्म्स फॉलो किये जाने लगते हैं। सार्वजनिक परिवहन, कारपूलिंग, पटाखों के इस्तेमाल से बचने, स्कूल बंद करने और वर्क फ्रॉम होम जैसी एडवाइजरी जारी की जाती है। खास बात ये है कि हर साल इस विपदा के साथ पराली ज्वलन जैसे दैत्य का नाम भी सामने आता है। पराली जलाने की प्रथा पिछले कुछ दशकों से लगातार बढ़ी है। जिससे वायुप्रदूषण बढ़ने के अलावा कई और समस्याएं सामने आयी है। जिसके मद्देनजर इस हानिकारक कृषि पद्धति पर अंकुश लगाने के लिए एक बहुआयामी योजना का होना जरूरी है। आइये विस्तार से इस मुद्दे के सभी पहलुओं पर चर्चा करते हैं।
पराली क्या है और इसे क्यों जलाया जाता है-
भारत के उत्तर पश्चिम इलाके, खास कर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में, धान की फसल कटने के बाद बचे हुए हिस्से को पराली कहा जाता है। दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी के साथ, सितंबर के अंत से नवंबर तक गेहूं की बुआई के लिए खेतों से पराली हटा कर साफ़ करना होता है। जिसके लिए अक्टूबर और नवंबर में पराली को जला कर खेत साफ़ करने का आम चलन है।
प्रदूषण के लिए पराली कितनी जिम्मेदार-
अभी हाल ही में जर्मनी की सॉफ्टवेयर कंपनी SAP के डिप्टी-चेयरमैन पुनित रेनजेन ने जानकारी देते हुए बताया कि दिल्ली में वायु गुणवत्ता संबंधी समस्याओं में पराली जलाने का योगदान लगभग 25 से 30 प्रतिशत का है। आंकड़ों के बारे में उन्होंने कहा कि पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने के 80 हजार मामले होते हैं। जिसमें करीब 1.3 करोड़ टन पराली जलाई जाती है। जिसका रिजल्ट ये होता है कि इससे 1.9 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य हानिकारक गैस वायुमंडल में फैलती हैं।
क्यों हुई पराली जलाने की शुरूआत-
दरअसल पहले, पराली सहित दूसरे फसल अवशेष, पशुओं के चारे और रसोई ईंधन के लिए काम आते थे। इसके बाद 1990 के दशक में भूजल निकासी के लिए सब्सिडी वाली बिजली जैसे कई कारकों ने कृषि गतिशीलता को बदल दिया। इसके बाद टेक्नोलॉजी थोड़ा और आगे बढ़ी। जिसके चलते कटाई के लिए ऐसी कंबाइंड हार्वेस्टर मशीनें आयी जो कटाई करवाने के बाद खेतों में 2-3 फीट की डंठल और पराली छोड़ने लगी। अब इस पराली का निपटान करने के लिए ट्रेडिशनल विधि को छोड़ कर अलग व्यवस्था देखनी पड़ रही थी। इसी के साथ-साथ पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में सब्सिडी वाली बिजली ने भरपूर सिंचाई का जुगाड़ कर दिया। जिससे धान के उत्पादन रकबे में भी बढ़ोत्तरी हुई। जिसने श्रम की मांग को और भी बढ़ा दिया। अब लोगों ने श्रम-बचत के तौर पर मशीनों को अपनाना शुरू कर दिया। जिसका रिजल्ट ये आ रहा है कि पराली और ज्यादा बढ़ती जा रही है। अब धान का पुआल भी उच्च सिलिका के चलते पशु आहार के रूप में भी यूज नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा अगर इसे वापस खेत में डाल दिया जाए तो यह बाद में बोई जाने वाली फसल को प्रभावित करता है।
इससे बचने के समाधान-
जानकार इस बड़ी समस्या से निपटने के लिए कई समाधान प्रस्तावित कर रहे हैं। जैसे- सबसे पहला है बिजली सब्सिडी पर पुनर्विचार - धान की खेती में सिंचाई के लिए बिजली की सब्सिडी को समाप्त करने या कम करने से किसानों को धान की खेती से हतोत्साहित किया जा सकता है। किसानों को बिजली सब्सिडी के बजाय, उन्हें सीधे नकद या लाभ अंतरण (डीबीटी) प्रदान किया जाना चाहिए।
Baten UP Ki Desk
Published : 21 November, 2023, 8:10 pm
Author Info : Baten UP Ki