बड़ी खबरें

'संभल में शाही जामा मस्जिद को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के हस्तक्षेप नहीं', सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका 21 घंटे पहले 25 राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों में वन क्षेत्रों पर अतिक्रमण, MP और असम में सबसे ज्यादा 21 घंटे पहले IIT गुवाहाटी ने विकसित की बायोचार तकनीक, अनानास के छिलके-मौसमी के रेशे साफ करेंगे पानी 21 घंटे पहले बेहद खतरनाक जलवायु प्रदूषक है ब्लैक कार्बन, मानसून प्रणाली में उत्पन्न कर रहा है गंभीर बाधा 21 घंटे पहले संपत्ति का ब्योरा न देने वाले आईएएस अफसरों को करें दंडित, संसदीय समिति ने की सिफारिश 21 घंटे पहले 'राष्ट्र को मजबूत बनाती भाषाएं...,' सीएम योगी बोले- राजनीतिक हितों के लिए भावनाओं को भड़का रहे नेता 21 घंटे पहले

जब इनकी दिव्य वाणी से प्रभावित हुआ था सिकंदर लोदी...दिल्ली दरबार तक गूंजा था आध्यात्मिक संदेश!

Blog Image

जबरन मतांतरण कोई नई समस्या नहीं है; यह विकृति मध्ययुग में भी उतनी ही प्रबल थी, जितनी आज है। तब मुगल आक्रांताओं ने हिंदुओं को धमकी और प्रलोभन देकर इस्लाम कबूलने को बाध्य किया, तो आज मिशनरियां और कट्टरपंथी भोले-भाले लोगों को अपने जाल में फंसा रहे हैं। लेकिन इतिहास गवाह है कि हर अंधकार के खिलाफ प्रकाश की लौ जलती है। जिस तरह आज संत समाज मतांतरण के षड्यंत्र के विरुद्ध संघर्षरत है, उसी तरह भक्तिकालीन संतों ने अपने ओजस्वी विचारों से समाज को जागरूक किया। इस महायज्ञ में अग्रणी भूमिका निभाने वाले महान संत थे—भक्त शिरोमणि संत रविदास।

सामाजिक एकता और आध्यात्मिक जागरण के प्रतीक

माघ पूर्णिमा के पावन अवसर पर संत रविदास जयंती पूरे श्रद्धा भाव से मनाई जाती है। भारतीय संत परंपरा में अनेकों महापुरुषों ने सामाजिक एकता और भाईचारे का संदेश दिया, लेकिन संत रविदास जी का स्थान अद्वितीय है।1398 ई. में काशी (उत्तर प्रदेश) की पावन भूमि पर जन्मे संत रविदास बाल्यकाल से ही समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए समर्पित रहे। उनका प्रभाव इतना गहरा था कि दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोदी भी उनकी दिव्य वाणी से प्रभावित हुए और उन्हें अपने दरबार में आमंत्रित किया।

संत रविदास: जबरन मतांतरण के विरुद्ध अदम्य संघर्ष

मध्ययुग में जब बर्बर मुगल शासक सिकंदर लोदी अपने क्रूर अत्याचारों से हिंदू समाज को जबरन मतांतरण के लिए बाध्य कर रहा था, तब संत रविदास इस अन्याय के विरुद्ध दृढ़ता से खड़े हुए। उन्होंने न केवल सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों की रक्षा की बल्कि उन लोगों को भी स्वधर्म में लौटने की प्रेरणा दी, जो भय या प्रलोभन में आकर मतांतरित हो चुके थे।

सनातन धर्म की रक्षा का संकल्प

संत रविदास को अपने सद्गुरु स्वामी रामानंद जी की प्रेरणा प्राप्त थी। उन्होंने इस्लामी आक्रांताओं द्वारा चलाए जा रहे जबरन मतांतरण के षड्यंत्र के खिलाफ पूरे भारत में व्यापक जनजागरण अभियान चलाया। संत रविदास ने अपनी ओजस्वी वाणी से लोगों को आत्मबल प्रदान किया और उन्हें धर्म की दृढ़ता का संदेश दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि किसी भी परिस्थिति में वेदों के सत्य ज्ञान को नहीं छोड़ा जा सकता:

"वेद धर्म सबसे बड़ा अनुपम सच्चा ज्ञान
फिर क्यों छोड़ इसे पढ़ लूं झूठ कुरआन
वेद धर्म छोडूं नहीं कोसिस करो हजार
तिल-तिल काटो चाहि, गला काटो कटार"

सिकंदर लोदी की कुत्सित चाल और संत रविदास का अपराजेय तेज

सिकंदर लोदी ने संत रविदास की बढ़ती लोकप्रियता और उनके विचारों की प्रभावशाली शक्ति को देखकर उन्हें इस्लाम में परिवर्तित करने का षड्यंत्र रचा। उसने एक कसाई सदना को संत रविदास के पास इस्लाम अपनाने का संदेश देकर भेजा, यह सोचकर कि यदि संत रविदास इस्लाम स्वीकार लेते हैं, तो उनके लाखों अनुयायी भी मतांतरित हो जाएंगे। लेकिन नियति कुछ और ही थी। संत रविदास के तर्क, उनकी आध्यात्मिक शक्ति और दिव्य आचरण ने सदना को इतना प्रभावित किया कि उसने इस्लाम त्यागकर वैष्णव भक्ति अपना ली। वह संत रविदास का शिष्य बनकर "रामदास" के नाम से विष्णु भक्ति में लीन हो गया।

धर्म रक्षा का ज्वलंत उदाहरण

संत रविदास ने अपने निर्भीक विचारों और कर्तव्यों से यह सिद्ध कर दिया कि धर्म केवल आस्था का विषय नहीं, बल्कि आत्मगौरव और सत्य की अभिव्यक्ति भी है। उन्होंने भारत के हर कोने में जाकर हिंदुओं को मतांतरण के कुचक्र से बचाया और जिनका धर्म परिवर्तन किया गया था, उन्हें घर वापसी की राह दिखाई। संत रविदास की यह संघर्षगाथा न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह भी प्रमाणित करती है कि किसी भी कालखंड में धर्म और सत्य की रक्षा के लिए सच्चे संत और महापुरुष आगे आते हैं। उनकी वाणी, उनके कर्म और उनका जीवन आज भी सनातन संस्कृति के रक्षक और प्रेरणास्रोत बने हुए हैं।

संत कबीर के गुरुभाई

संत रविदास को संत कबीर का समकालीन और गुरुभाई माना जाता है। दोनों संतों का उद्देश्य समाज में फैली रूढ़ियों को तोड़ना और भक्ति का मार्ग प्रशस्त करना था। कबीर ने भी संत रविदास के महत्व को स्वीकारते हुए कहा— "संतन में रविदास।"

संत रविदास की शिष्या बनीं मीराबाई

भक्ति मार्ग की प्रेरणा

मीराबाई, जो श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थीं, संत रविदास की शिष्या बनीं। कहा जाता है कि उन्हें अपने आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा संत रविदास से ही मिली। मीराबाई ने अपने पदों में संत रविदास का उल्लेख करते हुए लिखा—
"गुरु मिलिआ संत गुरु रविदास जी, दीन्ही ज्ञान की गुटकी।"
इससे स्पष्ट होता है कि मीराबाई के आध्यात्मिक जीवन में संत रविदास का महत्वपूर्ण योगदान था।

समाज सुधार में संत रविदास का योगदान

भेदभाव के खिलाफ जागरूकता

संत रविदास ने अपने उपदेशों और रचनाओं के माध्यम से सामाजिक बुराइयों को मिटाने का प्रयास किया। उन्होंने जाति-पाति, छुआछूत और धर्म के बाह्य आडंबरों का विरोध किया। उनके प्रसिद्ध वचनों में से एक—
"मन चंगा तो कठौती में गंगा",
यह संदेश देता है कि बाहरी दिखावे की बजाय मन की शुद्धता अधिक महत्वपूर्ण है।

संत रविदास की काव्य-शैली

संत रविदास की काव्य-शैली सहज, प्रवाहमयी और जनसामान्य के लिए सुलभ थी। उन्होंने ब्रजभाषा में रचनाएं कीं, जिनमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू-फारसी के शब्दों का भी सुंदर मिश्रण देखा जाता है। उनकी कविताओं में उपमा और रूपक अलंकारों का प्रयोग विशेष रूप से मिलता है, जो उनके विचारों को प्रभावी बनाते हैं। संत रविदास न केवल एक संत थे, बल्कि समाज सुधारक भी थे, जिन्होंने लोगों को आंतरिक पवित्रता और आपसी भाईचारे का महत्व समझाया। उनकी शिक्षाएं और कविताएं आज भी समाज में प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं।

अन्य ख़बरें

संबंधित खबरें