मध्ययुग में जब बर्बर मुगल शासक सिकंदर लोदी अपने क्रूर अत्याचारों से हिंदू समाज को जबरन मतांतरण के लिए बाध्य कर रहा था, तब संत रविदास इस अन्याय के विरुद्ध दृढ़ता से खड़े हुए। उन्होंने न केवल सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों की रक्षा की बल्कि उन लोगों को भी स्वधर्म में लौटने की प्रेरणा दी, जो भय या प्रलोभन में आकर मतांतरित हो चुके थे।
सनातन धर्म की रक्षा का संकल्प
संत रविदास को अपने सद्गुरु स्वामी रामानंद जी की प्रेरणा प्राप्त थी। उन्होंने इस्लामी आक्रांताओं द्वारा चलाए जा रहे जबरन मतांतरण के षड्यंत्र के खिलाफ पूरे भारत में व्यापक जनजागरण अभियान चलाया। संत रविदास ने अपनी ओजस्वी वाणी से लोगों को आत्मबल प्रदान किया और उन्हें धर्म की दृढ़ता का संदेश दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि किसी भी परिस्थिति में वेदों के सत्य ज्ञान को नहीं छोड़ा जा सकता:
"वेद धर्म सबसे बड़ा अनुपम सच्चा ज्ञान
फिर क्यों छोड़ इसे पढ़ लूं झूठ कुरआन
वेद धर्म छोडूं नहीं कोसिस करो हजार
तिल-तिल काटो चाहि, गला काटो कटार"
सिकंदर लोदी की कुत्सित चाल और संत रविदास का अपराजेय तेज
सिकंदर लोदी ने संत रविदास की बढ़ती लोकप्रियता और उनके विचारों की प्रभावशाली शक्ति को देखकर उन्हें इस्लाम में परिवर्तित करने का षड्यंत्र रचा। उसने एक कसाई सदना को संत रविदास के पास इस्लाम अपनाने का संदेश देकर भेजा, यह सोचकर कि यदि संत रविदास इस्लाम स्वीकार लेते हैं, तो उनके लाखों अनुयायी भी मतांतरित हो जाएंगे। लेकिन नियति कुछ और ही थी। संत रविदास के तर्क, उनकी आध्यात्मिक शक्ति और दिव्य आचरण ने सदना को इतना प्रभावित किया कि उसने इस्लाम त्यागकर वैष्णव भक्ति अपना ली। वह संत रविदास का शिष्य बनकर "रामदास" के नाम से विष्णु भक्ति में लीन हो गया।
धर्म रक्षा का ज्वलंत उदाहरण
संत रविदास ने अपने निर्भीक विचारों और कर्तव्यों से यह सिद्ध कर दिया कि धर्म केवल आस्था का विषय नहीं, बल्कि आत्मगौरव और सत्य की अभिव्यक्ति भी है। उन्होंने भारत के हर कोने में जाकर हिंदुओं को मतांतरण के कुचक्र से बचाया और जिनका धर्म परिवर्तन किया गया था, उन्हें घर वापसी की राह दिखाई। संत रविदास की यह संघर्षगाथा न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह भी प्रमाणित करती है कि किसी भी कालखंड में धर्म और सत्य की रक्षा के लिए सच्चे संत और महापुरुष आगे आते हैं। उनकी वाणी, उनके कर्म और उनका जीवन आज भी सनातन संस्कृति के रक्षक और प्रेरणास्रोत बने हुए हैं।
संत कबीर के गुरुभाई