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और इश्क के सफर में तन्हा रह गए...सब कुछ हार कर भी कैसे जीते रतन टाटा!

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(Special Story)

कहते हैं कि अगर आप सफल होना चाहते हैं तो आपके साथ आपके परिवार का होना बहुत जरूरी है. खास कर आपके माता पिता का। लेकिन जब 10 साल की उम्र में किसी को अपने ही माता-पिता का तलाक देखना पड़ जाए तो उसके लिए जीवन में कुछ बड़ा कर पाना नामुमकिन सा ही है। लेकिन जाने माने उद्योग पतियों में से एक रतन टाटा जो कि अब हमारे बीच नहीं है उन्होंने तमाम मुश्किलों के बावजूद भी सफलता की एक नई कहानी लिख दी। टाटा संस के मानद चेयरमैन रतन टाटा का बुधवार रात मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया। वे 86 साल के थे। 

एक संघर्ष की किताब है रतन टाटा का जीवन-

रतन टाटा का जीवन एक ऐसी किताब है, जिसमें प्रेम, संघर्ष, और सपनों की हज़ारों अधूरी कहानियाँ लिखी हुई हैं। बाहर से तो दुनिया ने उन्हें एक सफल उद्योगपति के रूप में देखा, लेकिन उनके दिल के अंदर छिपी भावनाओं का तूफान शायद ही किसी ने समझा हो। उनकी कहानी सुनते ही आंखों में आंसू और दिल में एक भारीपन आ जाता है। क्योंकि यह कहानी सिर्फ सफलता की नहीं, बल्कि एक ऐसे शख्स की है जिसने सब कुछ होते हुए भी, बहुत कुछ खो दिया।

कुछ यूं बीती रतन टाटा की शुरूआती  जिंदगी-

उनका जन्म एक सम्पन्न और मशहूर परिवार में हुआ था, लेकिन बचपन में ही उनके जीवन का सबसे बड़ा तूफान आ गया था। जब वो सिर्फ 10 साल के थे, उनके माता-पिता का तलाक हो गया। तलाक के बाद का समय उनके लिए नर्क जैसा था। वो अपने छोटे भाई के साथ अपनी दादी के पास रहने लगे, लेकिन माता-पिता के अलग होने का दुख उनके कोमल मन को चीरता चला गया। उनके स्कूल के दोस्त उन्हें ताने मारते, बातें उड़ाते। कभी-कभी वो छोटे-छोटे बच्चों की तरह अकेले में रो पड़ते, लेकिन अपनी दादी के सामने कभी ये जिक्र नहीं करते थे। उनकी दादी, नवाजबाई, ही उनका सहारा थीं। वो अक्सर उन्हें समझातीं, "रतन, ये दर्द तुम्हें बड़ा बनाएगा। इस दर्द के पीछे भी एक मकसद है।" लेकिन उस छोटी उम्र में ये बातें समझ पाना उनके लिए बेहद मुश्किल था। जब सारे बच्चे अपने माता-पिता के साथ खेलते, हंसते, तो रतन अकेले कोने में बैठकर चुपचाप आंसू पोंछते। ये अकेलापन उनका सबसे बड़ा दोस्त बन गया। एक ऐसा दोस्त, जिसने उन्हें हमेशा अंदर से तोड़ा, लेकिन बाहर से मजबूत बना दिया।

इश्क की अधूरी कहानी का किस्सा-

रतन टाटा की जिंदगी में सबसे बड़ा अधूरापन उस प्रेम की कहानी से जुड़ा है, जो कभी पूरा नहीं हो सका। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान अमेरिका में उन्हें एक लड़की से बेइंतहा प्यार हो गया था। वो दोनों एक-दूसरे के साथ घंटों समय बिताते, जीवन के सपने बुनते। रतन ने तय कर लिया था कि वो उससे शादी करेंगे और उसे अपने साथ भारत ले जाएंगे। उनकी दुनिया बस इसी एक ख्वाब में बसी हुई थी। लेकिन जब वो भारत लौटे अपनी बीमार दादी की देखभाल करने, तब वो नहीं जानते थे कि उनके जीवन का सबसे बड़ा सपना टूटने वाला है। 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान उनकी प्रेमिका के परिवार ने उसे भारत आने से मना कर दिया। रतन टाटा ने लाख कोशिशें कीं, लेकिन वो लड़की उनके साथ भारत नहीं आ सकी। वो प्यार, जो उनके जीवन का आधार था, वहीं बिछड़ गया।

खुद से किया शादी न करने का वादा-

रतन टाटा ने उस दिन खुद से एक वादा किया—वो कभी शादी नहीं करेंगे। और उन्होंने अपना वादा निभाया। लेकिन हर रात जब वो अकेले होते, अपने बिस्तर पर लेटे होते, तब उनकी आंखों से आंसू बहते रहते। वो उस प्यार को कभी भुला नहीं पाए। उनके दिल के कोने में हमेशा एक खाली जगह रही, जो कभी भरी नहीं जा सकी। एक अनकही, अधूरी कहानी, जो उनके साथ हमेशा जीती रही।

रतन टाटा का व्यापारिक सफर और संघर्ष-

रतन टाटा का व्यापारिक सफर भी संघर्षों से भरा रहा। जब उन्हें पहली बार टाटा ग्रुप के एक हिस्से की ज़िम्मेदारी दी गई, तो वो घाटे में जा रहा था। उन्होंने अपनी सारी मेहनत उसमें झोंक दी, दिन-रात एक कर दिया, लेकिन नतीजा निराशाजनक रहा। कंपनी बंद हो गई। उस नाकामी ने उन्हें भीतर से तोड़कर रख दिया।

उन्होंने एक बार अपने करीबी दोस्तों से कहा था, "मैंने सब कुछ किया, लेकिन शायद मेरे अंदर वो काबिलियत ही नहीं है। शायद मैं अपने दादाजी के काबिल नहीं हूँ।" ये शब्द उस इंसान के थे, जिसे दुनिया ने कभी हारते हुए नहीं देखा। लेकिन अंदर ही अंदर वो खुद को दोष देते रहे, खुद से लड़ते रहे।

एक सफल उद्यमी और एक बेहतरीन इंसान की कहानी -

रतन टाटा का जीवन सिर्फ एक उद्यमी की कहानी नहीं है, बल्कि एक इंसान की कहानी है, जिसने अपनी भावनाओं को हमेशा दिल में छिपाए रखा। चाहे वो उनका बचपन का अकेलापन हो, उनका अधूरा प्रेम, या व्यापार में मिली नाकामियां—हर मोड़ पर वो टूटे, लेकिन बाहर की दुनिया को ये कभी महसूस नहीं होने दिया। 

रतन टाटा का जीवन अधूरा होते हुए भी है पूरा-

आज जब हम उनके जीवन की तरफ पीछे मुड़कर देखते हैं, तो सिर्फ उनकी सफलता नहीं, बल्कि उनके दिल की वो अधूरी कहानियाँ हमारी आंखों को नम कर देती हैं। वो अधूरा प्रेम, वो टूटे सपने, और वो हमेशा मुस्कुराते चेहरे के पीछे छिपा दर्द—यह सब हमें यह सिखाता है कि सच्चा इंसान वही है, जो अपने आंसुओं के बीच भी दूसरों के लिए मुस्कान लेकर खड़ा हो। रतन टाटा का जीवन अधूरा होते हुए भी पूरा है, क्योंकि उन्होंने हमें यह सिखाया कि जीवन की सबसे बड़ी जीत वो नहीं होती जो हम बाहर से हासिल करते हैं, बल्कि वो होती है जो हम भीतर से लड़ते हैं।

By Aakash Singh 

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