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रेलवे ने तैयार की एक ऐसा एडवांस कवच, दुर्घटनाओं को कर देगा जीरो

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भारतीय रेलवे, जो दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क में से एक है, हर दिन लाखों यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुँचाता है। लेकिन इतने बड़े नेटवर्क के साथ, दुर्घटनाओं का जोखिम भी अधिक होता है। इसी जोखिम को कम करने और यात्रियों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देने के लिए भारतीय रेलवे ने कवच नामक एक अत्याधुनिक सुरक्षा तकनीक विकसित की है। इसे ट्रेन कोलिजन अवॉइडेंस सिस्टम (TCAS) के नाम से भी जाना जाता है। कवच भारतीय रेलवे का ऐसा तकनीकी प्रयास है जो रेल दुर्घटनाओं को लगभग शून्य तक लाने का लक्ष्य रखता है।

कवच प्रणाली का विकास 2012 में शुरू हुआ। तब हैदराबाद में इस तकनीक की पहली टेस्टिंग की गई थी। उस समय, तकनीक ने दो ट्रेनों को एक ही ट्रैक पर चलते हुए टकराने से पहले ही रोक दिया। यह पहली सफलता भारतीय रेलवे के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई। हालांकि इसके बाद कई वर्षों तक इस तकनीक पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया गया, लेकिन 2022 में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इसे दोबारा प्राथमिकता दी। उन्होंने इस तकनीक का सार्वजनिक परीक्षण भी किया, जिसमें कवच ने फिर से साबित किया कि यह टकराव को रोकने में सक्षम है।

कवच तकनीक में ट्रेन के इंजन और रेलवे ट्रैक पर कई उपकरण लगाए जाते हैं। यह उपकरण निरंतर ट्रेन की गति और उसकी स्थिति को मॉनिटर करते रहते हैं। अगर ट्रेन किसी सिग्नल को पार कर जाती है या निर्धारित गति से तेज चलती है, तो कवच प्रणाली तुरंत लोको पायलट को अलर्ट करती है। अगर पायलट समय पर गति कम नहीं करता है या किसी सिग्नल को नजरअंदाज करता है, तो कवच स्वचालित रूप से ट्रेन पर ब्रेक लगाकर उसे रोक देता है।

कवच प्रणाली की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह तकनीक सीधे ट्रेनों के बीच टकराव को रोकने में सक्षम है। आइए देखते हैं इसके कुछ प्रमुख लाभ:

1. यह तकनीक दो ट्रेनों के बीच की दूरी का ध्यान रखती है। यदि दो ट्रेनें एक-दूसरे के बहुत करीब आ जाती हैं, तो कवच अपने आप ब्रेक लगाकर उन्हें रोक देता है, जिससे टकराव की संभावना लगभग समाप्त हो जाती है। 

2. सर्दियों के मौसम में कोहरा भारतीय रेलवे के लिए बड़ी चुनौती होता है। इस स्थिति में सिग्नल दिखाई नहीं देते हैं, जिससे दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है। कवच इस समस्या का समाधान करता है। यह लोको पायलट को दृश्यता न होने पर भी अलर्ट करता है और आवश्यकता पड़ने पर स्वतः ट्रेन की गति कम कर देता है।

3. कवच तकनीक की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह बहुत ही कम लागत में विकसित की गई है। भारतीय रेलवे ने इस प्रणाली को प्रति किलोमीटर 30 से 50 लाख रुपये की लागत से स्थापित किया है, जबकि यूरोपीय देशों में ऐसी तकनीक की लागत 2 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर तक होती है। इसका मतलब है कि कवच भारतीय रेलवे के लिए एक किफायती और अत्याधुनिक सुरक्षा समाधान है।

4. यह तकनीक पूरी तरह से भारत में विकसित की गई है। यह भारत की तकनीकी क्षमता का प्रमाण है और इसे लागू करने में किसी विदेशी तकनीक पर निर्भरता नहीं है।

हालांकि कवच एक बेहतरीन तकनीक है, लेकिन इसे लागू करने में कई चुनौतियाँ भी हैं। सबसे बड़ी चुनौती इसका विस्तार है। अभी तक केवल 65 लोको इंजनों में ही कवच सिस्टम लगाया गया है। भारतीय रेलवे का लक्ष्य है कि आने वाले वर्षों में इसे और अधिक ट्रेनों और रूट्स पर लागू किया जाए। देशभर के रेल नेटवर्क में इस तकनीक को लगाने के लिए बहुत समय और संसाधनों की आवश्यकता होगी।

21 सितंबर 2024 का दिन भारतीय रेलवे के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बन गया, जब पहली बार वंदे भारत ट्रेन को *कवच* सुरक्षा प्रणाली के साथ चलाया गया। इस ट्रेन ने आगरा डिवीजन के भूतेश्वर से हरियाणा के पलवल के बीच अपनी यात्रा शुरू की। यह कदम भारतीय रेलवे के सुरक्षा मानकों को और अधिक ऊँचाई पर ले गया है। इस तकनीक के उपयोग से न केवल सुरक्षा में सुधार होगा, बल्कि यह यात्रियों को अधिक आत्मविश्वास और आरामदायक यात्रा का अनुभव भी प्रदान करेगाl

कवच तकनीक भारतीय रेलवे के लिए एक नए युग की शुरुआत है। यह यात्रियों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए, दुर्घटनाओं की संख्या को कम करने का वादा करती है। आने वाले समय में, भारतीय रेलवे का लक्ष्य है कि कवच को पूरे रेल नेटवर्क में लागू किया जाए, जिससे भारत के रेल यात्री बिना किसी चिंता के अपनी यात्रा का आनंद ले सकें।

कवच सिर्फ एक तकनीक नहीं, बल्कि एक ऐसी दृष्टि है जो भारतीय रेलवे को भविष्य के लिए तैयार कर रही है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में भारतीय रेलवे इसे किस तरह से पूरे देश में लागू करता है और यह तकनीक रेलवे को और अधिक सुरक्षित और आधुनिक बनाने में कितनी मददगार साबित होती है।

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