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UPPSC के नॉर्मलाइजेशन फॉर्मूला से परीक्षा परिणामों पर सवाल! क्या इससे अटक जाएगा प्रतियोगियों का भविष्य?

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उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) ने हाल ही में आगामी UPPCS प्रारंभिक परीक्षा-2024 और समीक्षा अधिकारी/सहायक समीक्षा अधिकारी (RO/ARO) प्रारंभिक परीक्षा-2023 की तिथियों की घोषणा कर दी है। UPPCS प्रारंभिक परीक्षा 7 और 8 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के 41 जिलों में दो सत्रों में आयोजित होगी। पहला सत्र सुबह 9:30 से 11:30 बजे और दूसरा सत्र दोपहर 2:30 से 4:30 बजे तक रहेगा। वहीं, RO/ARO प्रारंभिक परीक्षा 22 और 23 दिसंबर को तीन पालियों में होगी, क्योंकि इसमें लगभग 10 लाख उम्मीदवार हिस्सा लेंगे। 22 दिसंबर को पहला सत्र सुबह 9 से 12 बजे तक, दूसरा सत्र दोपहर 2:30 से 5:30 बजे तक होगा और 23 दिसंबर को तीसरा सत्र सुबह 9 से 12 बजे तक चलेगा।

नॉर्मलाइजेशन फॉर्मूले का उद्देश्य-

कई सत्रों में परीक्षा आयोजित करने के कारण, यूपीपीएससी ने सभी सत्रों में उम्मीदवारों के अंकों को समान रूप से आकलन करने के लिए नॉर्मलाइजेशन फॉर्मूले का सहारा लिया है। नॉर्मलाइजेशन का मुख्य उद्देश्य है कि प्रत्येक शिफ्ट के परीक्षार्थियों के अंकों में कठिनाई स्तर के अंतर को संतुलित किया जा सके ताकि सभी को निष्पक्ष परिणाम मिल सके। इस प्रक्रिया में, यदि कोई उम्मीदवार एक शिफ्ट में परीक्षा देता है और कोई दूसरा उम्मीदवार दूसरी शिफ्ट में, तो दोनों शिफ्ट्स का कठिनाई स्तर भिन्न हो सकता है। ऐसे में नॉर्मलाइजेशन फॉर्मूले का इस्तेमाल कर सभी परीक्षार्थियों के अंक एक समान आधार पर देखे जाते हैं।

कैसे काम करता है नॉर्मलाइजेशन फॉर्मूला?

मान लीजिए, किसी उम्मीदवार ने एक शिफ्ट में X अंक प्राप्त किए और उसी शिफ्ट में कुल N उम्मीदवार उपस्थित थे। यदि उन N उम्मीदवारों में से कितने उम्मीदवार X अंक के बराबर या उससे कम अंक प्राप्त कर चुके हैं, तो इसका प्रतिशत निकालने के लिए उस संख्या को कुल उम्मीदवारों से भाग दिया जाएगा और फिर उसे 100 से गुणा किया जाएगा। इससे प्रत्येक उम्मीदवार का प्रतिशत स्कोर प्राप्त होगा। उदाहरण के लिए, यदि किसी ने 60 अंक प्राप्त किए हैं और उसकी शिफ्ट में 2000 उम्मीदवार थे, जिनमें से 1500 उम्मीदवारों के अंक 60 या उससे कम हैं, तो नॉर्मलाइजेशन का प्रतिशत 75% होगा।

छात्र वर्ग की चिंताएं और आपत्तियां-

हालांकि आयोग ने इसे निष्पक्षता बढ़ाने का प्रयास बताया है, प्रतियोगी छात्रों ने नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया को लेकर सवाल उठाए हैं। कई छात्रों का कहना है कि यह प्रक्रिया क्रिकेट के 'डकवर्थ-लुईस' नियम जैसी जटिल है, जिसमें सफलता या असफलता का मापदंड स्पष्ट नहीं है। उनके अनुसार, कई बार यूपीपीएससी के प्रश्न-पत्रों में 8 से 10 सवाल गलत या विवादित रहते हैं। ऐसे में अगर एक ही परीक्षा को दो-तीन सत्रों में कराया जाएगा तो प्रत्येक सत्र में प्रश्नों की गुणवत्ता में अंतर आ सकता है। इस कारण मानकीकरण प्रक्रिया सही ढंग से कार्यान्वित नहीं हो पाएगी और परीक्षा परिणाम विवादास्पद हो सकते हैं। प्रतियोगी छात्रों का यह भी कहना है कि यह असंतोषपूर्ण प्रक्रिया कोर्ट में चुनौती का कारण बन सकती है, क्योंकि इससे परीक्षार्थियों का भविष्य अधर में लटक सकता है।

नॉर्मलाइजेशन के साथ सटीकता बढ़ाने के प्रयास-

यूपीपीएससी ने इस बार परीक्षार्थियों का प्रतिशत स्कोर दशमलव के बाद छह अंकों तक दिखाने का निर्णय लिया है, जैसे कि 75.123456%। आयोग का मानना है कि इससे मूल्यांकन प्रक्रिया और भी अधिक सटीक हो जाएगी। इसके बावजूद, नॉर्मलाइजेशन को लेकर असमंजस और विरोध बना हुआ है।

नॉर्मलाइजेशन पर छात्रों की आपत्तियां-

यूपीपीएससी द्वारा नॉर्मलाइजेशन के जरिए परीक्षा परिणामों में निष्पक्षता लाने का प्रयास सराहनीय है, लेकिन छात्रों की आपत्तियों और नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया की पेचीदगियों को ध्यान में रखते हुए इस पर और भी सुधार की आवश्यकता है। आयोग द्वारा परीक्षा के सुचारू और निष्पक्ष आयोजन के लिए उठाए गए इस कदम के प्रभाव पर भविष्य में क्या नतीजे आते हैं, यह देखने वाली बात होगी। आप यूपीपीएससी के इस नॉर्मलाइजेशन फैसले पर क्या सोचते हैं? अपने विचार नीचे कमेंट में साझा करें।

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