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दिल्ली विधानसभा चुनावों के नतीजे आ चुके हैं। भाजपा ने दिल्ली में 27 साल बाद स्पष्ट बहुमत हासिल किया। दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों में से भाजपा ने 48 और आम आदमी पार्टी (AAP) ने 22 सीटें जीतीं। कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली है। लेकिन इन नतीजों में एक ऐसा पहलू भी है जिसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। इस चुनाव में NOTA ("None of the Above") ने 0.57% वोट हासिल किए, जो BSP के 0.55% और CPI(M) के 0.01% से भी ज्यादा है। यह न सिर्फ चौंकाने वाला है, बल्कि लोकतंत्र के लिए एक अहम संदेश भी है।
NOTA ने कैसे खींचा जनता का ध्यान?
NOTA न तो चुनावी प्रचार करता है, न रैलियां करता है और न ही बड़े-बड़े वादे करता है। इसके बावजूद इसे BSP और CPI(M) जैसी पार्टियों से ज्यादा वोट मिले। यह स्थिति वैसी ही है जैसे बिना खेले ही मैच जीत जाना! – और यह बताता है कि जनता के बीच असंतोष कितना गहरा है।
जनता का असंतोष खुलकर सामने आया
लोकतंत्र में हर वोट की अहमियत होती है। जब जनता NOTA का चयन करती है, तो यह साफ संकेत है कि वे किसी भी उम्मीदवार से संतुष्ट नहीं हैं। पहले मजबूरी में लोग किसी न किसी को वोट दे देते थे, लेकिन अब NOTA के विकल्प के जरिए वे अपना असंतोष खुलकर दर्ज करा रहे हैं। यह राजनीतिक दलों के लिए चेतावनी है कि अब जाति, धर्म और खोखले वादों के नाम पर वोट नहीं मिलेंगे।
BSP और CPI(M) का घटता जनाधार
कभी राष्ट्रीय राजनीति में मजबूत दावेदारी रखने वाली BSP और CPI(M) अब मतदाताओं से कट चुकी नजर आ रही हैं। जब जनता इन पार्टियों को NOTA से भी कम वोट देती है, तो यह उनके जनाधार के पतन का स्पष्ट संकेत है। चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार, लगातार खराब प्रदर्शन इन पार्टियों के राष्ट्रीय दर्जे को भी खतरे में डाल सकता है।
नए राजनीतिक विकल्पों के लिए बड़ा अवसर
BSP और CPI(M) की गिरती साख यह दर्शाती है कि भारत की राजनीति बदलाव की ओर बढ़ रही है। यह नए और उभरते राजनीतिक दलों के लिए एक बड़ा अवसर है। जो दल सही मुद्दों पर काम करेगा, पारदर्शिता रखेगा और जनता की नब्ज को समझेगा, वही भविष्य में सफल होगा।
दिल्ली की राजनीति में नया ट्रेंड?
दिल्ली में मुख्य रूप से मुकाबला AAP और BJP के बीच रहा। यदि अन्य दलों का यही हाल रहा, तो भविष्य में तीसरी ताकत का उभरना मुश्किल हो सकता है। इससे लोकतंत्र में राजनीतिक विविधता भी प्रभावित होगी।
चुनावी सुधारों की संभावनाएं
यदि NOTA को इसी तरह वोट मिलते रहे, तो यह चुनाव आयोग और सरकार के लिए भी एक विचारणीय विषय बनेगा। कुछ देशों में यदि NOTA को ज्यादा वोट मिलते हैं, तो उस सीट पर दोबारा चुनाव कराया जाता है। क्या भारत में भी ऐसा नियम लागू हो सकता है? यह देखना दिलचस्प होगा।
आखिरी बात: जनता बनी असली किंगमेकर
इस चुनाव में NOTA महज एक बटन नहीं था, बल्कि एक बड़ा संदेश था। जनता अब जागरूक हो रही है, समझौता करने के लिए तैयार नहीं है। यदि नेताओं ने सही काम नहीं किया, तो जनता उन्हें सीधे रिजेक्ट कर देगी। राजनीति अब पुराने ढर्रे पर नहीं चल सकती, क्योंकि लोकतंत्र में अब जनता ही असली किंगमेकर बन गई है।
Baten UP Ki Desk
Published : 8 February, 2025, 5:50 pm
Author Info : Baten UP Ki