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(साभार ध्येय टीवी, एपिसोड- 4)
भारतीय परिवहन प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाले ई. श्रीधरन को आज किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और अनुशासन के साथ उन्होंने भारत में आधुनिक परिवहन ढांचे की नींव रखी। चाहे कोलकाता मेट्रो हो, कोंकण रेलवे हो या दिल्ली मेट्रो, श्रीधरन ने हर परियोजना को अपने संकल्प और नेतृत्व क्षमता से सफल बनाया।
शुरुआती जीवन और शिक्षा
ई. श्रीधरन का जन्म 12 जून 1932 को केरल के पलक्कड़ जिले में हुआ। उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज, कालीकट (अब एनआईटी कालीकट) से पूरी की। भारतीय इंजीनियरिंग सेवा (IES) में शामिल होने के बाद उन्होंने अपनी कार्यशैली और कुशलता से एक अलग पहचान बनाई।
प्रोजेक्ट जो बने मिसाल:
1964 में समुद्री तूफान से तमिलनाडु स्थित पंबन ब्रिज क्षतिग्रस्त हो गया था। यह पुल दक्षिण भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था। इसे पुनर्निर्मित करने के लिए दक्षिण रेलवे ने तीन महीने का समय दिया था, लेकिन श्रीधरन ने मात्र 46 दिनों में यह कार्य पूरा कर दिखाया। उनके इस कार्य को सराहते हुए तत्कालीन रेल मंत्री ने उन्हें ₹1000 का पुरस्कार दिया।
कोंकण रेलवे: असंभव को संभव किया
मुंबई और मंगलौर के बीच रेलवे लाइन बिछाने का कार्य भारतीय रेलवे के सबसे कठिन प्रोजेक्ट्स में से एक था। 760 किलोमीटर लंबे ट्रैक में 92 सुरंगें और 2000 से अधिक पुल बनाए जाने थे। घने जंगल, दुर्गम पहाड़ और मानसून की बाधाओं के बावजूद श्रीधरन के नेतृत्व में यह परियोजना सफलतापूर्वक पूरी हुई।
दिल्ली मेट्रो: परिवहन व्यवस्था में क्रांति
दिल्ली मेट्रो का सपना पहली बार 1969 में देखा गया था, लेकिन इसे अमलीजामा पहनाने में 26 साल लग गए। 1995 में डीएमआरसी की स्थापना हुई और श्रीधरन को इसका प्रमुख बनाया गया। 1998 में कंस्ट्रक्शन शुरू हुआ और 2002 में पहली मेट्रो राजधानी की सड़कों पर दौड़ने लगी। श्रीधरन ने न केवल समय से पहले बल्कि बजट के भीतर इस प्रोजेक्ट को पूरा कर दिखाया। आज दिल्ली मेट्रो एनसीआर की लाइफलाइन बन चुकी है।
सम्मान और पुरस्कार
उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 2001 में पद्मश्री और 2008 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया। फ्रांस सरकार ने भी उन्हें 2005 में अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'नाइट ऑफ द लीजन ऑनर' से नवाजा। प्रसिद्ध अमेरिकी पत्रिका 'टाइम' ने उन्हें 'एशिया का हीरो' कहा।
प्रेरणा के स्रोत
ई. श्रीधरन की कहानी हमें सिखाती है कि कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता। दृढ़ संकल्प, अनुशासन और अथक मेहनत से किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है। उनकी जीवन यात्रा उन सभी के लिए प्रेरणादायक है, जो अपने सपनों को साकार करना चाहते हैं। यदि यह कहानी आपको प्रेरित करती है, तो इसे साझा करें और अपनी राय कमेंट सेक्शन में बताएं।
Baten UP Ki Desk
Published : 9 March, 2025, 1:00 pm
Author Info : Baten UP Ki