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भारत-कनाडा के बीच खालिस्तानी विवाद से बढ़ी कूटनीतिक दरार, रिश्तों पर गहराया संकट!

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हाल के दिनों में, भारत और कनाडा के बीच तनाव अपने चरम पर पहुंच गया है, जो न केवल दोनों देशों के राजनयिक संबंधों को प्रभावित कर रहा है, बल्कि वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य को भी हिला रहा है। भारत ने हाल ही में छह कनाडाई राजनयिकों को देश से निष्कासित कर दिया, जिससे दोनों देशों के बीच संवाद में एक नई दरार आ गई। यह विवाद अचानक नहीं हुआ; इसके पीछे गहरे और जटिल मुद्दे हैं जो वर्षों से लम्बित थे। क्या यह तनाव केवल अस्थायी है, या यह दोनों देशों के बीच स्थायी विभाजन का संकेत है? आइए इस विवाद की जड़ें समझें और देखें कि इसके संभावित परिणाम क्या हो सकते हैं, न केवल भारत और कनाडा के लिए, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए भी।

कहां से शुरू हुआ मामला?

सबसे पहले समझते हैं कि ये मामला शुरू कहां से हुआ और कनाडा के आरोप क्या हैं। दरअसल सितंबर 2024 में, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत पर आरोप लगाया कि भारत का खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में हाथ हो सकता है। निज्जर, जो कि खालिस्तान समर्थक नेता था, कनाडा में मारा गया था। इसके बाद कनाडा ने भारत के उच्चायुक्त समेत अन्य भारतीय राजनयिकों को जांच में "इंटरेस्टेड पर्सन्स" के रूप में नामित किया।

दोनो देशों के बीच बढ़ता चला गया तनाव-

भारत ने इन आरोपों को बेबुनियाद और राजनीतिक कहकर खारिज कर दिया। इसके बाद से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता चला गया। भारत ने इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कनाडा के आरोपों को सख्ती से नकारते हुए कनाडा के खालिस्तान समर्थक तत्वों के प्रति नरम रुख की आलोचना की। इसके बाद भारत ने एक कनाडाई राजनयिक को भी देश छोड़ने के लिए कहा। अक्टूबर 2024 में, भारत ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए अपने सभी राजनयिकों को कनाडा से वापस बुला लिया और छह कनाडाई राजनयिकों को निष्कासित कर दिया।

कनाडा ने भारतीय राजनयिकों को निकालने का लिया फैसला-

कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने फिर से इन आरोपों को दोहराया और कहा कि रॉयल कनाडियन माउंटेड पुलिस (RCMP) के पास इसके सबूत हैं कि भारतीय राजनयिक इस हत्या में शामिल हो सकते हैं। कनाडा ने भारतीय राजनयिकों को निकालने का फैसला लिया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि वे भारत के साथ रचनात्मक रूप से काम करना चाहते हैं।

खटास में है भारत और कनाडा के रिश्ते -

अब भारत और कनाडा के बीच पहले से चले आ रहे विवादों को भी समझ लेते हैं। दरअसल भारत और कनाडा के रिश्ते पिछले कुछ सालों से खटास भरे रहे हैं, खासकर खालिस्तान समर्थक समूहों को लेकर। मई 2024 में, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कनाडा पर आरोप लगाया था कि वह इन समूहों को पनाह दे रहा है, जो दोनों देशों के रिश्तों में दरार डाल रहा है।

भारत और कनाडा के बीच कैसे थे डिप्लोमैटिक रिलेशन्स-

इसके बैकग्राउंड की बात करें तो भारत और कनाडा के बीच 1947 में कूटनीतिक संबंध यानी डिप्लोमैटिक रिलेशन्स स्थापित हुए थे, और 2015 में इसे एक रणनीतिक साझेदारी का रूप दिया गया। लेकिन हाल के वर्षों में कनाडा के खालिस्तानी समर्थक तत्वों के प्रति नरम रवैये के कारण रिश्ते खराब हो गए हैं। दोनों देशों के बीच 2022-23 में व्यापार 8.15 अरब डॉलर तक पहुंच गया। भारत के कनाडा से निर्यात और आयात लगभग बराबर थे। दोनों देशों के बीच एक व्यापक व्यापार समझौता (CEPA) पर चर्चा हो रही थी, लेकिन यह विवाद आने के बाद इसे रोक दिया गया।

लेकिन अब इन दोनों देशों के संबंधो के बीच कई चुनौतियाँ भी सामने हैं जैसे-

1. खालिस्तानी अलगाववाद (Khalistani Separatist Movements): भारत ने बार-बार कनाडा पर खालिस्तानी अलगाववादी समूहों को समर्थन देने का आरोप लगाया है, जिसे वह अपनी संप्रभुता के लिए खतरा मानता है। कनाडा में 2022 में हुए खालिस्तान जनमत संग्रह ने इन रिश्तों को और बिगाड़ा।

2. भारतीय समुदाय पर असर (Impact on Indian Diaspora): भारत-कनाडा विवाद का असर कनाडा में बसे भारतीय समुदाय पर भी पड़ा है, खासकर वीज़ा प्रतिबंधों के कारण लोगों को परिवारिक समारोहों में शामिल होने में दिक्कतें हो रही हैं।

हालिया विवाद पर एक नजर- 

हालिया विवाद पर नजर डालें तो 2023 में खालिस्तान टाइगर फोर्स (KTF) के नेता  हरदीप सिंह निज्जर की हत्या ने विवाद को और बढ़ा दिया। इस हत्या के बाद दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजनयिकों को निकालने का सिलसिला शुरू किया। कनाडा ने संकेत दिया है कि अगर भारत ने सहयोग नहीं किया तो उस पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। लेकिन, भारत के साथ मजबूत संबंधों के चलते कनाडा को अपने अन्य अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों से ज्यादा समर्थन मिलने की उम्मीद नहीं है।

चरम पर है भारत-कनाडा के रिश्तों में तनाव-

भारत-कनाडा के रिश्तों में तनाव इस समय अपने चरम पर है। व्यापारिक रिश्तों पर अभी तक ज्यादा असर नहीं पड़ा है, लेकिन अगर यह विवाद जारी रहा तो आर्थिक और भूराजनैतिक मोर्चे पर इसके नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं। इस मुद्दे का समाधान दोनों देशों के बीच कूटनीतिक बातचीत से ही संभव है, लेकिन दोनों पक्षों के कड़े रुख को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि कब और कैसे इस विवाद का अंत होगा।

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