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क्या कोई व्यक्ति बिना जनता की वोटिंग के सांसद बन सकता है? क्या ऐसा होना लोकतंत्र की आत्मा के खिलाफ नहीं है? ये सवाल इन दिनों सुप्रीम कोर्ट के एक अहम मामले में चर्चा के केंद्र में हैं। दरअसल, कानूनी थिंक टैंक ‘विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी’ ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर यह मांग की है कि यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में सिर्फ एक ही उम्मीदवार बचता है, तो उसे बिना मतदान के विजेता घोषित न किया जाए। याचिका में कहा गया है कि ऐसी व्यवस्था मतदाताओं के अभिव्यक्ति के अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(a)) का उल्लंघन करती है, क्योंकि इससे "NOTA" यानी "इनमें से कोई नहीं" का विकल्प वोटरों से छीन लिया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया: "प्रतिशत वोट पाना जरूरी हो सकता है"
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी याचिका की भावना से सहमति जताई और सुझाव दिया कि यदि कोई उम्मीदवार अकेला रह भी जाए, तो उसे कम से कम कुल वोटों का एक तय प्रतिशत (जैसे 10 या 15%) हासिल करना अनिवार्य किया जा सकता है। इससे मतदाता की भागीदारी और अभिव्यक्ति दोनों सुनिश्चित होंगे।
कानून क्या कहता है?
भारत में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 53(2) के अनुसार, यदि किसी सीट के लिए उतने ही उम्मीदवार रह जाएं जितने पद हैं, तो उन्हें बिना मतदान के विजयी घोषित कर दिया जाता है। लेकिन अब इस प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह नियम लोकतंत्र की मूल भावना — जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता की सरकार — के अनुकूल है?
बिना मुकाबले जीत के उदाहरण
याचिका में जानकारी दी गई है कि 1951 से अब तक लोकसभा की 26 सीटों पर उम्मीदवार निर्विरोध जीत चुके हैं, जिससे करीब 82 लाख मतदाता वोटिंग से वंचित रह गए। सबसे ताजा मामला 2024 के आम चुनावों में सूरत (गुजरात) से भाजपा के मुकेशकुमार दलाल का है, जो बिना वोटिंग के सांसद घोषित कर दिए गए।
चुनाव आयोग का पक्ष
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल करते हुए कहा कि निर्विरोध जीत के मामले अब बहुत कम हो गए हैं। आयोग के मुताबिक, 1989 के बाद से केवल एक ही ऐसा मामला सामने आया है। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि NOTA का बटन सिर्फ तभी प्रभावी होता है जब मतदान हो, और मौजूदा कानून में NOTA को किसी उम्मीदवार की तरह नहीं गिना जाता। अगर ऐसा करना है, तो इसके लिए संसद को कानून में बदलाव करना पड़ेगा।
लोकतंत्र की नई दिशा की शुरुआत?
इस याचिका और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों ने भारतीय लोकतंत्र के ढांचे पर एक गहरी बहस छेड़ दी है। सवाल अब सिर्फ कानून का नहीं, बल्कि लोकतंत्र की नैतिकता और जनभागीदारी का भी है। क्या आने वाले समय में बिना वोटिंग कोई सांसद नहीं बन पाएगा? क्या NOTA को और अधिक कानूनी ताकत मिलेगी? इन सवालों के जवाब भविष्य में मिलेंगे, लेकिन इतना तय है कि यह मामला देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर एक जरूरी बहस की शुरुआत कर चुका है।
Baten UP Ki Desk
Published : 29 April, 2025, 2:43 pm
Author Info : Baten UP Ki