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(Special Story) बीते दिनों संजय सिंह को भारतीय कुश्ती महासंघ (WFI) का अध्यक्ष चुना गया। संजय सिंह भाजपा के कैसरगंज सांसद बृजभूषण शरण सिंह के करीबी हैं। आपको बता दें कि भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष रहे बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ 6 महिला पहलवानों और एक नाबालिग पहलवान ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। इसके बाद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 354 , 354-ए, 354-डी और 506(1) जैसी धाराओं के तहत मुकदमें दर्ज किये। इसके बाद बृजभूषण को अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा था। जिसके बाद WFI के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुए और संजय इसमें विजयी हुए।
पहलवान बजरंग पूनिया ने PM मोदी को लिखी चिठ्ठी-
संजय सिंह की इस जीत के बाद भारत के लिए ओलंपिक में मेडल जीतने वाली महिला पहलवान साक्षी मलिक ने 21 दिसम्बर को रेसलिंग से रिटायरमेंट और पुरुष पहलवान बजरंग पूनिया ने बीते 22 दिसम्बर को अपने पद्मश्री सम्मान को वापस किये जाने की घोषणा कर दी। इसके बाद उन्होंने चिट्ठी लिखते हुए अपना यह सम्मान प्रधानमंत्री आवास के सामने फुटपाथ पर रख दिया। यहाँ से लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि पदम् पुरस्कार लौटाने का क्या प्रावधान है।
तो आइए इसे विस्तार से जानते हैं.....
आपको बता दे कि सबसे पहले इतिहास के पन्ने उलटते हैं और ये समझते हैं कि सबसे पहले पुरस्कार लौटाने की शुरुआत किसने की। दरअसल सबसे पहले गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी नाइटहुड यानी सर की उपाधि वापस कर दी थी। ऐसा उन्होंने जालियाँवाला बाग हत्याकांड हादसे के बाद किया था। जहाँ तक पद्म पुरस्कारों की बात है तो बजरंग पूनिया से पहले भी कई लोगों ने सरकार के किसी क़दम के ख़िलाफ़ या तो इसे वापस किया है या इसे लेने से इनकार कर दिया है। जैसे मशहूर लेखक खुशवंत सिंह ने 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' का विरोध करने के लिए अपना पद्मभूषण लौटाया था। इसके अलावा नाट्यकला के क्षेत्र के रतन थियम ने नगा युद्ध विराम को बढ़ाए जाने के विरोध में 2001 में पद्मश्री सरकार को लौटा दिया था।
इससे जुड़े नियम-
वहीं अगर हम इससे जुड़े नियमों की बात करें तो पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किए जाने की घोषणा से पहले अनौपचारिक तौर पर प्रस्तावित व्यक्ति की इच्छा जानने की कोशिश की जाती है। ये वही स्टेज है जहाँ लोग सम्मान को अस्वीकार कर सकते हैं। इस स्टेज पर इतिहासकार रोमिला थापर, बंगाली थिएटर कार्यकर्ता सिसिर कुमार भादुड़ी, समाजशास्त्री जीएस घुर्ये समेत कई लोगों ने अतीत में पदम् सम्मान को अस्वीकार किया है। इसके बाद इन लोगों को सम्मान दिए जाने की घोषणा नहीं की जाती है। वो लोग जो सम्मान को स्वीकार करते हैं उनकों पद्म विभूषण, पद्म भूषण या पद्म श्री से अलंकृत किया जाता है। साथ ही उनका नाम भारत के राजपत्र में प्रकाशित किया जाता है और सभी सम्मानित प्राप्तकर्ताओं की लिस्ट एक रजिस्टर में दर्ज की जाती है।
क्या है सम्मान लौटाने की प्रकिया-
अब यहाँ आपको सम्मान लौटाने की प्रक्रिया बताते हैं। दरअसल पदम् पुरस्कार को लौटाने की कोई प्रक्रिया नहीं है। ऐसा करने की शक्ति केवल राष्ट्रपति के ही पास है और राष्ट्रपति किसी व्यक्ति के कदाचार करने पर ही ऐसा कदम उठाते हैं। हालांकि जब कोई पुरस्कार विजेता बाद में पद्म पुरस्कार वापस करने के लिए स्वेच्छा से आता है या पुरस्कार किसी नदी में बहा देता है तो भी उसका नाम राजपत्र या पुरस्कार विजेताओं के रजिस्टर से नहीं हटाया जाता है। उदाहरण के तौर पर पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और पूर्व केंद्रीय मंत्री एसएस ढींडसा ने साल 2020 में राष्ट्रपति को पत्र लिखकर कहा कि वे तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों के साथ एकजुटता दिखाते हुए अपने पुरस्कार ‘वापस’ कर रहे हैं। हालांकि प्रकाश सिंह बादल से पद्म विभूषण वापस लिए जाने के संबंध में राष्ट्रपति ने बकायदा गृह विभाग को पत्र भेज दिया था। जिसके बाद भी संयोग से, बादल और ढींडसा का नाम अभी भी पद्म पुरस्कार विजेताओं की सूची में शामिल है। इस तरह, खुद से सम्मान लौटाना केवल विरोध दर्ज कराने का एक तरीका है लेकिन असल में सम्मान लौटाने की कोई आधिकारिक विधि नहीं है। इसी के साथ आपको बताते चलें कि हृदय नाथ कुंजरू, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद समेत सुभाष चंद्र बोस के परिवार वालों ने भी भारत रत्न लेने से इंकार कर दिया था।
-कोमल
Baten UP Ki Desk
Published : 23 December, 2023, 3:59 pm
Author Info : Baten UP Ki