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(Special Story) यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः अर्थात "जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं.. इसी विचारधारा के साथ प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में महिलाओं को सम्मान दिया जाता है। प्राचीन काल में अपाला, घोषा, लोपामुद्रा, गार्गी, जैसी विदुषियों ने समाज में अपना वर्चस्व कायम किया था और अगर हम नए जमाने की बात करें तो हमारे देश में सरोजनी नायडू, इंदिरा गांधी, कल्पना चावला, सानिया मिर्जा, मेरी कॉम, मदर टेरेसा जैसी महिलाओं ने अलग-अलग क्षेत्रों में अपने काम के जरिए भारतीय समाज में नाम रोशन किया है। महिलाएं दुनिया की आधी आबादी का हिस्सा हैं और किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं। समाज की प्रगति में जितना बड़ा योगदान पुरुषों का है, उतना ही महिलाओं का भी है। लेकिन आज भी कभी-कभी महिलाओं को पुरुषों के समान अवसर और सम्मान नहीं मिल पाता उन्हें अपने हक के लिए आवाज उठानी पड़ती है। इसीलिए महिलाओं की हिस्सेदारी को बढ़ावा देने और उन्हें उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने के लिए प्रतिवर्ष 8 मार्च को यानि आज के दिन अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। आखिर हमें महिला दिवस मनाने की जरूरत क्यों पड़ी? आइए विस्तार से जानते हैं।
क्यों मनाते हैं महिला दिवस?
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस वास्तव में एक मजदूर आंदोलन की उपज है। साल 1908 में अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में लगभग 15 हजार महिलाएं अपने हक के लिए सड़कों पर उतकर नौकरी के घंटे कम करना, काम के हिसाब से वेतन देना आदि कई मांगो को लेकर विरोध प्रदर्शन करने लगी थीं। महिलाओं के इस विरोध प्रदर्शन के एक साल बाद सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने न्यूयॉर्क में 1908 में वर्कर्स को सम्मान देने के मकसद से ये दिन चुना था। वहीं रूसी महिलाओं ने महिला दिवस मनाते हुए पहले विश्व युद्ध का विरोध किया था। रूस की महिलाओं ने ब्रेड एंड पीस को लेकर 1917 में हड़ताल की थी। यूरोप में महिलाओं ने 8 मार्च को पीस एक्टिविस्ट्स को सपोर्ट करने के लिए रैलियां निकाली थीं।
विश्व स्तर पर महिला दिवस की मान्यता -
महिला दिवस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाने का विचार क्लारा ज़ेटकिन का था । क्लारा ज़ेटकिन ने साल 1910 में विश्व स्तर पर महिला दिवस मनाने का प्रपोजल यूरोपीय देश डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगेन में कामकाजी महिलाओं की अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस में दिया था। वहां मौजूद सभी महिलाओं ने उनका समर्थन किया और साल 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विटज़रलैंड में पहली बार महिला दिवस मनाया गया। इसके बाद 1975 को संयुक्त राष्ट्र ने महिला दिवस को आधिकारिक तौर पर मान्यता दी और इसे मनाने के लिए 8 मार्च की तिथि निर्धारित की। तब से हर साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को 8 मार्च को ही सेलिब्रेट किया जाता है।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की थीम-
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की थीम प्रतिवर्ष निर्धारित की जाती है। इस साल 2024 की थीम है- "Inspire Inclusion" इसका मतलब है एक ऐसी दुनिया जहां हर किसी को बराबर का हक और सम्मान मिले। पिछले साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की थीम 'एम्ब्रेस इक्विटी' पर रखी गई थी।
महिलाओं को पुरुषों के बराबर सम्मान देने और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करना इस दिन को मनाने का मकसद है। महिलाओं के हौसलों को बुलंद करने और समाज में फैले असमानता को दूर करने के लिए इस दिन का काफी महत्व है।
यूपी सरकार का महिला सशक्तिकरण में योगदान-
महिलाओं के कल्याण एवं सशक्तिकरण के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा महिलाओं के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएं चलाई जा रही हैं। इन योजनाओं के माध्यम से उत्तर प्रदेश की महिलाओं को रोजगार के प्रति प्रेरित करना तथा उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने का प्रयास किया जा रहा है। आइए हम आपको बताते हैं उत्तर प्रदेश की महिलाओं के लिए चलाई जा रही योजनाओं के बारे में-
यूपी महिला सामर्थ्य योजना-
यूपी महिला सामर्थ्य योजना के माध्यम से प्रदेश की महिलाओं को रोजगार के प्रति प्रेरित किया जा रहा है तथा स्थानीय संसाधनों के आधार पर होम एंड कॉटेज उद्योगों के माध्यम से उनके जीवन स्तर में सुधार लाने का प्रयास किया जा रहा है। इस योजना के द्वारा महिलाओं को अपनी उपज को बेचने के लिए सरकार द्वारा बाजार भी उपलब्ध करवाए जाएंगे। यूपी महिला सामर्थ्य योजना को सरकार ने 22 फरवरी 2021 को शुरू किया था। इस योजना के लिए 200 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया गया था।
मिशन शक्ति योजना-
मिशन शक्ति (Mission Shakti) भारत सरकार के तहत महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की एक पहल है जिसका मकसद महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना है। इस मिशन के तहत सरकार महिलाओं को शिक्षा, कौशल विकास, रोजगार और उद्यमिता (Entrepreneurship) के अवसर दिलाने के लिए काम कर रही है। मिशन शक्ति को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में मिशन शक्ति के चौथे चरण के तहत प्रत्येक ग्राम पंचायत व वार्ड में चौपाल का आयोजन किया गया। इसमें पंचायत सचिव, महिला बीट अधिकारी, राजस्व अधिकारी, एएनएम (सहायक नर्स और मिडवाइफ) आदि महिलाओं से संबंधित योजनाओं की जानकारी देने के साथ उनकी समस्याओं के निस्तारण में सहयोग भी किया गया।
मुख्यमंत्री कन्या सुमंगला योजना-
आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के परिवारों की बेटियों के लिए उत्तर प्रदेश सरकार मुख्यमंत्री कन्या सुमंगला योजना चला रही है। जिससे यूपी की बेटियां शिक्षित होकर अपना उज्वल भविष्य बना सकें। इस योजना के तहत, सरकार इन जरूरतमंद परिवारों की बेटियों के जन्म से लेकर पढ़ाई तक के खर्चे में मदद कर रही है। एक परिवार की ज्यादा से ज्यादा दो बेटियों को इस योजना का लाभ दिया जा रहा है। इस योजना में बेटियों के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जा रहा है और इसके लिए सरकार अलग-अलग किस्तों में धनराशि दे रही है।
निर्भया-एक पहल कार्यक्रम-
इस कार्यक्रम का उद्देश्य 75 हजार महिलाओं को राज्य के बैंकों से जोड़ना है।
गरीब बेटियों की शादी के लिए अनुदान-
ऐसे माता-पिता जिनकी शहरी क्षेत्रों में सभी स्रोतों से वार्षिक आय 56 हजार 460 रुपये और ग्रामीण क्षेत्रों में 46 हजार 80 रुपये है तथा वर-वधू की न्यूनतम आयु 21 और 18 वर्ष है। उन्हें सरकार द्वारा 20 हजार का विवाह अनुदान दिया जाता है।
उत्तर प्रदेश में कामकाजी महिलाओं की संख्या-
उत्तर प्रदेश में कामकाजी महिलाओं की संख्या पिछले 6 साल के दौरान दोगुनी से भी अधिक बढ़ गई है। हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा जारी आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक, यूपी की कुल महिला आबादी में से अब 32.10 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं हैं। वहीं ग्रामीण इलाकों में कामकाजी महिलाओं की संख्या शहरों की तुलना में दोगुनी है। ग्रामीण इलाकों में 36.50 प्रतिशत, जबकि शहरों में 15.20 प्रतिशत महिलाओं को काम मिला।
प्रदेश में महिलाओं की साक्षरता दर-
उत्तर प्रदेश में महिलाओं की कुल साक्षरता दर की बात करें, तो यह आंकड़ा कुछ कम हो जाता है। उत्तर प्रदेश में महिलाओं की कुल साक्षरता दर 57.20 दर्ज की गई थी, यानि कि यहां महिलाएं पढ़ाई के मामले में कुल साक्षरता दर और पुरुषों की साक्षरता से भी नीचे हैं।
By Ankit Verma
Baten UP Ki Desk
Published : 7 March, 2024, 2:26 pm
Author Info : Baten UP Ki