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इकोसिस्टम में जरूरी हैं बाघों की भागीदारी...

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इकोसिस्टम यानी पारिस्थितिक तंत्र एक ऐसी प्राकृतिक इकाई जिसमें सभी जीवधारी, पौधे, जानवर और अणुजीव शामिल हैं। पारिस्थितिकी को एन्वायरनमेंटल बायोलॉजी भी कहा जाता है। इसलिए ये खासी जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि इकोसिस्टम को सुरक्षित रखा जाए। पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बनाए रखने में बाघ महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बाघ, हमारी वन्यजीवों की विविधता के प्रतीक हैं और बाघ हमारे वनों की शान व जीवन के संकेत भी हैं। इनकी सुरक्षा प्रकृति का संजीवनी मंत्र और पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन है। अगर बाघ सुरक्षित नहीं रखे गए, तो इससे पूरा पारिस्थितिक तंत्र बुरी तरह से प्रभावित हो सकता है। इसीलिए  हर साल 29 जुलाई को दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस  मनाया जाता है।

बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु भी है। यह दिन बाघों की घटती संख्या के कारणों को जानने के साथ ही उनके संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के मकसद से मनाया जाता है। अगर बाघ बचेंगे तो जंगल बचेंगे। ये दोनों बचेंगे तो प्रकृति और हमारा भविष्य सुरक्षित रहेगा। अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस बाघों के संरक्षण और उनके प्राकृतिक आवास को बचाने के प्रयासों को समर्पित है। बाघ, जो कि जंगलों के राजा के रूप में जाने जाते हैं, अब लुप्तप्राय प्रजातियों में शामिल हो चुके हैं। इस विशेष दिन का उद्देश्य बाघों की घटती संख्या और उनके संरक्षण की आवश्यकता के बारे में जागरूकता फैलाना है।

बाघों की वर्तमान स्थिति

बाघों की आबादी पिछले कुछ दशकों में काफी घट गई है। एक समय था जब बाघ एशिया के विभिन्न हिस्सों में बड़ी संख्या में पाए जाते थे, लेकिन अब उनकी संख्या मात्र कुछ हजार ही रह गई है। इसका मुख्य कारण है अवैध शिकार, उनके प्राकृतिक आवास का विनाश, और पर्यावरणीय असंतुलन।

बाघों का संरक्षण: एक वैश्विक प्रयास

अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस की स्थापना 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में हुए बाघ शिखर सम्मेलन में की गई थी। इस सम्मेलन में 13 बाघ अभयारण्य वाले देशों ने बाघों की संख्या को दोगुना करने का संकल्प लिया। इस संकल्प का उद्देश्य 2022 तक बाघों की संख्या को बढ़ाना था, जिसे 'TX2' लक्ष्य कहा गया।

भारत की भूमिका

भारत में बाघों की संख्या में वृद्धि देखी गई है, जो कि विश्व में सबसे अधिक बाघों की आबादी वाला देश है। भारतीय वन्यजीव संस्थान और वन विभाग ने बाघ संरक्षण के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।भारत में प्रोजेक्ट टाइगर को शुरू हुए 50 साल से अधिक हो चुके हैं। मौजूदा वक्त में भारत, दुनिया के 75 फीसदी  जंगली बाघों का घर है। बाघों की स्थिति को लेकर 2022 की एक रिपोर्ट के अनुसार 2018 से 2022 के बीच इनकी संख्या 2,967 से बढ़कर 3,167 हो गई है। हालांकि यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि संख्या में बढ़ोतरी के बावजूद यह तथ्य पीछे छूट जाता है कि यह इजाफा भारत में हर जगह नहीं है। 

भारत में प्रोजेक्ट टाइगर-

भारत सरकार ने साल 1973 में बाघों को संरक्षण प्रदान करने के मकसद से प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की थी। इस प्रोजेक्ट के तहत कई सारे टाइगर रिजर्व स्थापित किए गए। कई तरह की नीतियां बनाई गईं, जिससे बाघों का शिकार रोका जा सके, उनकी संख्या बढ़ाने पर काम किया जा सके। जिसकी बदौलत अभी भारत में कुल 54 टाइगर रिजर्व हैं और यहां बाघों की संख्या बढ़ ही रही है, कम नहीं हो रही।

देश के प्रसिद्ध बाघ-बाघिन और अभयारण्य-

अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के मौके पर आइए जानते हैं भारत के 10 प्रसिद्ध बाघ और बाघिनों के बारे में-

मछली, रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान-

अपने गाल पर मछली के आकार के निशान के लिए मछली नाम से प्रसिद्ध, रणथंभौर की बाघिन रानी ने भारत में बाघों की संख्या बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उसने 1999 और 2006 के बीच 11 शावकों को जन्म दिया, जिससे रणथंभौर की बाघों की संख्या 15 से 50 हो गई। 2013 में, सरकार ने बाघिन को सम्मानित करने के लिए एक स्मारक डाक कवर और स्टाम्प जारी किया। मछली का 2016 में 19 साल की उम्र में निधन हो गया, जो कि किसी भी बाघिन की अब तक जंगल में जीने की सबसे लंबी उम्र है।

कॉलरवाली, पेंच राष्ट्रीय उद्यान-

 29 शावकों को जन्म देने वाली कॉलरवाली जंगल में एकमात्र बाघिन है। उसने पेंच में पहली बाघिन के रूप में रेडियो कॉलर पहने होने के कारण अपना नाम कमाया। अपने कई बच्चों के कारण उसे माताराम (प्यारी मां) के नाम से भी जाना जाता है।

माया, ताडोबा-अंधारी बाघ अभयारण्य-

माया महाराष्ट्र के सबसे पुराने राष्ट्रीय उद्यान, ताडोबा राष्ट्रीय उद्यान की सर्वोच्च शासक है। अगर आप इस अभयारण्य में जाते हैं, तो सफारी गाइड और वन अधिकारी अक्सर अन्य बाघिनों के साथ उसकी लड़ाइयों के बारे में बताते हैं। ऐसी लड़ाइयां बाघों के घटते आवास और जीवित रहने के संघर्ष को भी दर्शाती हैं।

पारो, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व-

पारो, पहली बार कॉर्बेट में 2013-14 के आसपास देखी गई, ऐसी अटकलें थीं कि पारो धिकाला चौर से ठंडी मां नामक एक बाघिन की बेटी थी। अपने छोटे आकार के बावजूद, उसने दो वरिष्ठ बाघिनों को भगा दिया और रामगंगा नदी के दोनों किनारों पर अपना शासन स्थापित किया।

प्रिंस, बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान-

बांदीपुर टाइगर रिजर्व, कर्नाटक में प्रिंस एक प्रमुख और सबसे ज़्यादा तस्वीरें खिंचवाने वाला नर बाघ था। 2017 में, उसका शरीर पार्क के कुंडाकेरे रेंज में पाया गया था।

कांकती, बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान

कांकती, जिसे विजया के नाम से भी जाना जाता है, बांधवगढ़ किले तक चोरबेहरा और चक्रधारा क्षेत्रों पर हावी थी। विकलांग बाघिन लक्ष्मी के साथ उसके भीषण युद्ध में उसकी एक आंख चली गई थी। उसकी कहानी शिवांग मेहता ने अपनी पुस्तक ए डिकेड विद टाइगर्स: सुप्रेमेसी, सॉलिट्यूड, स्ट्राइप्स में विस्तार से लिखी है।

बाघ संरक्षण की चुनौतियाँ

  1. अवैध शिकार: बाघों की खाल, हड्डियाँ और अन्य अंगों की तस्करी एक बड़ी समस्या है। यह अवैध व्यापार बाघों की संख्या में कमी का एक मुख्य कारण है।

  2. प्राकृतिक आवास का विनाश: वनों की कटाई, शहरीकरण और कृषि विस्तार के कारण बाघों के प्राकृतिक आवास का नाश हो रहा है। इससे बाघों के रहने के लिए सुरक्षित जगह कम हो रही है।

  3. पर्यावरणीय असंतुलन: जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय असंतुलन के कारण भी बाघों का जीवन प्रभावित हो रहा है।

बाघों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम

  1. सख्त कानून और उनका पालन: अवैध शिकार पर रोक लगाने के लिए सख्त कानून बनाए जाएं और उनका कड़ाई से पालन हो।

  2. प्राकृतिक आवास का संरक्षण: वन क्षेत्रों की रक्षा की जाए और नए वन्यजीव अभयारण्य बनाए जाएं।

  3. जागरूकता अभियान: बाघों के संरक्षण के प्रति जनता में जागरूकता फैलाने के लिए व्यापक अभियान चलाए जाएं।

  4. स्थानीय समुदायों की भागीदारी: स्थानीय समुदायों को बाघ संरक्षण के प्रयासों में शामिल किया जाए ताकि वे अपने आस-पास के जंगलों की रक्षा करने में मदद कर सकें।

बाघों का संरक्षण हमारा कर्तव्य-

अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस न केवल बाघों की घटती संख्या के प्रति जागरूकता फैलाने का एक महत्वपूर्ण अवसर है, बल्कि यह हमें उनके संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने की भी प्रेरणा देता है। बाघ हमारे पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उनकी रक्षा करना हम सभी का कर्तव्य है। यदि हम सभी मिलकर प्रयास करें, तो हम निश्चित ही बाघों को उनके प्राकृतिक आवास में सुरक्षित और संरक्षित रख सकते हैं।

 

By Ankit verma 

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