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इथेनॉल उत्पादन में भारत की ऐतिहासिक उपलब्धि, गन्ना किसानों को मिला बड़ा लाभ

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भारत ने इथेनॉल उत्पादन और उपभोग के क्षेत्र में एक बड़ा कदम उठाते हुए दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा इथेनॉल उत्पादक और उपभोक्ता देश बनने की उपलब्धि हासिल की है। केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्री प्रह्लाद जोशी ने भारत शर्करा एवं जैव ऊर्जा सम्मेलन में यह घोषणा की। उन्होंने बताया कि इस सफलता के पीछे केंद्र सरकार की नीतिगत सुधारों और इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम (ईबीपी) की सफलता की कहानी-

भारत में इथेनॉल उत्पादन को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम की शुरुआत की थी। इस कार्यक्रम के तहत पेट्रोल में इथेनॉल की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं, ताकि पेट्रोलियम उत्पादों पर निर्भरता कम हो और पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को भी रोका जा सके। मंत्री प्रह्लाद जोशी ने बताया कि पिछले 10 वर्षों में इथेनॉल की बिक्री से सबसे अधिक राजस्व चीनी मिलों को प्राप्त हुआ है, जिससे यह उद्योग मजबूत हुआ है। इससे न केवल चीनी उद्योग को लाभ हुआ है, बल्कि गन्ना किसानों को भी अतिरिक्त आय का स्रोत मिला है। चीनी मिलों ने इथेनॉल के उत्पादन से अधिक मुनाफा कमाया है, जिससे इस उद्योग में निवेश के नए अवसर उत्पन्न हो रहे हैं।

ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी और रोजगार के अवसर-

इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल के उपयोग से ग्रीनहाउस गैसों (जीएचजी) के उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी आ रही है। इस पहल से पर्यावरण संरक्षण में भी बड़ी मदद मिल रही है, क्योंकि इथेनॉल पेट्रोल की तुलना में एक साफ और हरित ईंधन है। इसके उपयोग से प्रदूषण का स्तर भी कम होता है। इसके अलावा, इथेनॉल उत्पादन के क्षेत्र में निवेश के अवसर बढ़े हैं। ग्रामीण इलाकों में नई डिस्टलरी इकाइयों की स्थापना की गई है, जिससे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार के अवसर भी सृजित हुए हैं। किसानों को अपने गन्ने का बेहतर मूल्य मिल रहा है और ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को भी इससे लाभ हो रहा है।

गन्ना खेती में 18% की वृद्धि और किसानों को 99% भुगतान-

भारत में गन्ना खेती के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। पिछले 10 सालों में गन्ना की खेती का क्षेत्रफल लगभग 18 प्रतिशत बढ़ा है, जबकि गन्ना उत्पादन में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस वृद्धि के पीछे सरकार द्वारा लागू की गई नीतियों का अहम योगदान रहा है, जिससे किसानों को गन्ना उत्पादन के लिए उचित मूल्य और नए बाजार मिले हैं।

चीनी के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी)-

किसानों के हितों की रक्षा के लिए केंद्र सरकार ने 2018 में चीनी के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागू किया। इसके जरिए चीनी मिलों द्वारा गन्ना किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिल सका है। प्रह्लाद जोशी ने बताया कि सरकार और चीनी उद्योग के सहयोग से अब तक गन्ना किसानों को 1.14 लाख करोड़ रुपये में से लगभग 99 प्रतिशत भुगतान किया जा चुका है, जो किसानों के आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है।

भारत की शून्य उत्सर्जन की यात्रा और अक्षय ऊर्जा का प्रोत्साहन-

केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने यह भी कहा कि इथेनॉल उत्पादन और उपयोग से भारत की शून्य उत्सर्जन (Net Zero Emission) की दिशा में की गई प्रतिबद्धता को बल मिला है। भारत ने 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है, और इथेनॉल जैसे स्वच्छ ईंधन के उपयोग से यह लक्ष्य प्राप्त करना संभव हो सकेगा। केंद्र सरकार ने एक मजबूत और टिकाऊ चीनी उद्योग के निर्माण के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इसके साथ ही, अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में भी यह उद्योग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। जैव ऊर्जा के उत्पादन और इसके उपयोग से न केवल भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा रहा है, बल्कि पर्यावरणीय चुनौतियों का भी समाधान किया जा रहा है।

इथेनॉल उत्पादन से चीनी उद्योग को नई दिशा-

भारत के चीनी उद्योग ने इथेनॉल उत्पादन के क्षेत्र में एक नई दिशा प्राप्त की है। पहले चीनी मिलें केवल चीनी उत्पादन पर निर्भर थीं, लेकिन इथेनॉल उत्पादन के साथ इस उद्योग को एक अतिरिक्त आय स्रोत मिला है। इससे चीनी मिलों की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है और किसानों को भी समय पर भुगतान सुनिश्चित हो सका है। इथेनॉल उत्पादन में भारत की यह सफलता अन्य देशों के लिए भी एक प्रेरणा बनी है। चीन और ब्राजील जैसे देशों के बाद, भारत इथेनॉल उत्पादन के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। इथेनॉल की बढ़ती मांग ने न केवल किसानों और चीनी मिलों के लिए नए अवसर प्रदान किए हैं, बल्कि भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है।

इथेनॉल उत्पादन में तकनीकी नवाचार और चुनौतियां-

भारत में इथेनॉल उत्पादन की क्षमता बढ़ाने के लिए तकनीकी नवाचारों पर भी जोर दिया जा रहा है। जैव ईंधन उत्पादन की प्रक्रिया को और अधिक कुशल बनाने के लिए नई तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। इसके साथ ही, इथेनॉल उत्पादन की लागत को कम करने और इसकी गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। हालांकि, इथेनॉल उत्पादन के क्षेत्र में कुछ चुनौतियां भी हैं। कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करना, उत्पादन क्षमता को बढ़ाना, और इसे अन्य पारंपरिक ईंधनों के साथ प्रतिस्पर्धी बनाए रखना कुछ प्रमुख चुनौतियां हैं। इसके अलावा, इथेनॉल उत्पादन के लिए उचित बाजार और वितरण चैनल स्थापित करना भी एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है।

भविष्य की दिशा: कृषि और हरित ऊर्जा का संतुलन-

इथेनॉल उत्पादन और इसके उपयोग से भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के साथ ही, पर्यावरण की रक्षा भी सुनिश्चित हो रही है। कृषि और हरित ऊर्जा के बीच तालमेल बनाकर, भारत अपने 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल कर सकेगा। 

  • भारत सरकार की नीतियों और चीनी उद्योग के सहयोग से यह संभव हो सका है कि आज भारत इथेनॉल उत्पादन के क्षेत्र में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश बन गया है। इसके साथ ही, गन्ना किसानों और चीनी मिलों की आय में भी वृद्धि हुई है।
  • इथेनॉल उत्पादन के क्षेत्र में की जा रही ये पहल न केवल भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर रही हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।
  • भारत की इथेनॉल उत्पादन में यह सफलता नीतिगत सुधारों, तकनीकी नवाचारों और किसानों व चीनी मिलों के सहयोग का परिणाम है। इससे भारत को आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ तो मिल ही रहे हैं, साथ ही वैश्विक मंच पर भी उसकी पहचान एक स्वच्छ ऊर्जा उत्पादक और उपभोक्ता देश के रूप में हो रही है।

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