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कितनी दूर तक फैला है हमारा अधिकार, जानिए समुद्र में कहाँ से कहां तक है भारत की अदृश्य सीमा है?

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जब हम देश की सीमाओं की बात करते हैं, तो आमतौर पर धरती पर खिंची लकीरों की कल्पना करते हैं, जो देश की संप्रभुता का दायरा तय करती हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जब यही सीमा समुद्र में उतरती है, तो इसका विस्तार कहां तक होता है? समुद्री सीमाओं का निर्धारण किसी मानचित्र पर खिंची रेखा से कहीं अधिक जटिल है। यह एक ऐसी अदृश्य सीमा है, जो सिर्फ पानी की लहरों में बसी नहीं होती, बल्कि अंतरराष्ट्रीय नियमों और संधियों से बंधी होती है। 

भारत के लिए, जो एक विशाल तटीय सीमा वाला प्रायद्वीप है, समुद्री अधिकारों का सवाल अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में हमारा अधिकार कितना दूर तक फैला है और किन नियमों से यह निर्धारित होता है? आइए, इस रोमांचक सफर में डुबकी लगाते हैं और जानते हैं कि समुद्र में हमारी सीमाएं कहां खत्म होती हैं।

समुद्री सीमाओं का निर्धारण: UNCLOS-1982 संधि-

समुद्रों पर अधिकारों का निर्धारण संयुक्त राष्ट्र की समुद्री कानूनी संधि (UNCLOS-1982) के माध्यम से किया जाता है। यह संधि प्रत्येक देश की समुद्री सीमाओं को परिभाषित करती है, ताकि देशों के बीच किसी प्रकार का समुद्री विवाद न हो और संसाधनों का न्यायसंगत उपयोग हो सके।

भारत की समुद्री सीमा के तीन मुख्य क्षेत्र-

भारत की समुद्री सीमा को अंतरराष्ट्रीय संधि के अनुसार तीन भागों में बांटा गया है, जिससे देश अपनी सुरक्षा और आर्थिक अधिकारों को स्पष्ट रूप से परिभाषित कर सके।

1. आधार रेखा (Baseline)

भारत की तटरेखा से 12 समुद्री मील (लगभग 22.22 किलोमीटर) तक फैली यह सीमा देश की मूल समुद्री सीमा कहलाती है। इस क्षेत्र में भारत का पूर्ण अधिकार है, जैसे कि सुरक्षा, कानून प्रवर्तन, और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग।

2. क्षेत्रीय जल (Territorial Waters)

आधार रेखा से आगे, 24 समुद्री मील (लगभग 44.44 किलोमीटर) तक का यह क्षेत्र "क्षेत्रीय जल" कहलाता है। यह क्षेत्र भारत के सीमा सुरक्षा अधिकार क्षेत्र में आता है, और यहां भारतीय सुरक्षा बलों को यह अधिकार है कि अवैध घुसपैठ को रोक सकें और किसी संदिग्ध जहाज पर कार्रवाई कर सकें।

3. विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone - EEZ)

इससे आगे, 200 समुद्री मील (लगभग 370 किलोमीटर) तक का क्षेत्र भारत के विशिष्ट आर्थिक अधिकारों में आता है। इस क्षेत्र में भारत समुद्री संसाधनों का अन्वेषण, दोहन और प्रबंधन कर सकता है। मछली पकड़ने, खनिज खोज, और समुद्री अनुसंधान जैसे कार्य यहां स्वतंत्र रूप से किए जा सकते हैं।

हाई सी: सभी के लिए खुला समुद्र क्षेत्र-

हाई सी वह समुद्री क्षेत्र है जो किसी भी देश की सीमा में नहीं आता। यह सभी देशों के लिए खुला होता है, और इस क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन अनिवार्य होता है। हाई सी में किसी विशेष देश का अधिकार नहीं होता, और इसका उपयोग सभी देश मिलकर कर सकते हैं।

भारत की विस्तृत तटीय सीमा: अधिकार और संभावनाएं-

भारत की समुद्री सीमा उसकी भौगोलिक स्थिति के कारण विशेष महत्व रखती है। भारत की तटीय सीमा 7516.6 किलोमीटर लंबी है, जो उसे समुद्री व्यापार और सुरक्षा के मामले में एक महत्वपूर्ण स्थिति प्रदान करती है।

  • 22.22 किलोमीटर तक का क्षेत्र भारत के पूर्ण अधिकार क्षेत्र में आता है, जहां भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल सक्रिय रहते हैं।
  • 44.44 किलोमीटर तक के क्षेत्र में भारत को सीमा सुरक्षा, व्यापारिक गतिविधियाँ, और स्वास्थ्य संबंधित नियम लागू करने का अधिकार है।
  • 370 किलोमीटर तक का EEZ भारत को समुद्री खनिजों, ऊर्जा स्रोतों, और जैव संसाधनों का उपयोग करने की अनुमति देता है।

क्यों है समुद्री सीमाओं का महत्व?

समुद्री सीमाओं का स्पष्ट निर्धारण न केवल समुद्री विवादों को रोकता है, बल्कि देशों को अपने संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करने का अधिकार देता है। इसके माध्यम से देशों के बीच शांति और स्थिरता बनाए रखने में भी मदद मिलती है, और यह समुद्री व्यापार और आर्थिक विकास को भी प्रोत्साहित करता है।

भारत की समुद्री सीमा का विस्तार-

भारत की समुद्री सीमा का विस्तार अंतरराष्ट्रीय संधियों और कानूनों के तहत निर्धारित है, जो न केवल देश की सुरक्षा को मजबूत बनाता है बल्कि आर्थिक विकास के लिए नई संभावनाएं भी प्रस्तुत करता है। UNCLOS-1982 के माध्यम से भारत अपनी समुद्री सीमाओं का संरक्षण करता है और इसके माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों में विकास की ओर अग्रसर है।

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