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नंबर वन होने के बाद भी क्या चुनौती झेल रहा है यूपी का डेयरी सेक्टर?

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उत्तर प्रदेश राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से देश में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है। साथ ही उत्तर प्रदेश को भारत की खाद्य टोकरी के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह देश में गन्ना, साग सब्जी, दूध एवं दूध उत्पादों का प्रमुख उत्पादक राज्यों में से एक है। वहीं उत्तर प्रदेश दुग्ध उत्पादन में देश में पहले स्थान पर भी है। लेकिन उसके बावजूद भी डेयरी उद्योग में कई ऐसी चुनौतियाँ और परेशानियाँ है। दूध को लेकर लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के मकसद से हर साल 1 जून को विश्व दुग्ध दिवस मनाया जाता है। दुनिया ने पहली बार 2001 में विश्व दुग्ध दिवस मनाया था। इस आयोजन के दौरान प्रतीक के तौर पर एक जगह जमा होकर एक साथ दूध 'एक गिलास उठाया'। तब से अब तक यह वार्षिक आयोजन 40 से अधिक देशों में फैल चुका है और साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है। हालांकि  राष्ट्रीय दुग्ध दिवस 26 नवंबर को मनाया जाता है। 

दूध उत्पादन में प्रदेश में 20 प्रतिशत की वृद्धि

बता दें कि देशभर में अकेले उत्तर प्रदेश करीब 16.60 प्रतिशत दूध का उत्पादन करता है।  प्रदेश में प्रतिदिन 8.72 करोड़ किलोग्राम से ज्यादा दुग्ध का उत्पादन होता है। कुल उत्पादन में से करीब 48 प्रतिशत का खपत यूपी में ही होती है और शेष 52 प्रतिशत दूध अन्य राज्यों को सप्लाई किया जाता है। अगर पिछले पांच वर्ष की बात करें तो मौजूदा सरकार के निर्देशन में दूध उत्पादन में प्रदेश में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वहीं पशुधन गणना, 2012 के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य में गाय तथा भैसों की संख्या का अनुपात 19.6 और 30.6 मिलियन है। इस अनुपात से यह पता चलता है की दूध का अधिकतर उत्पादन भैसों पर निर्भर है। 

डेयरी सेक्टर में सम्भवनाएँ और चुनौतियाँ-

मौजूदा परिस्थितियों की बात करें तो यूपी का डेयरी उद्योग सहकारी मॉडल पर आधारित है जो छोटे और सीमांत डेयरी किसानों, विशेषकर महिलाओं को सशक्त बनाने का काम करता है। प्रदेश सरकार ने डेयरी क्षेत्र की बेहतरी के लिए कई कदम उठाए हैं। इसी का परिणाम है कि आज प्रदेश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में डेरी सेक्टर का अहम योगदान है। इसके साथ ही महिलाएं इससे जुड़कर आत्मनिर्भर बन रही हैं। प्रदेश में जहां पांच साल पहले प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 352 ग्राम प्रति दिन थी, जो आज वित्तीय वर्ष में बढ़कर 406 ग्राम प्रतिदिन पहुंच गई है। ऐसा नहीं है की यूपी में डेयरी सेक्टर सिर्फ यहीं तक सिमित है इस क्षेत्र में और भी कई सम्भवनाएँ है लेकिन उनके पीछे कुछ चुनौतियाँ भी हैं जैसे-

  • विकास गतिविधियों के लिए भूमि की आवश्यकता के कारण चारागाह घटते जा रहे हैं। इससे जानवरों को पर्याप्त व गुणवत्तापूर्ण भोजन नहीं मिल पाता है। इससे दूध की मात्रा व गुणवत्ता गिरती जा रही है।
  • छोटे किसानों के लिए उनके उत्पादों को बाजार तक पहुंचाना मुश्किल हो सकता है, जिससे उनकी आय कम हो जाती है।
  • दूध उत्पादन में मौसमी उतार-चढ़ाव होते हैं, जिससे आपूर्ति और मांग में असंतुलन पैदा होता है।
  • पशु चिकित्सा केन्द्र भी दूर-दूर स्थापित हैं। इससे पशुओं को सही समय पर उचित स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल पाती है।
  • बड़ी संख्या में बिचौलियों के कारण किसानों को दुग्ध का उचित मूल्य भी नहीं मिल पाता है।
  • छोटे किसानों में दूध के व्यापारिक महत्त्व को लेकर जागरूकता का अभाव भी रहता है। 

नंद बाबा दुग्ध मिशन का संचालन 

इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार की तरफ से भी कई प्रयास किए गए हैं। बता दें की प्रदेश सरकार ने इस क्षेत्र के लिए अगले पांच वर्ष में एक हजार करोड़ निवेश की योजना बनाई गई है। इसके लिए नंद बाबा दुग्ध मिशन संचालित करने का निर्णय लिया गया है।

सर्वाधिक दूध उत्पादन करने वाले को गोकुल पुरस्कार-

दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के उ‌द्देश्य से उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सहकारिता क्षेत्र में जनपद स्तर पर सर्वाधिक दूध उत्पादन करने वाले उत्पादक को तथा प्रदेश में सर्वाधिक दूध उत्पादन करने वाले प्रथम एवं द्वितीय उत्पादकों को गोकुल पुरस्कार से पुरस्कृत किया जा रहा है। इसी के साथ ही दुग्ध उत्पाद जैसे-घी, पनीर, खोया, चीज, बटर, मिल्क पाउडर, आदि के निर्माण और पैकिंग के लिए प्लांट की स्थापना भी की जा रही है।

प्रदेश में "मेक इन यू०पी०" के अन्तर्गत दूध उत्पादन से संम्बन्धित उपकरण, मशीनरी आदि बनाने हेतु प्लांट की स्थापना भी हो रही है।  दुग्ध जाँच से सम्बन्धित उपकरण, संयत्र निर्माण हेतु प्लांट की स्थापना तथा इससे सम्बन्धित शोध एवं विकास भी किए जा रहे हैं।

 इस प्रकार  दूध उत्पादन को दिया जा सकता है बूस्ट-

  • बेहतर पशुधन प्रबंधन प्रथाओं, उच्च उत्पादक नस्लों की उपलब्धता और पोषण आहार के माध्यम से दूधारू पशुओं की उत्पादकता में सुधार किया जा सकता है।
  • दूध से दही, पनीर, घी और आइसक्रीम जैसे उत्पादों का उत्पादन करके किसानों की आय में वृद्धि की जा सकती है।
  • दूध संकलन केंद्रों की स्थापना से छोटे किसानों के लिए उनके उत्पादों को बाजार तक पहुंचाना आसान हो सकता है।
  • कोल्ड स्टोर जैसी सुविधाओं का विकास दूध की बर्बादी को कम करने और वर्ष भर आपूर्ति बनाए रखने में मदद कर सकता है।
  • सरकार दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है, जिनमें सब्सिडी, ऋण और प्रशिक्षण शामिल हैं। इसकी जानकारी किसानों को दी जा सकती है।

BY Akash 

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