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9 भाषा और 32 डिग्रियां, किताबें ऐसी जो भारत को देखने का नया नजरिया दें!

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(Special Story) एक विश्व स्तरीय वकील, समाज सुधारक, संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमिटी के अध्यक्ष और देश के पहले कानून मंत्री ऐसी ही न जाने और कितनी पहचान हैं, उस महान व्यक्तित्व की जिसने आजादी के बाद देश को सही दिशा में आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उस महान विभूति का नाम डॉ. भीमराव अंबेडकर है। आज 14 अप्रैल को देश उनकी 134वीं जयंती  मना रहा है। उन्हें भारतीय संविधान का जनक (Father of Indian Constitution) भी कहा जाता है।

डा. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव महू में रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई के घर हुआ था। उन्हें साल 1990 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी मरणोपरांत सम्मानित किया गया था। मजदूरों, महिलाओं और समाज के वंचित व कमजोर वर्ग को सशक्त बनाने के लिए उन्होंने अहम योगदान दिया, जिसे पूरा भारत आज भी याद करता है। 

बाबा साहेब को था 9 भाषाओं का ज्ञान-

बाबा साहेब को आधुनिक भारत के सबसे ओजस्वी लेखकों में गिना जाता है। अंबेडकर को हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, फ्रेंच, पाली, जर्मन, मराठी, पर्शियन और गुजराती जैसी 9 भाषाओं का ज्ञान था। वह 64 विषयों में मास्टर भी थे। डॉ. भीमराव अंबेडकर सिर्फ देश ही नहीं, विश्वभर में अपनी किताबों और डिग्रियों के लिए जाने जाते हैं। डा. भीमराव अंबेडकर के निजी पुस्तकालय “राजगृह” में लगभग 50 हजार पुस्तकें थी। 

वैसे तो बाबा साहेब के किसी भी पहलू के बारे में सीखा जा सकता है लेकिन बाबा साहेब की जयंती के इस  खास मौके पर आपको उनकी ऐसी किताबों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनसे भारत को एक नए नजरिये से देखने का मौका मिलता है। 

1- जाति का उन्मूलन (Annihilation of Caste)

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने साल 1936 में लिखी अपनी इस किताब में हिंदू धर्म और इसकी जाति व्यवस्था पर कठोर कटाक्ष किया। उन्होंने इसके धर्मग्रंथों को पुरुष प्रधान और महिला हितों से नफरत करने वाला बताया है। अंबेडकर कहा कि जाति व्यवस्था को खत्म करने के लिए अंतर-जातीय भोजन और अंतर-जातीय विवाह काफी तो नहीं है, लेकिन ये इसे तोड़ने का सही तरीका जरूर बन सकते हैं।

2- भगवान बुद्ध और उनका धम्म (The Buddha and His Dhamma)

बुद्ध का जीवन और बौद्ध धर्म को जानने में अगर आपकी रुचि है, तो आपको डॉ. अंबेडकर की यह किताब भी जरूर पढ़नी चाहिए। इसे उन्होंने अपने जीवन के आखिरी दिनों में लिखा था। साल 1957 में उनके निधन के बाद यह प्रकाशित हो पाई। इस किताब में बुद्ध से जुड़े विमर्श, आत्मा के सिद्धांत, चार आर्य सत्य, कर्म और पुनर्जन्म और अंतत भिक्षु बनने की भी कहानी है।

3- भारत में जातियां (Caste In India)

बाबा साहेब की यह किताब साल 1917 में प्रकाशित हुई थी। दरअसल, उन्होंने न्यूयॉर्क में मानवशास्त्रीय संगोष्ठी में एक पेपर पढ़ा था, जिसमें सामाजिक घटना को लेकर प्रस्तुति भी दी थी। अंबेडकर ने इसे ही किताब का रूप देकर इसमें विवाह व्यवस्था और इससे जुड़े समूहों के बारे में बताया है।


4- रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और इसका समाधान (The Problem of the Rupee: Its Origin and It's Solution)

साल 1923 में प्रकाशित हुई यह किताब, अर्थशास्त्र पर लिखी उनकी सर्वश्रेष्ठ किताबों में से एक है। इसमें ब्रिटिश भारत में मुद्रा से जुड़ी समस्याओं को उठाया गया है, जिसके चलते रिजर्व बैंक अस्तित्व में आया था। अगर आपको भी भारतीय मुद्रा और बैंकिंग के इतिहास को जानने में दिलचस्पी है, तो यह किताब एक बढ़िया ऑप्शन है।

5-शूद्र कौन थे? (Who Were the Shudras?)

डॉ. अंबेडकर ने साल 1946 में प्रकाशित इस किताब को भारत के सामाजिक कार्यकर्ता और जाति सुधारक ज्योतिराव फुले को समर्पित किया है। इसमें शूद्र वर्ण की उत्पत्ति को लेकर चर्चा की गई है। बाबा साहेब ने इसमें महाभारत, ऋग्वेद और कई धर्मग्रंथों का संदर्भ देते हुए जाति व्यवस्था की बातों का वर्णन किया है। उनके अनुसार शूद्र मूल रूप से आर्य से आए थे, जो कि पहले क्षत्रिय वर्ण का हिस्सा थे।

उनके द्वारा लिखी गईं कुछ अन्य किताबें-

  • भारत का राष्ट्रीय अंश
  • भारत में लघु कृषि और उनके उपचार 
  • मूल नायक (साप्ताहिक) 
  • ब्रिटिश भारत में साम्राज्यवादी वित्त का विकेंद्रीकरण 
  • ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का अभ्युदय
  • बहिष्कृत भारत (साप्ताहिक)
  • जनता (साप्ताहिक) 
  • संघ बनाम स्वतंत्रता 
  • मि. गांधी एवं अछूतों की विमुक्ति 
  • रानाडे, गांधी और जिन्ना 
  • कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिए क्या किया
  • पाकिस्तान पर विचार 
  • पाकिस्तान या भारत का विभाजन  
  • बुद्ध या कार्ल मार्क्स 
  • राज्य और अल्पसंख्यक  

भीमराव अंबेडकर के पास थीं 32 डिग्रियां-

भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर के पास 32 डिग्रियां थीं। उन्होंने मात्र 2 साल 3 महीने में 8 साल की पढ़ाई पूरी की थी। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से ‘डॉक्टर ऑफ साइंस’ नामक एक दुर्लभ डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की थी।

सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध चलाया अभियान -

डॉ. भीमराव अंबेडकर भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे। उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) से सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था। श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन भी किया था। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मन्त्री, भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे।

 

 बाबा साहेब से जी से जुड़ी कुछ खास बातें-

  • अंबेडकर जी का असल सरनेम अंबावडेकर था (महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में उनके पैतृक गांव 'अंबावड़े' के नाम से लिया गया है)। हालांकि, उनके शिक्षक महादेव अंबेडकर ने स्कूल रिकॉर्ड में उनका उपनाम 'अंबावडेकर' से बदलकर अपना उपनाम 'आंबेडकर' कर लिया था, क्योंकि वह उनसे बहुत प्यार करते थे। 

 

  • बाबा साहेब न सिर्फ विदेश में इकोनॉमिक्स में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने वाले पहले भारतीय थे, बल्कि वह इकोनॉमिक्स में पहले पीएचडी और दक्षिण एशिया में इकोनॉमिक्स में पहले डबल डॉक्टरेट होल्डर भी थे। वह अपनी पीढ़ी के सबसे ज्यादा शिक्षित भारतीयों में से भी थे।

 

  • कोलंबिया विश्वविद्यालय में अपने तीन वर्षों के दौरान, अंबेडकर ने इकोनॉमिक्स में 29 कोर्सेस, इतिहास में 11, सोशियोलॉजी में छह, फिलॉसिपी में पांच, ह्यूमैनिटी में चार, राजनीति में तीन और प्रारंभिक फ्रेंच और जर्मन में एक-एक पाठ्यक्रम लिया था।

 

  • अपनी बुक (1995 में प्रकाशित), थॉट्स ऑन लिंग्विस्टिक स्टेट्स में, अंबेडकर ने ही सबसे पहले मध्य प्रदेश और बिहार को विभाजित करने का सुझाव दिया था। बाद में इस बुक को लिखने के लगभग 45 साल बाद, अंततः साल 2000 में बिहार से झारखंड और मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ का विभाजन हुआ।

 

  • डॉ. बीआर अंबेडकर पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने भगवान बुद्ध की खुली आंखों वाली पेंटिंग बनाई थी। उससे पहले दुनिया भर में अधिकतर सभी मूर्तियों की आंखें बंद थीं।

बाबा साहेब का जाना देश के लिए अपूर्णनीय क्षति -

बाबा साहेब ने 6 दिसंबर 1956 को आख़िरी सांस ली थी। भारत के शोषितों और कमज़ोर तबक़ों के संरक्षक डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर का जाना उनके लिए बहुत बड़ा झटका था। अपना अस्तित्व बचाने और पढ़ाई के लिए डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर का संघर्ष, दलितों के उत्थान के लिए उनके प्रयास और आज़ाद भारत के संविधान के निर्माण में उनका योगदान बहुत से लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत रहा है। उनके लिए ये सफ़र बहुत मुश्किल रहा था। इस पूरे सफ़र के दौरान, बाबासाहेब कई बीमारियों से जूझते रहे थे. वो डायबिटीज़, ब्लडप्रेशर, न्यूराइटिस और आर्थराइटिस जैसी लाइलाज़ बीमारियों से पीड़ित थे।

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