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कट्टरपंथी विचारधारा पर भारी पड़ी सुधारवादी विचारधारा, हिजाब विरोधी पेज़ेश्कियान बने ईरान के नए राष्ट्रपति

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ईरान के राजनीति  में बड़ा बदलाव आ गया है क्योंकि यहां हिजाब विरोधी विचारधारा के समर्थक मसूद पेज़ेश्कियान ने राष्ट्रपति के चुनाव में शानदार जीत दर्ज की। पेज़ेश्कियान ने कट्टरपंथी उम्मीदवार सईद जलीली को 30 लाख वोटों के बड़े अंतर से पराजित किया, जो ईरान में एक नई दिशा की ओर इशारा करता है और इनकी जीत से ईरान में सामाजिक और राजनीतिक सुधारों की उम्मीदें बढ़ी हैं।

महिलाओं के अधिकारों की करते हैं वकालत-

पेज़ेश्कियान की जीत ने देश में सामाजिक और राजनीतिक सुधारों की नई उम्मीदें जगाई हैं। वे लंबे समय से हिजाब के अनिवार्य कानूनों और महिलाओं के अधिकारों की पुरजोर वकालत करते रहे हैं। उनकी जीत को एक ऐसे नेता के रूप में देखा जा रहा है जो देश में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानवाधिकारों को बढ़ावा दे सकता है।

हिजाब कानूनों में हो सकते हैं बदलाव-

विशेषज्ञों का मानना है कि पेज़ेश्कियान की जीत से ईरान में कई महत्वपूर्ण बदलाव आ सकते हैं, जिसमें महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करना और हिजाब कानूनों में संभावित बदलाव शामिल हैं। यह चुनाव परिणाम एक महत्वपूर्ण संकेत है कि ईरानी समाज में बदलाव की लहर चल रही है और लोग अधिक व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय की मांग कर रहे हैं।

पेज़ेश्कियान ने इतने वोटों से हासिल की जीत-

ईरान के उदारवादी नेता मसूद पेज़ेश्कियान ने 30 लाख वोटों से कट्टरपंथी नेता सईद जलीली को हराया है और इसी के साथ वह  देश के 9वें राष्ट्रपति बन गए।  उन्हें 1.64 करोड़ वोट मिले। वहीं जलीली को 1.36 करोड़ वोट हासिल हुए। बता दें कि ईरान में इसी साल फरवरी में चुनाव हुए थे जिसमें इब्राहिम रईसी दोबारा देश के राष्ट्रपति बने थे। इब्राहिम रईसी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो जाने के कारण यह चुनाव हो रहा है। इस साल 19 मई को रईसी की हेलिकॉप्टर क्रैश में मौत हो गई थी।

कौन हैं मसूद पेज़ेश्कियान?

29 सितंबर 1954 को जन्में मसूद पेज़ेश्कियान पेशे से डॉक्टर हैं और वह ईरान की तबरीज मेडिकल यूनिवर्सिटी के प्रमुख रहे हैं। साल 1994 में एक कार हादसे में मसूद पेजेशकियान की पत्नी और बेटी की मौत हो गई थी। पेजेशकियान साल 1997 में ईरान के स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके हैं। मसूद पेजेशकियान ने साल 2011 में पहली बार ईरान के राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन किया था, लेकिन बाद में अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली थी। पेजेशकियान की पहचान एक उदारवादी नेता की है और वह पूर्व राष्ट्रपति हसन रूहानी के करीबी माने जाते हैं। पेजेशकियान को हिजाब के सख्त कानून का विरोधी माना जाता है। 

हिजाब  के विरोधी हैं पेज़ेश्कियान-

मसूद पेज़ेश्कियान एक सर्जन रह चुके हैं। वो फिलहाल देश के स्वास्थ्य मंत्री हैं। चुनाव से पहले राजनीतिक भाषणों के दौरान उन्होंने कई बार हिजाब की खिलाफत की थी। उन्होंने कई बार कहा है कि वो किसी प्रकार के मॉरल पुलिसिंग के खिलाफ हैं। गौरतलब है कि इस चुनाव में हिजाब का मुद्दा छाया रहा।

हिजाब बना चुनावी मुद्दा-

इस चुनाव में पहली बार ऐसा हो रहा है जब भ्रष्टाचार, पश्चिमी देशों के प्रतिबंध, प्रेस की आजादी, पलायन रोकने जैसे नए मुद्दे छाए हुए हैं। सबसे चौंकाने वाला चुनावी मुद्दा हिजाब कानून का है। 2022 में ईरान में हिजाब विरोधी आंदोलन और उसके बाद सरकार के द्वारा उसके दमन के चलते कई वोटर्स के जेहन में यह सबसे बड़ा मुद्दा रहा है। हिजाब लंबे समय से धार्मिक पहचान का प्रतीक रहा है, लेकिन ईरान में यह एक राजनीतिक हथियार भी रहा है। 1979 में इस्लामिक क्रांति के बाद से ईरान में जब से हिजाब का कानून लागू हुआ था, तब से महिलाएं अलग-अलग तरह से इसका विरोध करती रही हैं। ईरान के 6.1 करोड़ वोटर्स में से आधे से ज्यादा महिलाएं हैं।

भारत-ईरान संबंधों पर कैसा होगा असर?

अब बात आती है कि भारत और ईरान के बीच कैसे संबंध रहेंगे? यह सवाल बहुत लाज़मी है क्योंकि किसी देश का राष्ट्राध्यक्ष का परिवर्तित होने का मतलब होता है कि दुनिया के देशों के साथ उसके संबंध कैसे होंगे और कूटनीतिक नीतियां किस प्रकार की होंगी। हालांकि भारत और ईरान के बीच ऐतिहासिक रूप से मजबूत आर्थिक संबंध रहे हैं। पेजेशकियन के राष्ट्रपति बनने के बाद इन संबंधों के और भी मजबूत होने की संभावना है। पेजेशकियान एक सुधारवादी नेता हैं और वह पश्चिमी देशों से भी संपर्क बढ़ाने के पक्षधर हैं। ऐसे में वह भारत के साथ संबंधों को प्राथमिकता नहीं देंगे, ऐसा होने की आशंका कम ही है। खासतौर पर रणनीतिक रूप से अहम चाबहार बंदरगाह पर दोनों देशों का फोकस रहेगा। भारत ने इस परियोजना में भारी निवेश किया है और यह बंदरगाह, भारत को पाकिस्तान को दरकिनार कर मध्य एशिया तक कनेक्टिविटी प्रदान करेगा। भारत ने चाबहार बंदरगाह टर्मिनल के विकास के लिए 12 करोड़ डॉलर देने का वादा किया है और ईरान में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए 25 करोड़ डॉलर की क्रेडिट लाइन देने की भी पेशकश की है। विशेषज्ञों का मानना है कि चाहे सत्ता में कोई भी रहे, ईरान की विदेश नीति में बदलाव की संभावना नहीं है।

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