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मुर्शिदाबाद हिंसा के साए में उठी राष्ट्रपति शासन की मांग, क्या बंगाल में लागू होगा अनुच्छेद 356?

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जब लोकतंत्र के चौराहे पर धुएं की लकीरें उठने लगें और सन्नाटा बाजारों में पसरे, तो समझिए कि कहीं कुछ बहुत ग़लत घट रहा है। पश्चिम बंगाल का मुर्शिदाबाद जिला इन दिनों ऐसी ही बेचैनी से गुज़र रहा है। सुती, समसेरगंज, धुलियान और जंगीपुर की गलियों में खामोशी है, लेकिन ये खामोशी सिर्फ सन्नाटा नहीं, एक गहरे तनाव की आहट है। शुक्रवार (11 अप्रैल) से शुरू हुई हिंसा में अब तक तीन लोगों की जान जा चुकी है, और कई घायल हैं। इंटरनेट ठप है, दुकानें बंद हैं, और सुरक्षाबल हर मोड़ पर तैनात हैं। इलाके में बीएनएसएस की धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा लागू है – पर क्या सिर्फ बंदूकों और बैरिकेड्स से भरोसे की बहाली हो सकती है? यह सिर्फ एक हिंसक घटना नहीं, बल्कि बंगाल की राजनीति, कानून-व्यवस्था और संवैधानिक मर्यादाओं के बीच जारी रस्साकशी की एक और कड़ी बनती जा रही है।

बंगाल में राष्ट्रपति शासन की मांग हुई तेज-

इस बीच, पश्चिम बंगाल के नेता प्रतिपक्ष सुवेन्दु अधिकारी ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य में हिन्दू समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है और चुनाव से पहले निष्पक्ष माहौल नहीं बन पा रहा है। उन्होंने चुनाव आयोग से अपील की कि वह राज्य में अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करे। इसी मांग को समर्थन देते हुए केंद्र सरकार में जल शक्ति मंत्रालय के राज्य मंत्री राज भूषण चौधरी ने कहा, "मुर्शिदाबाद की स्थिति देखकर लगता ही नहीं कि यह भारत का हिस्सा है, यहां तो जैसे रोहिंग्या शासन कर रहे हों।"

क्या कहता है संविधान?

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 356 राष्ट्रपति शासन से जुड़ा है। यह केंद्र सरकार को अधिकार देता है कि जब किसी राज्य में संविधान के अनुसार शासन नहीं चल रहा हो, तो राष्ट्रपति की सिफारिश पर उस राज्य की सरकार को बर्खास्त कर वहां केंद्र का प्रत्यक्ष शासन लागू किया जा सकता है। यह प्रावधान संविधान निर्माताओं की कल्पना में एक "अंतिम उपाय" के तौर पर शामिल किया गया था। डॉ. बी. आर. आम्बेडकर ने इसे "Dead Letter" कहकर इसका न्यूनतम उपयोग सुनिश्चित करने की बात कही थी।

किन परिस्थितियों में लागू होता है अनुच्छेद 356?

  • जब कोई सरकार विधानसभा में बहुमत खो दे।

  • जब राज्य में कोई भी दल या गठबंधन सरकार बनाने में असमर्थ हो।

  • जब राज्य में व्यापक पैमाने पर कानून-व्यवस्था की विफलता हो।

  • जब राज्यपाल की रिपोर्ट या अन्य स्रोतों से यह प्रतीत हो कि राज्य सरकार संविधान के अनुरूप कार्य नहीं कर रही।

राष्ट्रपति शासन प्रारंभ में 6 महीने के लिए लागू किया जाता है और संसद की मंजूरी के साथ इसे अधिकतम तीन वर्षों तक बढ़ाया जा सकता है।

अब तक कितनी बार हुआ इस्तेमाल?

भारत में 1950 से अब तक अनुच्छेद 356 का कुल 134 बार उपयोग किया जा चुका है। पहली बार 1951 में पंजाब में और हालिया उदाहरण 13 फरवरी 2025 को मणिपुर में देखा गया। पश्चिम बंगाल में भी अब तक 4 बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है।

बोम्मई केस: जिसने बदली तस्वीर

1994 में आए सुप्रीम कोर्ट के एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ फैसले ने अनुच्छेद 356 के उपयोग की सीमाएं तय कर दीं। कोर्ट ने साफ किया कि इस प्रावधान का इस्तेमाल सिर्फ असाधारण परिस्थितियों में ही किया जा सकता है और यह न्यायिक समीक्षा के अधीन रहेगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सामान्य प्रशासनिक असफलता या कानून-व्यवस्था की समस्या राष्ट्रपति शासन का पर्याप्त आधार नहीं हो सकती। साथ ही, धर्मनिरपेक्षता संविधान की मूल भावना है और इसे कमजोर करने के नाम पर अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

क्या बंगाल में स्थितियां राष्ट्रपति शासन के लिए पर्याप्त हैं?

  • मुर्शिदाबाद की ताजा हिंसा गंभीर है, लेकिन अब तक की जानकारी के आधार पर यह स्पष्ट नहीं है कि पूरे राज्य में संविधान के अनुसार शासन चलाना असंभव हो गया है या नहीं।
  • सिर्फ कानून-व्यवस्था के बिगड़ने को अनुच्छेद 356 लागू करने का आधार नहीं माना जा सकता — ऐसा सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट कर चुका है।

'अंतिम उपाय' है राष्ट्रपति शासन – सुप्रीम कोर्ट

मुर्शिदाबाद की हिंसा और उसके बाद उठी राजनीतिक मांगों ने पश्चिम बंगाल की राजनीति में नया मोड़ ला दिया है। हालांकि, राष्ट्रपति शासन जैसी बड़ी संवैधानिक कार्रवाई के लिए सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी या क्षेत्रीय हिंसा पर्याप्त नहीं है। संविधान और सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या के अनुसार, जब तक राज्य सरकार स्पष्ट रूप से संविधान के अनुरूप कार्य नहीं कर पा रही है, तब तक अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल "अंतिम उपाय" के तौर पर ही किया जा सकता है।

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